Stock split meaning in Hindi – जानिए स्टॉक स्प्लिट क्या होता है और कैसे काम करता है

अगर भारतीय शेयर बाजार के सबसे महंगे स्टॉक की बात की जाए तो सबसे पहले हमारे दिमाग में MRF का नाम आता है। इस शेयर की कीमत लगभग 1 लाख रुपए के आसपास है और इसके प्राइस को देखकर आपके मन में यही ख्याल आता होगा की जरूर इस कंपनी का परफॉर्मेंस बहुत अच्छी होगा तभी इसका प्राइस इतना ज्यादा है। लेकिन इसके पीछे का कारण कुछ और ही है। उस कारण का नाम है MRF के स्टॉक का कभी भी स्प्लिट ना किया जाना। अब आपके मन में यह सवाल होगा की आखिर यह स्टॉक स्प्लिट होता क्या है और इसके ना होने से शेयर की कीमत कैसे बढ़ जाती है? इन्ही सब बातो को हम आज के आर्टिकल ’Stock split meaning in Hindi’ में जानने की कोशिश करेंगे।

Stock split meaning in hindi
Stock split by Nick Youngson CC BY-SA 3.0 Pix4free

स्टॉक स्प्लिट क्या होता है – Stock split meaning in Hindi

स्टॉक स्प्लिट यानी की कंपनी के शेयर का विभाजन या कंपनी के शेयर का कई भागों में बांटा जाना। आमतौर पर जब कंपनी के शेयर के भाव काफी ज्यादा हो जाते है तो उन्हें बैलेंस करने के लिए कंपनी स्टॉक स्प्लिट का सहारा लेती है। स्टॉक स्प्लिट के जरिए एक शेयर को कई भागो में बांट दिया जाता है जिससे उसका प्राइस भी कई भागो में बंटकर कम हो जाता है। इससे कम कैपिटल वाले लोग भी इस शेयर में ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग कर पाते है। स्टॉक को स्प्लिट करने के बाद मार्केट में इनकी संख्या बढ़ जाती है जिस से इसमें लिक्विडिटी आती है यानी के ज्यादा मात्रा में शेयर होने के कारण इन्हें आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है की स्टॉक स्प्लिट से शेयर की सिर्फ गिनती बढ़ती है जबकि कंपनी की मार्केट वैल्यू और आपकी इन्वेस्टमेंट वैल्यू एक सी रहती है।

स्टॉक स्प्लिट का उदाहरण – Example of stock split

अक्टूबर 2021 में IRCTC ने अपने शेयर का 1:5 रेश्यो में स्टॉक स्प्लिट करने की घोषणा की थी जिसकी फेस वैल्यू 10 रूपए थी। 1:5 रेश्यो यानी की IRCTC के एक शेयर को पांच भागो में विभाजित किया जाना था। यहां इस बात पर ध्यान दे की कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू और मार्केट वैल्यू अलग अलग होती है और स्टॉक स्प्लिट फेस वैल्यू पर डिक्लेयर किया जाता है। इस केस में अगर शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपए थी तो उसे 2 रुपए के 5 भागो में विभाजित कर दिया गया और वहीं अगर शेयर मार्केट में 1000 में ट्रेड हो रहा था तो स्प्लिट के बाद हर शेयर का प्राइस 200 रुपए रह गया होगा। यानी अगर इन्वेस्टर के पास कंपनी के 100 शेयर थे तो स्टॉक स्प्लिट के बाद अब उन शेयर की संख्या बढ़कर 500 हो गई होगी। शेयर की इस बढ़ी हुई संख्या को स्प्लिट के कुछ दिन बाद ही इन्वेस्टर के डीमैट अकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाता है। स्टॉक स्प्लिट के पूरे प्रोसेस के दौरान सिर्फ स्टॉक की संख्या में ही बढ़ोतरी होती जबकि इन्वेस्टमेंट की वैल्यू उतनी ही रहती है। नीचे दिए विवरण से आपको यह बात क्लियर हो जाएगी।

स्टॉक स्प्लिट से पहले इन्वेस्टमेंट की वैल्यू:

शेयर का प्राइस 1000/-

शेयर की संख्या 100

इन्वेस्टमेंट वैल्यू 1000*100= 100,000/-

स्टॉक स्प्लिट के बाद इन्वेस्टमेंट की वैल्यू होगी:

