Recession – क्या है रिसेशन? इसके कारण क्या है और कैसे बचे?

Recession यानि की मंदी को लेकर हर जगह चर्चा हो रही है, यहां तक की यूरोप के बड़े देश तो इसकी चपेट आ भी चुके है।  रिसेशन शब्द लोगो के मन में एक डर की स्तिथि को पैदा कर देता है क्युकी इसका सबसे बड़ा खतरा उनके रोजगार के खो जाने या नौकरी से निकाले जाने का होता है। रिसेशन की स्तिथि हर देश की इकॉनमी, बिजनेस और आम लोगो की खर्च करने की क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती है और भारत भी इस से बचा नहीं है। लेकिन इन सब के बीच सवाल यह उठता है की रिसेशन आखिर होता क्यों है और ऐसे कौन से कदम है जिनको उठाकर हम रिसेशन की स्तिथि से निपट सकते है? आज के आर्टिकल में हम रिसेशन से जुड़े सभी पहलुओं पर नजर डालेंगे और यह भी जानेंगे की इससे निपटने के लिए हम किन तरीको का इस्तेमाल कर सकते है।

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रिसेशन क्या होता है? – Recession kya hota hai?

रिसेशन किसी देश की इकोनॉमिक गतिविधि में एक अनिश्चित समय काल के लिए कमी आने को कहते है। जब देश के कुल प्रोडक्ट और सर्विसेज के निर्माण में कमी आती है जिस से देश की बाकि फाइनेंशियल गतिविधियां भी प्रभावित होती हो, तो उसे रिसेशन का दौर कहा जा सकता है। रिसेशन के कारण बिजनेस और कारोबार के कामकाज में भारी कमी आती है जिससे लोगो को काम से निकाला जाता है और बेरोजगारी की दर में वृद्धि होती है।

सरल भाषा में, एक अनिश्चित समय काल, जो कई महीनो से कई सालो का भी हो सकता है, के लिए देश की इकोनॉमिक स्तिथि में गिरावट रहना को रिसेशन कहा जाता है। रिसेशन के कारण कई सारे इकोनॉमिक इंडिकेटर नेगेटिव में हो जाते है जैसे की GDP की दर, इंडस्ट्री का प्रॉडक्शन, रोजगारी, लोगो का खर्चा, बिजनेस के प्रॉफिट और इन्वेस्टमेंट आदि। रिसेशन का कार्यकाल और इसके कारण अलग अलग हो सकते है, जो इसके होने वाले कारणों के प्रभाव पर निर्भर करते है।

रिसेशन के कारण? – Recession ke karn?

रिसेशन किसी एक कारण से नहीं होता। यह कई सारे फैक्टर्स के कारण प्रभाव में आता है जो किसी देश की इकोनॉमी को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। कौन से है वह कारण? आईये जानते है।

इकोनॉमी में हलचल – Economic imbalances: रिसेशन का एक मुख्य कारण देश को इकोनॉमिक और फाइनेंशियल स्तिथि का ठीक ना होना है। सरकार पर जरूरत से ज्यादा कर्जा, एसेट की कमी, इन्वेस्टमेंट और खर्चों का कंट्रोल में ना होना आदि इनमे से मुख्य है।

Financial संकट – Financial crises: फाइनेंशियल सेक्टर में हुई बड़ी गतिविधि जैसे की बैंकिंग सेक्टर में संकट, स्टॉक मार्किट का क्रैश होना आदि देश की इकोनॉमी को काफी हद तक प्रभावित करते है और यह रिसेशन का मुख्य कारण भी बनता है।

बाहरी संकट – External shocks: प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक संघर्ष या विदेशो से इंपोर्ट हो रही वस्तुओं की कीमतों में अचानक बदलाव जैसी घटनाएं आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकती हैं और रिसेशन को ट्रिगर कर सकती है।

सरकारी नीतियां – Government policies: गलत फिस्कल या मॉनेटरी पालिसी जैसे उच्च कर, ज्यादा नियम, या बहुत ज्यादा या कम ब्याज दर भी रिसेशन में योगदान कर सकते हैं।

रिसेशन का प्रभाव – Recession ke prabhav

रिसेशन के कारण देश की इकोनॉमी बुरी तरह से प्रभावित होती है। रिसेशन होने के कारण:

नौकरियों का छूटना – Job losses: रिसेशन के कारण लोग खर्चा कम करते है जिस कारण प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड में कमी आती है। डिमांड कम होने के कारण बिजनेस का प्रोडक्शन भी कम हो जाता है जो लोगो की नौकरी जाने का कारण बनता है और उन्हें नई नौकरियां ढूढने में भी काफी मुश्किल होती है।

लोगो के खर्चों में कमी आना – Decline in consumer spending: रिसेशन के दौरान लोगो की आमदन में कमी होने के कारण वह अपने खर्चों को भी कम कर लेते है। खर्चों के कम होने के कारण प्रोडक्ट और सर्विसेज की बिक्री में कमी आती है जो व्यापार और लोगो के लिए आर्थिक संकट का कारण बनती है।

बिजनेस का फेल होना – Business failures: ऊपर बताए गए कारकों के कारण कई सारे बिजनेस बंद होने की कगार पर आ जाते है।

