किसी भी तरह की इन्वेस्टमेंट करने पर उससे अच्छी रिटर्न पाने के लिए हमे उस इन्वेस्टमेंट में कुछ समय के लिए रहने के लिए सलाह दी जाती हैं। म्यूचुअल फंड और कुछ और इनवेस्टमेंट साधनों में पैसे को एक निश्चित समय के लिए इन्वेस्ट रखने की पाबंदी होती है। यानी की आप एक फिक्स्ड टाइम पीरियड के लिए अपनी इन्वेस्टमेंट के पैसे को निकलवा नही सकते। जिस टाइम पीरियड में पैसों को निकाला नही जा सकता उसे लॉक इन पीरियड कहते है। आज के आर्टिकल “Lock in period meaning in Hindi” में हम लॉक इन पीरियड के कांसेप्ट को जानने और समझने को कोशिश करेंगे।
लॉक इन पीरियड क्या है – Lock in period meaning in Hindi
लॉक इन पीरियड, उस समय अवधि को कहा जाता है जिसके दौरान आप अपनी इन्वेस्ट की गई रकम ना निकलवा सकते है, ना ट्रांसफर कर सकते है और ना ही बेच सकते है। आम तौर पर लॉक इन पीरियड ऐसे इन्वेस्टमेंट साधन पर लागु होता है जिनमे अच्छी रिटर्न पाने के लिए के लिए एक निश्चित समय के लिए पैसों का इन्वेस्ट रहना जरूरी है या फिर टैक्स से जुड़े कारणो के लिए भी लॉक इन पीरियड लागू हो सकता है। उदाहरण के लिए IPO में स्टॉक के लिस्ट हो जाने के बाद बड़े इन्वेस्टर के लिए स्टॉक कुछ समय के लिए लॉक इन पीरियड में रहते है। ऐसा ज्यादा सेलिंग के कारण मार्केट में स्टॉक के प्राइस को ज्यादा गिरने से रोकने के लिए किया जाता है जिससे रिटेल इन्वेस्टर को नुकसान ना हो। ऐसे हीं कई म्यूचुअल फंड हो सकते है जैसे ELSS स्कीम जहां पर 3 साल का लॉक इन पीरियड होता है, बैंक FD जहां मैच्योरिटी तक पैसा लॉक इन पीरियड में रहता है, PPF और NPS आदि।
लॉक इन पीरियड क्यों जरुरी है – Lock in period kyu jaruri hai
लॉक इन पीरियड इन्वेस्टर को अपने इन्वेस्टमेंट गोल पर अडिग रहने पर मदद करता है। कई बार इन्वेस्टर ऐसी रिस्ट्रिक्शन ना होने पर मार्केट सेंटीमेंट के चलते समय से पहले ही अपने इन्वेस्टमेंट को इनकैश कर लेते है जिनसे उनकी इन्वेस्टमेंट पर अच्छी रिटर्न नहीं बन पाती।
IPO के केस में स्टॉक्स के एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाने पर बड़े इन्वेस्टर पर उन्हें एक निश्चित समय से पहले बेचने पर पाबंदी होती है। ऐसा करना स्टॉक के प्राइस को नेगेटिव और इन्वेस्टर को लॉस होने से बचाता है।
लॉक इन पीरियड के कारण इन्वेस्टर अपनी इन्वेस्टमेंट पर लंबे समय के लिए टीके रहते है जिस से वह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्सेशन का फायदा उठा सकते है।
कई इनवेस्टमेंट टूल्स जैसे PPF और NPS आदि में कई सालो का लॉक पीरियड जरूरी होता है। यह लॉक इन पीरियड इन इन्वेस्टमेंट में स्टेबिलिटी लाने का काम करता है। स्थिर मात्रा में फंड होने पर फंड मैनेजर अच्छा रिटर्न पाने के लिए उन्हें सही एसेट में इन्वेस्ट कर सकते है।
अलग अलग इंवेस्टमेंट्स के लॉक इन पीरियड – Alag alag investments ke lock in period
PPF यानी की पब्लिक प्रोविडेंड फंड में लगभग 15 साल का लॉक इन पीरियड होता है।
म्यूचुअल फंड में ELSS यानी की टैक्स सेविंग स्कीम्स 3 साल के लॉक इन पीरियड के साथ आती है। इसी के साथ क्लोज एंडेड फंड जिन्हें की FMP भी कहते है, में कुछ सालो का लॉक इन पीरियड होता है जिसके बाद इन्वेस्टमेंट मैच्योरिटी पर पैसे इन्वेस्टर को दे दिए जाते है।
Hedge फंड में 30 से 90 दिनों का लॉक इन पीरियड होता है।
टैक्स सेविंग FD में 5 सालो का लॉक इन पीरियड हो सकता है।
