Share Market ke fayde aur nuksan – शेयर मार्केट के फायदे और नुकसान

क्या आप भी शेयर मार्केट में नए है और इन्वेस्ट करने के बारे में सोच रहे हैं? एक नया इन्वेस्टर होने के कारण आपके लिए यह जानना बहुत जरुरी हो जाता है की आखिर शेयर मार्केट में आपको कितना फायदा और किस हद तक नुकसान हो सकता है। किसी भी तरह की इन्वेस्टमेंट करने से पहले  उसके फायदे और नुकसान के बारे में जान लेना बहुत जरुरी होता है ताकि हम एक बेहतर इन्वेस्टमेंट निर्णय ले पाए और कम से कम नुकसान में हाई रिटर्न का लाभ उठा सके। इस आर्टिकल के जरिए हमने आपको Share Market ke fayde aur nuksan बताने की कोशिश है। लेकिन उसे जानने से पहले आइए एक नजर इस बात पर डाल लेते है की शेयर मार्केट आखिर होता क्या है?

Share Market ke fayde aur nuksan

शेयर मार्केट क्या है? – Share Market kya hai?

शेयर मार्केट , एक ऐसा बाजार है जहां अलग अलग कंपनियों के शेयर खरीदे और बेचे जाते है। शेयर मतलब कंपनी का एक हिस्सा जो कुछ कीमत देकर खरीदा जा सकता है। यहां अलग अलग बायर और सेलर मुनाफा कमाने के उद्देश्य से इन शेयर्स में ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग करते है। अगर शेयर मार्केट एक बाजार है, तो स्टॉक एक्सचेंज वह जगह है जहां यह बाजार लगता है और ब्रोकर्स वह दुकानदार है जो ट्रेडर्स/इन्वेस्टर्स और एक्सचेंज को जोड़ने करने का काम करता है। पहले शेयर्स मार्केट फिजिकल स्टेट में काम करती थी, जहां सभी शेयर्स सर्टिफिकेट के रूप में इशू किए जाते थे, लेकिन अब यह डिजिटल फॉर्म में डीमैट अकाउंट में स्टोर होते है।

शेयर मार्केट के फायदे – Share Market ke fayde

हाई रिटर्न (High Return): शेयर मार्केट एक ऐसा जरिया है जो की आपको बहुत कम समय में बहुत ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता रखता है। देखा जाए तो किसी भी और इन्वेस्टमेंट सेक्टर में ऐसी रिटर्न की उम्मीद रख पाना लगभग नामुमकिन है। अगर सोच समझ कर सही analysis द्वारा स्टॉक्स का चयन किया जाए इस से बड़ा वेल्थ कमाने का जरिया और कोई नहीं है।

शेयर मार्केट में आप पैसा दो चीजों से बना सकते है या तो ट्रेडिंग या फिर इन्वेस्टिंग। इन्वेस्टिंग में यह काम लम्बी अवधि के लिए होता है और उसके लिए मार्केट के उतार चढ़ाव को सहने की क्षमता होनी चाहिए, वहीं दूसरी और अगर कोई ट्रेडिंग को अच्छी तरह सीख कर उसमे स्किल्ड हो पाता है तो बहुत ही कम समय में मोटा पैसा बनाना कोई बड़ी बात नहीं है।

पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन (Portfolio Diversification): डायवर्सिफिकेशन यानि की अपनी सभी इंवेस्टमेंट्स को एक ही जगह ना करके अलग अलग एसेट और सेक्टर में करना, ताकि अगर कल को रिसेशन और महामारी जैसे स्तिथि आ भी जाए तो कुछ पैसा ऐसी जगह रहे जो बाजार के उतार चढ़ाव में भी एक अच्छी रिटर्न दे सके और जो जरुरत पड़ने पर काम आ सके।

अगर आप जवान है, और रिस्क ले सकते है तो अपने पोर्टफोलियो का ज्यादा से ज्यादा से हिस्सा स्टॉक मार्केट में जरूर रखे। इसमें रिस्क तो है लेकिन आपके द्वारा इन्वेस्ट की गई कंपनियों में से कोई एक भी अगर अच्छा परफॉर्म करती है, तो वही एक स्टॉक ही आपको वेल्थी बनाने के लिए काफी है।

