NPA Meaning in Hindi – जानिए बैंकिंग जगत में NPA क्या होता है

बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन की आमदन का मुख्यता लोगो और बिजनेस को दिए गए लोन की इंट्रेस्ट इनकम के रूप में होती है। यह लोन आम लोगो की जिंदगी में भी अहम् भूमिका निभाता है और उनको अपनी जरुरत का सामान जल्दी लेने में मदद करता है। लेकिन क्या हो अगर दिए जाने वाले लोन पर बैंक को इंट्रेस्ट ना मिले या फिर इंट्रेस्ट अमाउंट को रिकवर करना ही मुश्किल हो जाए। ऐसे लोन को बैंकिंग टर्म में Bad loan कहा जाता है, और जब इनसे कोई भी पेमेंट नहीं होती तो उसे NPA यानि की नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया जाता है। NPA बैंकिंग जगत में बहुत महत्व रखता है और आज इस आर्टिकल “NPA Meaning in Hindi” में हम इसी को जानने को समझने की कोशिश करेंगे।

NPA Meaning in Hindi
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NPA क्या होता है – NPA Meaning in Hindi

NPA मतलब Non Performing Asset – नॉन परफॉर्मिंग एसेट।

NPA मतलब वह एसेट जिनसे बैंक को किसी तरह को इनकम नही हो रही है। बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन की इनकम का एक बड़ा हिस्सा उसके द्वारा दिए जाने वाले लोन के इंटरेस्ट रूप में आती है। इस इंट्रेस्ट इनकम का इस्तेमाल बैंक अपने खर्चों का पालन करने और अपने पास चल रहे एकाउंट्स पर इंट्रेस्ट आदि देने के लिए करता है। इस कारण लोन बैंक के लिए एक एसेट का काम करते है क्योंकि यह उनके लिए आमदन का एक साधन है। RBI के मुताबिक हर वह लोन जिस से 90 दिन से ज्यादा इनकम या किसी भी इंस्टॉलमेंट का भुगतान नहीं हुए है, वह NPA की कैटेगरी में आते है।

NPA के केस में बैंक सिक्योर्ड लोन के बदले गिरवी रखी एसेट की नीलामी करके और अनसिक्योर्ड लोन के केस में रिकवरी एजेंसी को लोन डिसकाउंट में बेच कर अपने पैसों की भरपाई कर सकता है।

NPA कितनी तरह की होते है – NPA kitni tarah ke hote hai

NPA को मुख्यता तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

सब स्टैंडर्ड एसेट: अगर कोई एसेट 12 महीने या उससे बराबर समय के लिए NPA रहे तो उसे सब स्टैंडर्ड एसेट कहा जाता है।

डाउटफुल एसेट: 12 महीने से ज्यादा समय के लिए NPA रहने वाली एसेट को डाउटफुल एसेट की केटेगरी में रखा जाता है।

Loss: ऐसी एसेट जिनकी रिकवरी वैल्यू ना के बराबर हो या जिनसे इनकम का कोई रास्ता ना बचा हो उसे लॉस एसेट कहा जाता है।

NPA के कारण – NPA ke karan

इकोनॉमी का अच्छा ना होना: अगर देश की इकोनॉमिक स्तिथि अच्छी ना हो तो नए बिजनेस को चैलेंज का सामना करना पड़ता है। अगर बिजनेस खराब कंडीशन में परफॉर्म ना कर पाए तो उनके द्वारा लिए गए लोन पर डिफॉल्ट करने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

फ्रॉड: लोन देने के लिए बैंक को लोन लेने की इच्छुक पार्टी या व्यक्ति की creditworthiness के साथ कई और महत्वपूर्ण फैक्टर्स को चेक करना करना पड़ता है। अगर इन फैक्टर्स को चेक करने में किसी भी तरह को कमी रहती हैं तो वह आगे चलकर फ्रॉड का कारण बन सकती है।

प्राकृतिक कारण: कई बार प्राकृतिक कारण जैसे की कोरोना, भूकंप या सुनामी आदि से केस में बिजनेस अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते और लॉस में चले जाते है। ऐसी स्थिति में उनकी लोन चुकाने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है, और यह बाते बैंको के NPA बड़ने का कारण बनती है।

