REIT Kya hai – जानिए REIT क्या है और कैसे काम करता है

आजकल के महंगाई के जमाने में लोगो के लिए इन्वेस्टमेंट करने के लिए पैसा बचा पाना बहुत मुश्किल है, और अगर कहीं रियल एस्टेट यानि की किसी प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करना हो तो जमीन के भाव सुनते ही होश उड़ जाए। ऐसे में REIT एक ऐसा तरीका है जो आपको कम से कम पैसों में भी रियल एस्टेट को खरीदे बिना ही उसके द्वारा दी गई रिटर्न का लाभ उठाने का फायदा देता है। भारत में REIT एक नया कांसेप्ट है, और काफी सारे लोगो को इसके बारे में जानकारी भी नहीं है। ऐसे में हम आज के इस आर्टिकल “REIT Kya hai” में REIT और उससे से जुड़े अभी सवालों को कवर करने की कोशिश करेंगे।

REIT Kya hai?

REIT क्या है? – REIT kya hai?

REIT का मतलब होता है “Real Estate Investment Trust”। ये इन्वेस्टमेंट का वह साधन है जिसमे रियल एस्टेट से जुड़े माध्यमों में इन्वेस्ट करके मुनाफा कमाया जाता है। भारत में यह यह पहली बार 2007 में शुरू किया गया था जिसके द्वारा इन्वेस्टर्स किसी प्रॉपर्टी को खरीदे बिना ही उसमे इन्वेस्ट कर पाते है। शेयर मार्किट की तरह ही REIT को भी सेबी रेगूलेट करता है। इसमें रिटर्न मुख्य रूप से कमर्शियल प्रॉपर्टी जैसे की ऑफिस, शॉपिंग माल, होटल में इन्वेस्टमेंट या किराए पर देके अर्जित की जाती है।

अगर आप भी उन लोगो में है जो ऐसे ऑप्शन में इन्वेस्ट करना चाहते है जो आपके पोर्टफोलियो को Diversify करने के साथ साथ ही रेगुलर इनकम भी दे सके, तो REIT आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन यहां पर इस बात का ध्यान रखना भी जरुरी है की हर इन्वेस्टमेंट ऑप्शन की तरह REIT के भी अपने रिस्क और जोखिम होते है, और इनमे इन्वेस्ट करने से पहले इनकी पूरी जानकारी और रिसर्च कर लेना बहुत जरुरी है।

REIT कैसे काम करता है? – REIT kaise kaam krta hai?

REIT के सेटअप से लेकर आम लोगो द्वारा उसमे इन्वेस्टमेंट करने तक निचे दिए स्टेप फॉलो किए जाते है:

REIT की कार्यप्रणाली और स्ट्रक्चर म्यूचुअल फण्ड की तरह ही होता है। भारत में REIT का कांसेप्ट काफी नया है जिसकी पहली गाइडलाइन सेबी ने 2007 में जारी की थी। अभी की गाइडलाइंस 2014 की अप्रूवल के मुताबिक है। जिस एंटिटी को REIT की शुरुआत करनी हो उसे कंपनी या कारपोरेशन के रूप में स्थापित होना चाहिए जिसका मुख्य काम रियल एस्टेट में होना चाहिए। इसमें स्पोंसर, फण्ड मैनेजर और ट्रस्टी शामिल होते है।

REIT की स्थापना के लिए सबसे पहले एक रियल एस्टेट कंपनी स्पोंसर के रूप में काम करते हुए एक ट्रस्टी को अपॉइंट करती है। यह ट्रस्टी सभी रियल एस्टेट एसेट को कंट्रोल करता है। ट्रस्टी एक मैनेजर को अपॉइंट करता है जो ट्रस्टी की और से रियल एस्टेट प्रॉपर्टी में इन्वेस्टमेंट करने और उसे मैनेज करने का काम करता है। इसके बाद REIT अपनी एसेट क्लास अनुसार रजिस्टर होने के लिए अप्लाई कर सकती है। रजिस्टर या स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट होने के बाद लोग इसमें इन्वेस्टमेंट कर सकते है। REIT की शुरुआत करने के लिए:

  • कंपनी की कुल एसेट वैल्यू कम से कम 500 करोड़ होनी चाहिए।
  • अपनी 90% की टैक्सेबल इनकम इन्वेस्टर्स में डिविडेंड के रूप में बांटनी पड़ती है।
  • 80% की इन्वेस्टमेंट इनकम देने वाली प्रॉपर्टीज में होनी चाहिए।
  • 20% की इन्वेस्टमेंट अन्य एसेट जैसे की stock, बांड आदि में की जा सकती है।
  • सिर्फ 10% तक इन इन्वेस्टमेंट अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में की जा सकती है।

भारत में मुख्यता इस समय तीन REIT है:

Brookfield India Real Estate Trust

Embassy Office Parks REIT

Mindspace Business Parks REIT

REIT कितनी तरह के होते है? –  REIT kitni tarah ke hote hai?