शेयर का प्राइस 1000/5= 200/-

शेयर की संख्या 100*5 = 500

इन्वेस्टमेंट वैल्यू 200*500= 100,000/-

ऊपर दी गई कैलकुलेशन से यह बात साफ हो जाती है की स्टॉक स्प्लिट के कारण शेयर की गिनती तो 100 से 500 हुई लेकिन शेयर का प्राइस भी 1000 से 200 रुपए रह गया। इस तरह स्टॉक स्प्लिट सिर्फ शेयर की गिनती को बढ़ाता है ना की इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को।

कंपनी स्टॉक स्प्लिट क्यों करती है – Company stock split kyu karti hai

एक कंपनी मुख्यता स्टॉक स्प्लिट दो कारणों से करती है:

स्टॉक को ज्यादा महंगा होने से रोकने के लिए: अगर एक कंपनी की परफॉर्मेंस अच्छी है तो उसके शेयर के प्राइस में बढ़ोतरी होना लाजमी है। एक लंबे समय तक अगर कंपनी स्टॉक को स्प्लिट नही करती तो उसका प्राइस इतना बढ़ जाता है की छोटे ट्रेडर्स के लिए उसमे ट्रेड या इन्वेस्ट कर पाना मुमकिन नही होता। उदाहरण के लिए MRF का शेयर जो स्प्लिट ना होने के कारण काफी महंगा हो चुका है। महंगा होने के कारण यह आम लोगो की पहुंच से बाहर हो जाता है और लोग चाह कर भी इसमें इन्वेस्ट नही कर पाते। इसलिए स्टॉक स्प्लिट द्वारा शेयर के दाम कम किए जाते है ताकि सभी लोग इसमें आसानी से ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग कर सके।

लिक्विडिटी को बढ़ाने के लिए: लिक्विडिटी यानी कितनी आसानी से किसी कंपनी के शेयर खरीदे और बेचे जा सकते है। अगर शेयर के दाम ज्यादा और संख्या कम होगी तो इसे खरीदने और बेचने में दिक्कत आ सकती है क्युकी ज्यादा दाम के कारण लोग इसे खरीदेंगे नही और अगर खरीदना भी चाहे तो हो सकता है यह मार्केट में आसानी के उपलब्ध ना हो। इन्ही कारण से स्टॉक स्प्लिट द्वारा शेयर का प्राइस कम और उसकी क्वांटिटी को बढ़ा दिया जाता है ताकि इन्वेस्टर जब चाहे इन्हे बिना किसी परेशानी के खरीद और बेच सके।

स्टॉक स्प्लिट का इन्वेस्टमेंट पर असर – Stock split ka investment par asar

स्टॉक स्प्लिट का इन्वेस्टमेंट या शेयर की वैल्यू पर कोई फर्क नही पड़ता। स्टॉक स्प्लिट के कारण सिर्फ शेयर की गिनती में बढ़ोतरी होती है जिसके कारण इनका प्राइस भी कम हो जाता है। जहां पहले इन्वेस्टर के पास ज्यादा दाम पर कम शेयर थे वहीं पर स्टॉक स्प्लिट के बाद उसके पास कम दाम में ज्यादा शेयर हो जाते है।

रिवर्स स्टॉक स्प्लिट क्या होता है – Reverse stock split kya hota hai

रिवर्स स्टॉक स्प्लिट में एक कंपनी अपने बाजार में मौजदा शेयर को merge करके उनकी संख्या को कम कर देती है। यह स्टॉक स्प्लिट का विपरीत कॉरपोरेट एक्शन होता है। जहां स्टॉक स्प्लिट में शेयर को बाटने पर उनकी संख्या ज्यादा हो जाती है वहीं रिवर्स स्टॉक स्प्लिट में शेयर को आपस में merge करने पर उनकी संख्या कम हो जाती है। यहां पर इस बात का ध्यान रहे की दोनो ही केस में शेयर की वैल्यू पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता सिर्फ उनकी गिनती घटती या बढ़ जाती है।

यह भी जानिए: Technical analysis in hindi – टेक्निकल एनालिसिस क्या है क्यों और कैसे सीखें

निष्कर्ष – Conclusion

स्टॉक स्प्लिट एक कारपोरेट एक्शन है जो लगभग हर कंपनी द्वारा समय समय पर लिया जाता है। यह एक कंपनी के शेयर को आम लोगो के लिए अफोर्डेबल बनाता है और शेयर बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने का काम करता है। उम्मीद है की हमारे आर्टिकल से आपके स्टॉक स्प्लीट से जुड़े सवालों के जवाब मिल गए होंगे। अगर अभी भी आपके मन में कोई सवाल है तो आप हमसे कमेंट सेक्शन में पूछ सकते है।

Liked our Content? Spread a word!

Leave a Comment