ULIP यानी यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान में 5 सालो का लॉक इन पीरियड होता है।
NPS में कुछ केस को छोड़ कर रिटायरमेंट तक का लॉक इन पीरियड होता है।
NSC यानी नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में 5 साल का लॉक इन पीरियड होता है।
गवर्मेंट बॉन्ड्स का लॉक इन पीरियड उनके टेन्योर पर निर्भर करता है।
लॉक इन पीरियड के फायदे – Lock in period ke fayde
इन्वेस्टमेंट स्टेबिलिटी: लॉक इन पीरियड आपकी इन्वेस्टमेंट में स्थिरता लाने कर काम करता है। इस कारण आप अपनी इन्वेस्टमेंट को जल्दी निकलवा या उसमें बदलाव नहीं कर सकते जिस कारण उस पर शॉर्ट टर्म मार्केट fluctuation का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ज्यादा रिटर्न: लंबे समय तक इन्वेस्टमेंट में बने रहने के कारण उस से मिलने वाली रिटर्न की संभावना भी ज्यादा हो जाती है।
टैक्स बेनिफिट: अपनी इन्वेस्टमेंट पर टैक्स बेनिफिट लेने के लिए आपको एक फिक्स्ड समय तक उसमे बने रहना पड़ता है। लॉक इन पीरियड से टैक्स रिटर्न में बेनिफिट लेने में मदद करती है।
लॉक इन पीरियड के नुक्सान – Lock in period ke nuksaan
Early withdrawal पर पेनल्टी: कई सारे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में अगर आप मैच्योरिटी या लॉक इन पीरियड से पहले पैसे निकालते है तो आपको पेनल्टी भरनी पड़ सकती है। यह पेनल्टी आपकी इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को कम करके आपके नुकसान का कारण बन सकती है।
लिक्विडिटी की कमी: लॉक इन पीरियड का सबसे बड़ा नुक्सान लिक्विडिटी की कमी है। जरुरत के समय पर आप अपने ही पैसों को निकलवा या इस्तेमाल नही कर सकते जिस कारण कई तरह के नुक्सान उठाने पड़ सकते है।
मार्केट रिस्क: लॉक इन पीरियड में पड़ी इन्वेस्टमेंट पर आपका कोई कंट्रोल नहीं रहता। अगर मार्किट कंडीशन बदलती है और इन्वेस्टमेंट की वैल्यू कम होती है तो उस केस में भी आप अपनी इन्वेस्टमेंट को मैनेज करने के लिए कुछ नहीं कर पाते।
लिमिटेड कंट्रोल: लॉक इन पीरियड में पड़ी इन्वेस्टमेंट पर आपका कंट्रोल ना के बराबर होता है। यह बात उन लोगो के लिए फायदेमंद नहीं है जो अपनी इन्वेस्टमेंट को एक्टिवली मैनेज करना चाहते है।
मौके का हाथ से निकलना: इन्वेस्टमेंट जगत में समय समय पर ऐसे मौके आते रहते है जिनके चलते आप सही समय में इन्वेस्टमेंट करके एक अच्छी रिटर्न पा सकते है। लेकिन ऐसे मौकों का लाभ उठाने के लिए आपके पास पैसा भी होना चाहिए। लॉक इन पीरियड आपके लिए इस तरह के मौकों पर नुक्सान का कारण बन सकता है क्युकी इसके कारण पैसे होते हुए भी आप उसका प्रयोग नहीं कर सकते।
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निष्कर्ष – Conclusion
लॉक पीरियड के दौरान हमे अपनी इन्वेस्टमेंट को निकलने या उस में किसी भी तरह की ट्रांजेक्शन करने पर रोक होती है। इसके कुछ फायदे होने के साथ कुछ नुक्सान भी है। रिटर्न और टैक्सेशन के लिहाज से देखे तो यह हमारे लिए फायदेमंद है वही जरुरत के समय में यह पैसा हमारे काम नहीं आ पाता और आ भी जाए तो इसके लिए हमे पेनल्टी देनी पड़ सकती है। इस सब तथ्यों को जानने के बाद हम यही कह सकते है की किसी भी लॉक इन वाली इनवेस्टमेंट में पैसे डालने से पहले अपने फाइनेंशियल गोल, रिस्क, और इन्वेस्टमेंट के टाइम पीरियड को अच्छे से समझ ले। बेहतर यही है की जो पैसा आपके पास लिक्विड फॉर्म में पड़ा है, उसे ही ऐसी इन्वेस्टमेंट में डाले और इमरजेंसी की स्तिथि के लिए जरुरी पैसा अपने पास बचा कर रखें।