अपनी इन्वेस्टमेंट के प्रकार के अनुसार REIT को मुख्यता 6 भागो में बांटा गया है:

इक्विटी REITs – Equity REITs: यह सबसे पॉपुलर REIT की किस्म है। इसमें सबसे ज्यादा इन्वेस्ट प्रॉपर्टीज और रियल एस्टेट में किया जाता है जहां से किराए के रूप में इनकम होती है।

मॉर्गेज REITs – Mortgage REITs: इक्विटी REIT की तरह ही यह REIT भी रियल एस्टेट में ही इन्वेस्ट करते है, सिर्फ फर्क यही है की इनकी इनकम किराए के बजाए बेची गई प्रॉपर्टीज की EMI और इंटरेस्ट के रूप में होती है।

हाइब्रिड REITs – Hybrid REITs: इनकी इनकम में दोनों रेंटल और इंटरेस्ट से हुआ मुनाफा शामिल है।

प्राइवेट REITs – Private REITs: इनमे सीमित गिनती में इन्वेस्टर शामिल होते है और यह प्राइवेट प्लेसमेंट की तरह काम करते है। यह ना तो सेबी के अंडर रजिस्टर्ड होते है और ना ही किसी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होते है।

पब्लिकली ट्रेडेड REITs – Publicly Traded REITs: जैसे की नाम से ही जाहिर है यह सेबी द्वारा रजिस्टर्ड और स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होते है। स्टॉक की तरह लोग इनके शेयर एक्सचेंज से खरीद और बेच सकते है।

Public but not listed REITs: इस तरह के ट्रस्ट सेबी के साथ रजिस्टर्ड होते है लेकिन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट नहीं होते। यह लिस्टेड REIT के मुकाबले कम ट्रेड होते है और इनमे वोलैटिलिटी भी कम रहती है।

REIT में कैसे इन्वेस्ट करे? – REIT me kaise invest kare?

REIT में इन्वेस्टमेंट निचे लिखे तरीको से की जा सकती है:

IPO के दौरान – During IPO: स्टॉक मार्किट की तरह ही कोई भी REIT में IPO और FPO द्वारा लिस्ट और फण्ड जुटा सकता है। IPO के दौरान इन्वेस्टर REIT में इन्वेस्ट कर सकते है, जिसके लिए वही सब स्टेप्स है जो किसी कंपनी के IPO में भाग लेने के लिए फॉलो किए जाते है। 2021 से पहले REIT में मिनिमम इन्वेस्टमेंट अमाउंट 50,000 थी लेकिन सेबी ने बाद में एक सर्कुलर जारी करके इसे 10,000 से 15,000 तक कर दिया। इसके इलावा मिनिमम खरीदारी की लिमिट भी 100 से 1 यूनिट कर दी गयी।

स्टॉक एक्सचेंज द्वारा – Through Stock Exchange: जैसा की पहले ही बताया गया है आईपीओ के बाद REIT स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हो जाते है और किसी आम स्टॉक की तरह ही ट्रेड करते है। यहां से भी इन्वेस्टर REIT के यूनिट्स आसानी से खरीद सकते है।

म्यूच्यूअल फण्ड द्वारा –  Through Mutual Fund: ऊपर बताए गए दोनों तरीको के इलावा इन्वेस्टर REIT में म्यूचुअल फण्ड द्वारा भी इन्वेस्ट कर सकते है। इस समय बहुत कम म्यूच्यूअल फण्ड हाउस यह सर्विस ऑफर करते है जो भविष्य में बढ़ने की पूरी सम्भावना है।

REIT इन्वेस्टमेंट में कितनी रिटर्न मिलती है? – investment me kitini return milti hai?

REIT में मिलने वाली रिटर्न कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, जैसे की इन्वेस्ट की गई प्रॉपर्टीज की परफॉरमेंस, EMI पर इंट्रेस्ट, प्रॉपर्टी का किराया आदि। इस समय भारत की लिस्टेड REIT की एवरेज यील्ड 6-8% के बीच में है लेकिन यह किसी भी तरह से फिक्स्ड नहीं है। यहां यह भी ध्यान देना जरुरी है की यह इकोनॉमी और इन्वेस्टर सेंटीमेंट पर भी निर्भर करता है।

REIT में इन्वेस्टमेंट के फायदे – REIT me investment ke fayde

डायवर्सिफिकेशन – Diversification: REITs के द्वारा हम अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई कर सकते है। यह एक अलग तरह का इन्वेस्टमेंट साधन है जो काफी तरह की प्रॉपर्टी, जिनमे ऑफिस बिल्डिंग, शॉपिंग मॉल, अपार्टमेंट और वेयरहाउस आदि में इन्वेस्ट करके मुनाफा कमाता है।