इंडस्ट्रियल कारण: किसी इंडस्ट्री में रेगुलेटरी चेंज, इकोनॉमिक फैक्टर और टेक्नोलॉजी में बदलाव आदि उसके फाइनेंशियल हेल्थ और ऑपरेशन पर बुरा प्रभाव डाल सकते है। इंडस्ट्री की फाइनेंशियल हेल्थ के खराब होने पर उसके लोन के डिफॉल्ट करने के चांस बड़ जाते है।

NPA के प्रभाव – NPA ke prabhav

बैंक की मार्केट वैल्यू पर बुरा प्रभाव: ज्यादा NPA का होना बैंक की मार्केट वैल्यू के लिए अच्छा नहीं माना जाता। NPA’s बैंक की फाइनेंशियल स्टेटमेंट का एक अहम भाग होते है, और अगर इनकी रेश्यो अच्छी ना हो तो बैंक की मैनेजमेंट को काबिल नही माना जा सकता।

प्रॉफिट में कमी: ज्यादा NPA होने के कारण बैंक को ज्यादा रकम प्रोविजन, यानी की NPA के केस में होने वाले पैसे के नुकसान की भरपाई के लिए रखनी पड़ती है। इस से बैंक की कुल प्रॉफिटेबिलिटी में कमी आती है।

ज्यादा इंट्रेस्ट रेट: NPA के कारण आई परेशानी के चलते बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन दिए जाने वाले लोन के इंट्रेस्ट रेट को बड़ा सकता है, जिसके चलते आम लोगो को लोन लेने पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

NPA को कण्ट्रोल करने के तरीके – NPA ko control karne ke tarike

बैंक अपने लोन पोर्टफोलियो को diversify करके NPA के रिस्क को अलग अलग सेक्टर और लोगो में बांट सकते है। अपने कस्टमर्स में वह एक ही सेगमेंट के लोग और बिजनेस में ना रखकर अलग अलग इंडस्ट्री और हर वर्ग के लोगो में विभाजित कर सकता है।

रिकवरी मैकेनिज्म में सुधार और उसे और मजबूत बनाना NPA को कंट्रोल में रखने में एक अहम भूमिका निभा सकता है। इसके लिए बैंक और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन द्वारा लीगल एक्शन, गिरवी रखी एसेट का जल्दी निपटारा करना, कडे रूल और रेगुलेशन जैसे कदम उठाए जा सकते है।

रेगुलेटरी बॉडी द्वारा एक ऐसे सिस्टम की स्थापना जो की लोगो के क्रेडिट स्कोर और रीपेमेंट की परफॉरमेंस का अच्छे से ट्रैक रिकॉर्ड रखे। रेगुलेटरी बॉडी और बैंक आपस में सहमति से काम करे और NPA को कंट्रोल करने के लिए समय समय पर कड़े कदम उठाए।

रेगुलेटरी बॉडी बैंको और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन को अपनी गाइडेंस और सपोर्ट देकर उन्हें NPA को अच्छी तरह से मैनेज करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

बैंकिंग और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन में के काम करने वाले स्टाफ को प्रॉपर ट्रेनिंग और रिस्क मैनेजमेंट से अवगत कराया जाए। इसमें इकोनॉमी में बदलाव, इंडस्ट्री में चल रहे ट्रेंड, और रेगुलेटरी जरूरतों को ध्यान में रखा जा सकता है।

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निष्कर्ष – Conclusion

NPA फाइनेंशियली तौर पर एक महत्वपूर्ण रेश्यो है, जो बैंकिंग सिस्टम और इकोनॉमी की चल रही स्तिथि को रिप्रेजेंट करता है। इसके कारण और रोकथाम को समझना रेगुलेटर्स के लिए एक बड़ी जिम्मेवारी है, क्युकी एक लिमिट से ज्यादा NPA भी किसी फाइनेंशियल संस्था की स्तिथि पर बुरा प्रभाव डालता है। लोन देने से पहले और बाद अगर सही कदम उठाए जाए तो इन्हे काफी हद तक कंट्रोल में रखा जा सकता है।

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