कंपनी में हिस्सेदारी (Owning a part of Company): आमतौर पर बड़ी कम्पनियों में इन्वेस्टमेंट बड़े कॉर्पोरेट्स और फाइनेंशियल फर्मों द्वारा की जाती है, जो करोड़ों अरबों में होती है लेकिन शेयर मार्केट एकमात्र ऐसा जरिया है जो हमे छोटी सी अमाउंट में भी एक कंपनी में हिस्सेदारी देने की काबिलियत देता है। शेयर यानि की कंपनी का एक हिस्सा और आप चाहे एक शेयर ही क्यों ना खरीदे फिर भी आप कंपनी में हिस्सेदार होते है।

कम पैसों में इन्वेस्टमेंट (Investment in very less Amount): किसी भी एसेट में इन्वेस्टमेंट की बात करे तो हर जगह निवेश के लिए एक मिनिमम मूल्य निर्धारित किया जाता  है। सिर्फ शेयर मार्केट ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां आप बहुत कम अमाउंट से भी इन्वेस्टमेंट शुरू करे सकते है। शेयर मार्केट में लगभग हर प्राइस के शेयर्स ट्रेड करते है जो 50 पैसे के लेकर लाखो तक के हो सकते है। इस तरह इन्वेस्टर एक छोटी सी अमाउंट से भी कंपनी के शेयर्स खरीद कर इन्वेस्टमेंट शुरू कर सकते है।

इन्वेस्टमेंट में लिक्विडिटी (Liquidity): लिक्विडिटी मतलब, आप कितनी आसानी से किसी शेयर को खरीद और बेच सकते है। स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी के जितने ज्यादा शेयर्स होंगे और जितने ज्यादा लोग उन्हें ट्रेड करेंगे, लिक्विडिटी उतनी ही ज्यादा होगी। ट्रेडिंग टाइम के दौरान हर सेकंड करोड़ों की संख्या में शेयर्स खरीदे और बेचे जाते है। इसलिए कुछेक स्थितियों को छोड़कर कोई भी ट्रेडिंग टाइम  दौरान के आसानी से शेयर्स को खरीद और बेच सकता है।

डिविडेंड और बोनस (Dividend and Bonus): कंपनिया समय समय पर अपने शेयरहोल्डर्स को उनकी इन्वेस्टमेंट के बदले डिविडेंड और बोनस शेयर के रूप में रिवॉर्ड देती रहती है। इन दोनों तरीको से कंपनी अपने मुनाफे का हिस्सा शेयरहोल्डर्स के साथ सांझा करती है जो की पैसिव इनकम का अच्छा साधन है।

इन्फ्लेशन से सुरक्षा (Protection from Inflation): शेयर मार्केट इन्फ्लेशन से सुरक्षा प्रदान कर सकता है, क्योंकि लॉन्ग टर्म में शेयरों पर रिटर्न इतिहासिक रूप से इन्फ्लेशन की दर से ज्यादा ही रही है। जब प्रोडक्ट और सर्विसेज की कीमतें बढ़ जाती है, तो पैसे की वैल्यू कम हो जाती है, जो लोगो की खर्च करने की क्षमता को कम कर देता है।

यहां पर यह नोट करना जरुरी है कि शेयर बाजार, शार्ट टर्म में अस्थिर हो सकता है, और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि स्टॉक हमेशा पॉजिटिव रिटर्न ही देंगे। एक अच्छी तरह से डाइवर्सिफाई पोर्टफोलियो जिसमें स्टॉक, बॉन्ड और cash का मिश्रण हो सकता है, इन्वेस्टर्स को इन्फ्लेशन से सुरक्षा देते हुए संभावित रिस्क को कंट्रोल करने और शेयर बाजार की रिटर्न को बेलेंस करने में मदद कर सकता है।