स्थायी इनकम – Stable Income: REITs आमतौर पर अपने इन्वेस्टर्स को डिविडेंड के रूप में स्टेबल और रेगुलर इनकम देते है। यह इनकम इन्वेस्टर्स को एक रेगुलर कैश फ्लो के रूप में फाइनेंशियली सपोर्ट करती है।

लिक्विडिटी – Liquidity: जैसा की पहले ही बताया गया है की REITs स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट होते है। एक्सचेंज में लिस्ट होने के कारण यह एक लिक्विड इन्वेस्टमेंट ऑप्शन के रूप में देखे जाते है जिस से इन्वेस्टर REIT के यूनिट आसानी से बिना किसी झंझट के खरीद और बेच सकते है।

Professional Management – Professional Management: REITs को प्रोफेशनल फण्ड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किया जाता है जो की अपने फील्ड में एक्सपर्ट होते है। इनकी निपुणता के कारण REIT बाकि इन्वेस्टमेंट साधन के मुकाबले एक अच्छी रिटर्न देने की क्षमता रखता है।

टैक्स में फायदे – Tax Benefits: REITs से होने वाली रेंटल इनकम और इंटरेस्ट आदि जो की प्रॉपर्टी में इन्वेस्टमेंट के कारण होती है, टैक्स फ्री होती है।

कम पैसों में इन्वेस्टमेंट – Low Investment Requirement: 2014 से पहले REITs में इन्वेस्टमेंट कम से कम 50,000 से की जा सकती थी। लेकिन बाद में यह लिमिट 10000 से 15000 के बीच कर दी गई। इस तरह बहुत ही कम अमाउंट में कोई भी आम नागरिक रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर सकता है।

REIT में इन्वेस्टमेंट के नुक्सान – REIT me investment ke nuksaan

हर इन्वेस्टमेंट साधन की तरह REIT में इन्वेस्टमेंट के कुछ नुक्सान है। REIT में इन्वेस्टमेंट से होने वाले घाटों के बारे में निचे बताया गया है।

मार्किट रिस्क – Market risk: किसी भी और इन्वेस्टमेंट की तरह REIT भी मार्किट रिस्क से बचा नहीं है। आपके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू रियल एस्टेट मार्किट के परफॉरमेंस के आधार पर रहती है।

इंटरेस्ट रेट से जुड़े रिस्क – Interest rate risk: REITs की रिटर्न पर इकॉनमी में चल रहे लोन और इन्वेस्टमेंट इंट्रेस्ट में बदलाव का असर पड़ सकता है। अगर इंटरेस्ट रेट बढ़ते है तो REIT के यूनिट्स खरीदना महंगा पड़ सकता है जिससे उन प्रॉपर्टीज इनकम में कमी आती है जिनमे REIT फण्ड ने इन्वेस्ट कर रखा है।

इन्फ्लेशन रिस्क – Inflation risk: इन्फ्लेशन यानि के महगांई। इसके कारण REIT द्वारा दी गई रिटर्न की वैल्यू कम हो जाती है। अगर मिलने वाली रेंटल इनकम महगांई की दर से मैच नहीं खाती तो लोग इन्वेस्टमेंट के अन्य साधनों की और रुख कर सकते है।।

मैनेजमेंट रिस्क – Management risk: REITs के फंड्स को प्रोफेशनल की टीम द्वारा मैनेज किया जाता है। फंड को इन्वेस्ट करने से जुड़े सारे फैसले यह फण्ड मैनेजर ही करते है। अगर यह मैनेजमेंट कोई गलत फैसला ले ले और वह REIT की रिटर्न पर पर असर डालता है।

सिमित कंट्रोल – Limited control: जब हम REIT में इन्वेस्ट करते है तो हमारा इन्वेस्ट की जा रही एसेट पर कोई कंट्रोल नहीं होता। यह सब फण्ड मैनेजर द्वारा ही कंट्रोल किया जाता है और हमे भी सिर्फ मैनेजमेंट पर निर्भर रहना पड़ता है।

यह भी जानिए: PPF kya hai?- जानिए PPF अकाउंट क्या है और कैसे काम करता है?

निष्कर्ष – Conclusion

संक्षेप में हम यही कह सकते है की REIT म्यूचुअल फंड्स की तरह ही एक ट्रस्ट होते है जो स्टॉक और और अन्य असेट में इन्वेस्ट करने की जगह रियल एस्टेट द्वारा रिटर्न अर्जित करते है। यह आम आदमी के लिए जिनकी इनकम कम होने के कारण किसी प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट नहीं कर पाते, उनको भी रियल एस्टेट से होने वाले मुनाफे का लाभ उठाने का मौका देती है। देखा जाए तो अपने पोर्टफोलियो को diversify करने से लेकर रेगुलर इनकम पाने तक REIT इन्वेस्टमेंट का एक बढ़िया साधन है।

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