एल्गो ट्रेडिंग क्या है – Algo trading in Hindi
एल्गो ट्रेडिंग, एल्गोरिथम ट्रेडिंग की शार्ट फॉर्म है। यह ट्रेडिंग का ऐसा तरीका है जिसमे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में algorithm की मदद से इंस्ट्रक्शन फीड करके ट्रेडिंग को किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ट्रेडिंग के इस तरीके में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में कुछ इंस्ट्रक्शन प्रोग्रामिंग द्वारा फीड लिए जाते है जो उसे बताते है की स्टॉक को किस प्राइस पर खरीदना है और किस समय बेचना है। यह हर तरह की एसेट जैसे की स्टॉक, बांड्स, कमोडिटी और करेंसी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत में एल्गो ट्रेडिंग पहली बार 2008 में शुरू की गई थी। शुरूआती दिनों में यह सिर्फ बड़े इस्टीट्यूशन, म्यूच्यूअल फण्ड हाउस और बड़े ब्रोकर्स कर तक ही सीमित था लेकिन समय से साथ साथ बढ़ती इसकी पॉपुलैरिटी के कारण इसके दरवाजे आम ट्रेडर के लिए भी खोल दिए गए।
एल्गो ट्रेडिंग का मुख्य काम ट्रेडिंग को ऑटोमेट करना और बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के ट्रेड को execute करना होता है। दिए गए इंस्ट्रक्शन सेट के जरिए एल्गो सॉफ्टवेयर आर्डर को प्लेस कर सकता है, स्टॉप लॉस लगा सकता है, मार्केट डाटा को एनालाइज करने समेत कई सारे काम कर सकता है। इसमें इंसानी इमोशंस की कोई जगह नहीं बचती क्युकी सारा काम एक रूल और इंस्ट्रक्शन सेट के अनुसार किया जाता है।
बीते कुछ समय में भारत में एल्गो ट्रेडिंग ने अच्छी खासी पॉपुलैरिटी हासिल कर ली है। यह सेबी द्वारा सेट की गई guidelines के अनुसार ही काम करती है और बहुत कम समय में काफी सारे ट्रेड execute करने में सक्षम है।
कैसे करे एल्गो ट्रेडिंग – Kaise karen Algo trading
आम ट्रेडिंग के विपरीत एल्गो ट्रेडिंग में buy और selling का काम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के जरिए किया जाता है जिसे एक इंस्ट्रक्शन सेट द्वारा प्रोग्राम किया जाता है। इसमें निम्नलिखित स्टेप्स शामिल होते है:
स्ट्रेटर्जी डेवलपमेंट: इंट्राडे ट्रेडर मार्केट में ट्रेड करने के लिए टेक्निकल एनालिसिस का इस्तेमाल करते है और इसी के आधार पर ही एल्गो ट्रेडिंग भी काम करती है। टेक्निकल एनालिसिस में प्राइस की मूवमेंट, इंडिकेटर, सपोर्ट और रेजिस्टेंस, प्राइस पैटर्न्स आदि के आधार पर buy और sell सिगनल जेनरेट किए जाते है। इन्ही सारे तरीको को स्ट्रैटर्जी में बदला जाता है ताकि कोई भी ट्रेडिंग निर्णय लिया जा सके।
कोडिंग: एक बार स्ट्रैटर्जी डेवलप हो जाए तो उसे प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में बदला जाता है ताकि एल्गो सॉफ्टवेयर उसे समझ और execute कर सके। इसके लिए python, c++ जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है।
बैकटेसटिंग: बैकटेसटिंग यानि की किसी स्ट्रैटर्जी को असल में ट्रेडिंग में इस्तेमाल करने से पहले स्टॉक के हिस्टोरिक प्राइस मूवमेंट के आधार पर टेस्ट करना। इस से ट्रेडर को स्ट्रैटर्जी के काम करने या ना करने का एक आईडिया हो जाता है।