शेयर मार्केट के नुकसान – Share Market ke nuksan

हाई वोलेटिलिटी (High Volatility):शेयर मार्केट में हाई वोलेटिलिटी, एक ऐसी कंडीशन को कहते है जब शेयर्स के प्राइस बड़े उतार चढ़ाव के साथ तेजी बदलते है। यह इकोनॉमिक परिस्थितियों, राजनीतिक घटनाओं और इन्वेस्टर में डर की भावना सहित कई कारकों के कारण हो सकता है। हाई वोलेटिलिटी इन्वेस्टर के लिए अच्छा ट्रेडिंग निर्णय लेना मुश्किल बना सकती है और इससे बाजार में रिस्क और नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। इन्वेस्टर्स के लिए यह जरुरी है कि वे बाजार की स्थितियों पर कड़ी नजर रखें और कोई भी इन्वेस्टमेंट निर्णय लेने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह जरूर लें।

मार्केट क्रैश (Market Crash): शेयर मार्केट क्रैश यानि के मार्केट में लिस्टेड स्टॉक के प्राइस में अचानक बड़ी मात्रा में गिरावट। आमतौर पर यह बहुत ज्यादा वोलैटिलिटी और पैनिक सेलिंग के साथ होता है। आर्थिक गिरावट, राजनीतिक संकट, प्राकृतिक आपदा, मार्केट की धारणा में अचानक बदलाव और युद्ध सहित कई कारकों के कारण मार्केट क्रैश हो सकती है। शेयर की कीमतों में गिरावट कई महीनों या सालो तक चल सकती है जिसके इन्वेस्टर्स और अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

हाई ब्रोकरेज (High Brokerage): शेयर मार्केट में ब्रोकरेज, ब्रोकरेज फर्मों द्वारा अपने ग्राहकों की ओर से ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग को करने के लिए ली जाने वाली फीस को कहते है। ये फीस, फर्म और किए जा रहे ट्रेड के अनुसार अलग अलग हो सकती हैं। कुछ मामलों में यह फीस काफी ज्यादा हो सकती है, जिससे कुछ इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के लिए मुनाफा कमाना मुश्किल हो सकता है।

हालांकि यह याद रखना जरूरी है कि ब्रोकरेज फर्म जरूरी सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे रिसर्च और फाइनेंशियल सलाह। यह इन्वेस्टर्स को बेहतर फैसला लेने में मदद कर सकती हैं। इसके इलावा कई ऑनलाइन ब्रोकर अब कमीशन-फ्री ट्रेड ऑफर करते हैं, जो इन्वेस्टर्स के लिए शेयरों में ट्रेड और इन्वेस्ट करना किफायती बनाता है।

कंट्रोल का आभाव (Lack of Control): शेयर मार्केट में ऐसे बहुत से कारण है जो की इसकी परफॉर्मेस को प्रभावित कर सकते हैं और निवेशकों के लिए इनको कंट्रोल करना मुश्किल होता है। शेयर मार्केट को प्रभावित करने वाले कुछ कारकों में आर्थिक स्थिति, सरकारी नीतियां और ग्लोबल घटनाएं शामिल हैं। इसके इलावा, मार्केट के प्रति इन्वेस्टर्स का रवैया भी स्टॉक की कीमतों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

शेयर मार्केट में कंट्रोल की कमी के मुख्य कारणों में से एक यह है कि यह एक decentralized बाजार है, जिसमें कई अलग-अलग प्रतिभागी हैं और कोई भी एक एंटिटी नहीं है जो बाजार को कंट्रोल कर सके। इसके इलावा, शेयर बाजार कॉम्प्लेक्स है और लगातार संबंधित आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कारणों से प्रभावित होता है।

स्कैम्स और फ्रॉड (Scams and Frauds): शेयर मार्केट में घोटाले और धोखाधड़ी के मामले अक्सर सामने आते रहते है, जिनमे छोटे इन्वेस्टर अपनी कड़ी मेहनत की कमाई खो देते है। कुछ सामान्य प्रकार के स्टॉक मार्केट घोटालों में पंप-एंड-डंप स्कीम, इनसाइडर ट्रेडिंग और पोंजी स्कीम शामिल हैं। पंप-एंड-डंप स्कीम में, धोखेबाज कंपनी के बारे में झूठी जानकारी फैलाकर कृत्रिम रूप से स्टॉक की कीमत बढ़ा देते हैं। फिर वे अपने शेयरों को ज्यादा कीमत पर “डंप” यानि बेच देते हैं, जिससे ज्यादा कीमत पर स्टॉक खरीदने वाले इन्वेस्टर्स को काफी नुकसान होता है।