स्टॉक मार्किट में अस्थिरता – Stock market volatility:  रिसेशन होने का मुख्य कारण स्टॉक मार्किट का क्रैश होना या उसमे अस्थिरता का होना हो सकता है। ऐसी स्तिथियों में इन्वेस्टर को काफी सतर्क रहने की जरुरत होती है क्युकी स्टॉक प्राइस के क्रैश होने के कारण इन्वेस्टर्स का नुक्सान होने की बड़ी सम्भावना रहती है।

रिसेशन से निपटने के उपाय – Recession se niptane ke upay

रिसेशन के दौरान सभी लोगो, बिजनेस और देश को फाइनेंशियल मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रिसेशन को अनदेखा करना लगभग नामुमकिन है, लेकिन कुछ ऐसे उपाय है, जिन्हे अपना कर रिसेशन के प्रभाव को काफी हद्द तक कम किया जा सकता है। इन उपायों में से कुछ मुख्य है:

बजटिंग और फाइनेंशियल प्लानिंग – Budgeting and financial planning: अपनी इनकम और खर्चों को ट्रैक करने के लिए एक पर्सनल बजट का उपयोग करे। अपने फालतू के खर्चों को बंद करके सिर्फ उपयोगी और जरूरी खर्चों को ही तवज्जो दे। उन चीजों की पहचान करे जहा आप अपने खर्चों को कम करके ज्यादा पैसे की बचत कर सकते है।

इमरजेंसी फण्ड – Emergency fund: अपनी नौकरी के खोने की स्तिथि में खर्चों को कवर करने के लिए एक इमरजेंसी फण्ड का निर्माण करे। एक इमरजेंसी फण्ड आपकी कुल मंथली इनकम का 6 गुना या 12 गुना होना चाहिए। अपने हर महीने की इनकम से एक निश्चित भाग को अपने इमरजेंसी फण्ड के लिए हमेशा अलग रखे।

अपनी इनकम के सोर्स बढ़ाए – Diversify income sources: अपनी इनकम सोर्स बढ़ाने के लिए पार्ट टाइम काम करे, फ्रीलांसिंग में हाथ आजमाए या अपना कोई छोटा बिजनेस शुरू करे। एक से ज्यादा इनकम आपको रिसेशन के दौर में फाइनेंशियल तंगी से बचाने में मदद करेगा।

अपनी स्किल को बढ़ाए – Enhance your skills: नई स्किल सिखने के लिए इन्वेस्ट करे। नई स्किल्स आपको नौकरी जाने के केस में नई नौकरी ढूंढने या अपना काम शुरू करने में मदद करेगा।

नेटवर्किंग – Networking: एक अच्छा और मजबूत प्रोफेशनल नेटवर्क बनाये। नेटवर्किंग आपको इनकम, जॉब लीड और करियर एडवाइस में काफी मदद करेगा।

कर्जो को मैनेज करे – Debt management: नए कर्जे लेने से बचे और पुराने कर्जो को जल्दी से जल्दी चुकाने की कोशिश करे। जिन कर्जो पर सब से ज्यादा ब्याज पड़ रहा है, उनको सब से पहले चुकाने की कोशिश करे। कम कर्जे आपकी इनकम को बढ़ाएंगे और महगांई के दौर में आपको अपने लाइफस्टाइल को बनाए रखने में मदद करेगा।

सेविंग और इन्वेस्टमेंट को प्राथमिकता दे – Prioritize savings and investments: लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट को ध्यान मे रखते हुए लगातर सेविंग करने की कोशिश करे। अपनी इन्वेस्टमेंट को diversify करे और लौ रिस्क ऑप्शन में बराबर इन्वेस्टमेंट रखे।

हेल्थ केयर – Health and self-care: अपनी फिजिकल और मेंटल हेल्थ का ध्यान रखे। एक हेल्थ इंश्योरेंस जरूर लेके रखे ताकि अगर रिसेशन के दौर में आप किसी बीमारी का शिकार हो भी तो उसके खर्चों का बोझ आपकी सेविंग्स पर ना पड़े।

जानकारी रखे और समय के साथ बदले – Stay informed and adaptable: इकॉनमी में चल रही हलचल से और न्यूज से खुद को अपडेट रखे। अपने करियर में रिसेशन के अनुसार बदलाव करते करने से न हिचके और market में चल रही नौकरी की संभावनाओं पर नजर रखे।

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निष्कर्ष – Conclusion

सभी देशों के इकोनॉमिकल साइकिल में रिसेशन का एक अहम भाग है और यह हर 10 या 20 सालो में खुद को दोहराता है। इसके कारण को समझना, इसके प्रभाव को जानना और इसे निपटने के उपाय, हर बिजनेस, पॉलिसिमेकर और सरकार के लिए जरुरी है। रिसेशन को दरकिनार करना मुमकिन नहीं है इसलिए लोगो के लिए बेहतर यही है की इसके लिए त्यार रहते हुए एक अच्छे f प्लान का इस्तेमाल करे और परिस्थिति के अनुसार खुद में और व्यापर या नौकरी में बदलाव के लिए त्यार रहे।

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