Capital gains tax kya hai – कहां और कितना लागू होता है?

इन्वेस्टमेंट पर टैक्सेशन की बात हो तो हमे वहां कैपिटल गेन टैक्स के बारे में जरूर सुनने को मिलता है। इनकम टैक्स की दुनिया में कैपिटल गेन टैक्स को एक अहम मुकाम हासिल है, जिसके अंतर्गत हमारी हर तरह की इन्वेस्टमेंट पर टैक्स की कैलकुलेशन की जाती है। आज के आर्टिकल में हम Capital gains tax kya hai, कहां, कितना और कैसे लागू होता है, इन्ही सब बातो को जानने को कोशिश करेंगे।

Capital gains tax kya hai

कैपिटल गेन टैक्स क्या है – Capital gains tax kya hai

कैपिटल गेन वह टैक्स होता है, जो आपको एक एसेट को बेचने पर होने वाले मुनाफे पर लगता है। इन एसेट में स्टॉक्स, बॉन्ड्स, डिजिटल एसेट जैसे क्रिप्टोकरेंसी और NFTs, गहने, सिक्के, और रियल एस्टेट आदि शामिल हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जब किसी एसेट को आप खरीद के भाव से ज्यादा प्राइस में बेचते हो तो प्राइस के इस फर्क के कारण आपको कुछ प्रॉफिट होता है। इसी होने वाले प्रॉफिट को हम कैपिटल गेन कहते है, और इसपे लगने वाले टैक्स को कैपिटल गेन टैक्स।

यहां इस बात का ध्यान रखना जरुरी है की कैपिटल गेन टैक्स सिर्फ होने वाले प्रॉफिट पर लागु होता है, नाकी एसेट या इन्वेस्टमेंट की पूरी वैल्यू पर। एसेट को होल्ड करने के समय के अनुसार इस टैक्स की दर अलग अलग होती है। जिन एसेट पर यह टैक्स लगता है उन्हे कैपिटल एसेट कहते है। आइए जान लेते है की कैपिटल एसेट के दायरे में कौन कौन सी वस्तुएं आती है।

कैपिटल एसेट क्या होते है – Capital asset kya hote hai

कैपिटल एसेट में वह संपत्ति और वस्तुएं शामिल होती है जिनपे आप का मालिकाना हक है, और उस मालिकाना हक को ट्रांसफर किया जा सकता है। इनमे शामिल है:

रियल एस्टेट: जमीन और जमीन से जुड़ी एसेट जैसे की, मकान, दुकान या खेती और इंडस्ट्री एक प्रमुख कैपिटल एसेट है।

इक्विटी शेयर्स: जब हम किसी कम्पनी के शेयर्स या हिस्से खरीदते है, तो वह भी कैपिटल कैपिटल एसेट की कैटेगरी में आते हैं।

सोना: सोना और सोने से बने सिक्के, ज्वेलरी, मूर्तियां आदि भी कैपिटल एसेट होते हैं।

एंटीक्स और कलाकृति: पुराने समय की वस्तुएं (एंटीक्स) या कलाकृतियां (आर्टवर्क) भी कैपिटल एसेट मानी जाती हैं।

फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और बॉन्ड: FD, बॉन्ड और डिबेंचर आदि भी कैपिटल एसेट होते हैं।

बिजनेस के लिए, एक कैपिटल एसेट वो संपत्ति होती है जिसका उपयोगी जीवनकाल एक साल से ज्यादा होता है और जिसे रोजाना के बिजनेस लेने देन के दौरान बेचने की कोई प्लानिंग नही होती। उदाहरण के लिए, अगर एक कंपनी अपने ऑफिस के लिए एक कंप्यूटर खरीदती है, तो वह कंप्यूटर उसकी कैपिटल एसेट होता है। ऐसे ही अगर कोई दूसरी कंपनी उसी कंप्यूटर को बेचने के लिए खरीदती है, तो वह इन्वेंटरी में गिना जाएगा।

कैपिटल एसेट tangible और intangible हो सकते हैं। ज्यादातर कैपिटल एसेट में इमारतों, जमीन, घर आदि आते है, और यह tangible कैपिटल एसेट होते है क्युकी इन्हे देखा और छुआ जा सकता है। वहीं ट्रेडमार्क, ब्रांड वैल्यू, आदि intangible एसेट की कैटेगरी में आते है क्युकी इन्हे ना ही देखा जा सकता है और ना छुआ।

कैपिटल एसेट कितने प्रकार की होती है – Capital asset kitne prakar ki hoti hai

कैपिटल एसेट को हम मुख्यता दो भागो में बांट सकते है:

शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट और लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट

शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट: शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट वह एसेट होती है, जिन्हे हम 24 से 36 महीने से कम पीरियड के लिए होल्ड करते है। एसेट के प्रकार के अनुसार यह होल्डिंग पीरियड अलग अलग हो सकता है। जैसे की अगर एसेट कोई प्रॉपर्टी, जमीन या जायदाद है जिसे हम 24 महीने से पहले बेच देते है तो वह शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट की कैटेगरी आयेगा।

उसी तरह किसी कंपनी के इक्विटी शेयर या इक्विटी से जुड़े इंस्ट्रूमेंट अगर 12 महीने से पहले encash कर लिए जाए और डेब्ट म्यूचुअल फंड जिन्हे 36 महीने से पहले बेच दिया जाए, वह भी शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट में आते है।

लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट: वह एसेट जिन्हे 12 से 36 महीने के बाद बेचा जाता है, उन्हे लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट कहते है। ऊपर बताए गए अनुसार ही अगर कोई प्रॉपर्टी 24 महीने के बाद बेची जाए, स्टॉक या इक्विटी म्यूचुअल फंड जिन्हे 12 महीने के बाद और डेब्ट बॉन्ड और म्यूचुअल फंड जिन्हे 36 महीने के बाद बेचा जाए लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट में गिने जाते है।

कैपिटल गेन टैक्स कितने प्रकार का होता है – Capital gains tax kitne prakar ka hota hai

कैपिटल गेन एसेट की तरह ही कैपिटल गेन टैक्स भी दो तरह होता है:

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स: शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स उस एसेट के मुनाफे पर लगता है, जिसे 12 महीने से पहले बेचा गया हो। यहां पर इस बात को जरूर नोट करे की जरूरी नहीं की यह टाइम पीरियड सिर्फ 12 महीना का ही हो। अलग अलग कैपिटल एसेट के लिए यह टाइम पीरियड अलग अलग हो सकता है।

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स: जब हम किसी कैपिटल एसेट को ज्यादा से ज्यादा 3 साल तक रखते हैं, और उसके बाद उसे बेचने पर हमें जो लाभ होता है, उसपर लगने वाला टैक्स लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन होता है। यहां भी इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है की अलग अलग एसेट के लिए कैपिटल गेन कैलकुलेशन का टाइम पीरियड अलग हो सकता है।

कैपिटल एसेट की होल्डिंग पीरियड अनुसार लागू कैपिटल गेन टैक्स को नीचे दिए टेबल में दर्शाया गया है।

Capital Asset Holding period for Short term capital gains tax Holding period for Long term capital gains tax
Debt Mutual Funds Less then 36 months More then 36 months
Equity Mutual Funds Less then 12 months More then 12 months
Listed Equity Shares Less then 12 months More then 12 months
Unlisted Equity Shares Less then 24 months More then 24 months
Immovable Property Less then 24 months More then 24 months
Movable Property Less then 36 months More then 36 months
ULIP Less then 12 months More then 12 months
Government and Corporate Bonds Less then 36 months More then 36 months
Gold Less then 36 months More then 36 months
Gold ETF Less then 12 months More then 12 months

कैपिटल गेन टैक्स कैसे कैलकुलेट किया जाता है – Capital gains tax kaise calculate kiya jaata hai

कैपिटल गेन्स टैक्स की कैलकुलेशन कैपिटल एसेट और उस पर लागू शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म टैक्स पर निर्भर करता है। जिस तरह की कैपिटल एसेट होगी उसी तरह से टैक्स की कैलकुलेशन भी की जायेगी। कैपिटल गेन टैक्स की कैलकुलेशन करने के लिए निम्नलिखित वैल्यू को ध्यान में रखा जाता है।

फुल वैल्यू: फुल वैल्यू यानी वह अमाउंट जो आपको तब मिलती है, जब आप अपनी कैपिटल एसेट को किसी दूसरी पार्टी को ट्रांसफर करते हो। यानी की अगर आपने किसी कैपिटल एसेट को 10 लाख में बेचा है, तो वह 10 लाख उस एसेट की फुल वैल्यू होगी।

Cost of Aquisition: वह प्राइस, जिस पर आपने उस एसेट को खरीदा होता है। ऊपर दिए उदाहरण अनुसार अगर आपने किसी एसेट को 5 लाख में खरीदा है, और कुछ समय बाद उसे 10 लाख में बेचा है, तो 5 लाख उस एसेट का cost of Aquisition कहलाएगा।

Cost of Improvement: आपके द्वारा किसी एसेट को खरीदे जाने के बाद उसको सुधारने के लिए खर्च की जाने वाली राशि को cost of Improvement कहते है। अप्रैल 2001 के पहले अगर कोई इंप्रूवमेंट कॉस्ट हुए है तो कैपिटल गेन को कैलकुलेट करने के लिए इसे cost of Aquisition में शामिल नहीं किया जाता है।