इनसाइडर ट्रेडिंग तब होती है जब कोई व्यक्ति शेयरों में ट्रेडिंग करने के लिए प्राइवेट जानकारी का इस्तेमाल करता है। यह अवैध है और धोखाधड़ी मानी जाता है। पोंजी स्कीम एक प्रकार की निवेश धोखाधड़ी है, जहां कम टाइम में ज्यादा रिटर्न का वादा करके इन्वेस्टर्स को ठगा जाता है। इन्वेस्टर्स लिए इन घोटालों से अवगत होना और इन्वेस्ट करने से पहले मार्केट और स्टॉक की एनालिसिस करना बहुत जरुरी है।

कम्प्लेक्सिटी (Complexity): शेयर बाजार कई कारणों से काम्प्लेक्स हो सकता है। इनमे से एक कारण इन्वेस्टमेंट के लिए लिस्टेड शेयरों और अन्य एसेट्स की भारी संख्या है। चुनने के लिए इतने सारे विकल्पों के साथ इन्वेस्टर्स के लिए यह जानना मुश्किल हो सकता है कि कौन से स्टॉक को खरीदना या बेचना है और कब ऐसा करना है। इसके इलावा शेयर मार्केट , आर्थिक, राजनीतिक और और बहुत सारे ग्लोबल कारणों से प्रभावित होता है, जिससे यह अनुमान लगाना मुश्किल हो सकता है कि आगे क्या होगा।

शेयर बाजार में एक और काम्प्लेक्स भाग डेरिवेटिव यानि की options और futures है। डेरिवेटिव जोखिम भरे हो सकते हैं, खासकर उन इन्वेस्टर्स के लिए जो इसे पूरी तरह से नहीं समझते और बस जल्दी पैसा कमाने के लिए इनमे ट्रेड करते हैं। इसके अलावा, शेयर मार्केट में बहुत सारे टेकनिकल analysis और काम्प्लेक्स mathematical मॉडल शामिल होते हैं, जिन्हें समझना कुछ इन्वेस्टर्स के लिए मुश्किल हो सकता है।

शार्ट टर्म फोकस (Short Term Focus): कुछ इन्वेस्टर शेयर मार्केट में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग की जगह, शार्ट टर्म फोकस के साथ इन्वेस्ट करते है। यह शार्ट टर्म फोकस कई चीजों से प्रेरित हो सकता है, जैसे कम टाइम के ज्यादा रिटर्न इन पाने की चाह और सोशल मीडिया का प्रभाव आदि। यह शार्ट टर्म फोकस नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि इसमें इन्वेस्टर किसी कंपनी के असल फंडामेंटल, फाइनेंशियल कंडीशन और भविष्य के विकास की संभावनाओं पर ध्यान देने की जगह फोमो में आकर भावनात्मक निर्णय लेते है। इस तरह जल्दी में और बिना सोचे समझे लिए निर्णय इन्वेस्टमेंट में नुक्सान का कारण बन सकते है।

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निष्कर्ष – Conclusion

अंत में यही कहना चाहूंगा की किसी भी इन्वेस्टमेंट साधन की तरह शेयर मार्केट भी रिस्क से मुक्त नहीं है, लेकिन समझदारी और एनालिसिस करने के बाद लिए गए इन्वेस्टमेंट निर्णय से इन रिस्क को काबू में रखकर हाई रिटर्न का लाभ उठाया जा सकता है। इसी लिए किसी भी तरह के इन्वेस्टमेंट निर्णय लेने से पहले अपनी समझ अनुसार एनालिसिस जरूर कर ले और सब कुछ जान समझ कर ही अपने पैसा किसी स्टॉक में इन्वेस्ट करे।

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