Asset transfer expense: एसेट ट्रांसफर एक्सपेंस में वह खर्चे शामिल होते जो एक एसेट का मालिकाना हक दूसरी पार्टी को ट्रांसफर करने के लिए किए जाते है। उदाहरण के लिए मकान की रजिस्ट्री, ब्रोकर की फीस आदि।

Cost of inflation: इनफ्लेशन यानी की महंगाई। साल दर साल महंगाई बढ़ती है, जिसके कारण पैसे की वैल्यू में कमी आती है। इसी तरह अगर आप किसी भी एसेट को होल्ड करके रखते हो और काफी समय बाद इसे बेचते हो तो होने वाले प्रॉफिट में इनफ्लेशन कॉस्ट को भी शामिल करना पड़ता है।

ऊपर लिखी सभी बाते पता होने पर आप कैपिटल गेन को कैलकुलेट कर सकते है, जिसके अनुसार टैक्स एप्लिकेबल होता है।

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कैलकुलेट करने के लिए:

Full value
  –  Asset transfer cost
  –  Cost of Aquisition
  –  Cost of improvement

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की कैलकुलेशन करने के लिए:

Full value
  –  Asset transfer cost
  –  Indexed Cost of Aquisition
  –  Indexed Cost of improvement
  – सेक्शन 54, सेक्शन 54EC आदि के अंतर्गत आने वाली Exemptions

कैपिटल गेन टैक्स रेट – Capital gains tax rate

Capital Asset Short term capital gains tax Long term capital gains tax
Debt Mutual Funds As per Income Tax Slab 20% with indexation
Equity Mutual Funds 15% of gains 10% over and above 1 Lakh
Listed Equity Shares 15% of gains 10% over and above 1 Lakh
Unlisted Equity Shares As per Income Tax Slab 20% with indexation
Immovable Property As per Income Tax Slab 20% with indexation
Movable Property As per Income Tax Slab 20% with indexation
ULIP 15% of gains 10% over and above 1 Lakh
Government and Corporate Bonds As per Income Tax Slab 20% with indexation
Gold As per Income Tax Slab 20% with indexation
Gold ETF As per Income Tax Slab 10% over and above 1 Lakh

कैपिटल गेन टैक्स एजेंप्शन – Capital gains tax Exemptions

कैपिटल गेन टैक्स के चलते हमे अपने प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार को जमा करवाना पड़ता है। अपनी टैक्स की सेविंग के लिए इनकम टैक्स के कई सेक्शन के तहत हम टैक्स में एक्जेंप्शन को क्लेम कर सकते है। इन्हे कैपिटल गेन टैक्स एक्जेंप्शन कहा जाता है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है:

सेक्शन 54: सेक्शन 54 को एक्जेंप्शन उस केस में लागू होती है जहां एक घर को बेच कर प्राप्त हुआ पैसा दूसरे हाउस और प्रॉपर्टी की खरीद या कंस्ट्रक्शन में इन्वेस्ट किया गया हो। 2014-15 के बजट से इस सेक्शन की एक्जेंप्शन सिर्फ एक घर की खरीद तक ही सीमित की गई है, और इस एक्जेंप्शन को टैक्सपेयर अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही ले सकता है, बशर्ते कैपिटल गेन की लिमिट 2 करोड़ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इस एक्जेंप्शन के लिए नीचे दी गई कंडीशन का पालन करना पड़ता है:

  • टैक्सपेयर को सिर्फ कैपिटल गेन की अमाउंट ही इन्वेस्ट करनी होती है, अगर इन्वेस्ट की गई अमाउंट कैपिटल गेन से ज्यादा होती है, तो एक्जेंप्शन केवल कैपिटल गेन की रकम तक ही सीमित रहती है।
  • नई प्रॉपर्टी पुरानी बेची गई प्रॉपर्टी से 1 साल पहले या बेची गई प्रॉपर्टी के 2 साल बाद खरीदी जा सकती है।
  • अगर कैपिटल गेन का पैसा नए घर की कंस्ट्रक्शन पर लगाया जाता है तो यह कंस्ट्रक्शन सेल के 3 साल के अंदर पूरी होनी चाहिए।
  • अगर नई प्रॉपर्टी खरीद या कंस्ट्रक्शन को 3 साल के भीतर बेच दिया जाता है, तो एक्जेंप्शन को वापिस लिया जा सकता है।

सेक्शन 54F: सेक्शन 54F की एक्जेंप्शन घर के इलावा किसी और प्रॉपर्टी को बेचने से होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर लागू होता है। सेक्शन 54 के विपरीत इस एक्जेंप्शन को क्लेम करने के लिए आपको प्रॉपर्टी को बेचने से मिलने सारी रकम को नई प्रॉपर्टी की खरीद में इन्वेस्ट करना पड़ता है। इसे क्लेम करने के लिए आपको:

  • इन्वेस्टमेंट की सेल के 1 साल पहले या सेल के 2 साल बाद करना होता है।
  • अगर पैसे को किसी प्रॉपर्टी की कंस्ट्रक्शन में इन्वेस्ट किया जाता है, तो उसे सेल के 3 साल के अंदर पूरा हुआ होना चाहिए।
  • एक्जेंप्शन की एलिजिबिल्टी के लिए सेल का पैसा सिर्फ एक प्रॉपर्टी या उसकी कंस्ट्रक्शन पर ही इन्वेस्ट किया जा सकता है, और अगर इस प्रॉपर्टी को 3 साल से पहले बेचा जाता है, तो एक्जेंप्शन को वापिस लिया जा सकता है।

सेक्शन 54EC: इस सेक्शन के अंतर्गत एक्जेंप्शन लेने के लिए लॉन्ग टर्म एसेट को बेचने पर हुआ लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन, 54EC बॉन्ड जिन्हे कैपिटल गेन बॉन्ड भी कहते है, में इन्वेस्ट करना पड़ता है। इसके तहत:

  • प्रॉपर्टी की सेल का पैसा REC, PFC या NHAI द्वारा इश्यू किए जाने वाली कैपिटल गेन बॉन्ड में इन्वेस्ट किया जाना चाहिए। इस इन्वेस्टमेंट को 50 लाख की लिमिट तक किया जा सकता है।
  • इन बॉन्ड्स का मैच्योरिटी पीरियड 5 साल का होता है, और हर साल आपको इन्वेस्टमेंट अमाउंट पर एक फिक्स्ड इंट्रेस्ट के रूप में पेमेंट की जाती है।
  • प्रॉपर्टी की सेल से हुए प्रॉफिट या कैपिटल गेन को 6 महीने के अंदर ITR filling से पहले कैपिटल गेन बॉन्ड में इन्वेस्ट करना पड़ता है।

सेक्शन 54B: इस एक्जेंप्शन के अंतर्गत वह लॉन्ग या शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन आता है जो खेतीबाड़ी में इस्तेमाल की जाने वाली जमीन को बेचने से हुआ हो। इस जमीन का इस्तेमाल कम से कम 2 सालो के लिए खेती के लिए किया होना चाहिए। बेचने से मिली अमाउंट की रीइन्वेस्टमेंट किसी दूसरी एग्रीकल्चर से जुड़ी जमीन में सेल के दो सालो के अंदर होनी चाहिए।

सेक्शन 54D: कैपिटल गेन जो ऐसी जमीन को बेचने से हुआ हो जिसका इस्तेमाल इंडस्ट्रियल काम काज के लिए लिए किया जाता रहा है। इसका फायदा लेने के लिए :

  • कैपिटल गेन की राशि का इस्तेमाल सिर्फ इंडस्ट्रियल प्रॉपर्टी या बिल्डिंग की खरीद के लिए किया जाना चाहिए।
  • जिस जमीन या बिडिंग को बेचा गया हो उसका इस्तेमाल ट्रांसफर के 2 साल पहले तक इंडस्ट्रियल या बिजनेस के काम में हुआ होना चाहिए।
  • प्रॉपर्टी को बेचने या ट्रांसफर करने के बाद मिलने वाला फंड 3 साल के अंदर नई प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया जाना चाहिए।
  • अगर नई प्रॉपर्टी का प्राइस सेल प्राइस से ज्यादा या बराबर है, तो सारे कैपिटल गेन पर टैक्स एक्जेंप्शन लागू होती है।
  • अगर नई एसेट का मूल्य कैपिटल गेन की अमाउंट से कम है, तो सिर्फ नई खरीदी गई प्रॉपर्टी के मूल्य के बराबर की कैपिटल गेन टैक्स एक्जेंप्शन की कैटेगरी में आयेगा।

यह भी जानिए : STT kya hota hai – सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स क्या होता है और कब लगाया जाता है?

निष्कर्ष – Conclusion

कैपिटल गेन टैक्स भारतीय टैक्सेशन सिस्टम का एक अहम भाग है। अगर आपको किसी एसेट को बेचने पर कोई कैपिटल गेन या प्रॉफिट हुआ है तो उसे ITR में शामिल करना जरूरी बन जाता है। ज्यादातर कैपिटल गेन या लॉस ITR2 या ITR3 में रिपोर्ट किए जाते है, और इनकम टैक्स के कई सेक्शन के अंतर्गत आप इसमें एक्जेंप्शन को भी क्लेम कर सकते है। इन एक्जेंप्शन का पूरा फायदा उठाने के लिए आपको एसेट के होल्डिंग पीरियड और टैक्स रेट की जानकारी होनी चाहिए, या फिर आप किसी फाइनेंस प्रोफेशनल की मदद लेकर अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग के फैसलों को और बेहतर बना सकते है।

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