रिस्क मैनेजमेंट: किसी भी ट्रेड में कदम रखने से पहले उसमे शामिल रिस्क और नुकसान के बारे में जान लेना बहुत जरुरी होता है और यही चीज आपको एक अच्छा ट्रेडर बनने में मदद करती है। एल्गो ट्रेडिंग में स्ट्रैटर्जी के साथ साथ स्टॉपलॉस, पोजीशन साइजिंग और रिस्क कंट्रोल करने के लिए भी जरुरी कोड को डेवलप और इंप्लीमेंट किया जाता है।
Executive प्लेटफार्म: एल्गो ट्रेडिंग के प्रोग्राम को रन करने के लिए API और एक अच्छे ट्रेडिंग प्लेटफार्म की जरुरत होती है। API का मतलब होता Application Programming Interface जो सेबी द्वारा ब्रोकर्स को दिया जाता है। इसके जरिए ब्रोकर रियल टाइम मार्केट डाटा को एक्सेस कर पाते हैं जिसकी जरुरत एल्गो ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर को रन करने के लिए होती है। ब्रोकर्स द्वारा दिए गए ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर आप अपनी स्ट्रेटर्जी को रन कर एल्गो ट्रेडिंग कर पाते है।
एल्गो ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर – Algo trading software
एल्गो ट्रेडिंग की लोकप्रियता को देखते हुए सेबी ने ब्रोकर्स को यह राइट दिया है की वह अपने API बेस्ड सॉफ्टवेयर जिस पर एल्गो इंस्ट्रक्शन फीड किए जा सकते है, ट्रेडर्स को ऑफर कर सके। भारत में कई सारे एल्गो ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जिनमे कुछ निचे बताए गए है:
एल्गो ट्रेडिंग के फायदे – Algo trading ke fayde
स्पीड और Accuracy: एल्गो ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फायदा इसका बिना किसी गलती के तेजी से ट्रेड को execute करना है। स्टॉक एक्सचेंज में शेयर के प्राइस बहुत तेजी से बदलते है और इसके चलते ट्रेडर अक्सर सही दाम पर किसी ट्रेड में एंट्री नहीं कर पाते। क्युकी एल्गो ट्रेडिंग एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा की जाती है इसलिए यह मिलीसेकंड में काम करती है जो किसी इंसान के द्वारा संभव नहीं है।
इमोशनलेस ट्रेडिंग: ट्रेडिंग में इंसान अक्सर इमोशंस में आकर गलत ट्रेड ले बैठता है या किसी ट्रेड में गलती कर सकता है लेकिन एल्गो ट्रेडिंग में ऐसा संभव नहीं है। यह सिर्फ दी गई कंडीशन के आधार पर कोई निर्णय लेता है और अगर वह कंडीशन पूरी नहीं होती तो ट्रेड लेने की कोई सम्भावना ही नहीं रहती।
डायवर्सिफिकेशन: एल्गो ट्रेडिंग में कई सारे ट्रेड एक साथ execute किए जा सकते है जो की किसी भी आम ट्रेडर के लिए संभव नहीं है।
Disciplined ट्रेडिंग: एल्गो ट्रेडिंग में ट्रेड तभी execute होता है जब कंप्यूटर प्रोग्राम में दिए गए इंस्ट्रकशन की कंडीशन पूरी होती है। कोई आम ट्रेडर मार्केट फोमो में आकर अपना डिसिप्लिन खो सकता है और ट्रेडिंग में गलती कर अपना नुकसान करवा सकता है लेकिन एल्गो ट्रेडिंग में इसकी संभावना ना के बराबर होती है।
बैकटेसटिंग: एल्गो ट्रेडिंग में स्ट्रैटर्जी को असल में इस्तेमाल करने से पहले पुराने डाटाबेस पर बैकटेस्ट किया जा सकता है। यह बैकटेसटिंग असल ट्रेडिंग में हमे पैसों का नुक्सान होने से बचा सकती है।
एल्गो ट्रेडिंग के नुकसान – Algo trading ke nuksaan
कम्प्लेक्सिटी: एल्गो ट्रेडिंग को करने के लिए आपको प्रोग्रामिंग और coding की जानकारी होनी चाहिए। अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है तो आपको किसी और व्यक्ति को पैसे देके यह काम करवाना पड़ता है और कोई दिक्कत आने के केस में आप खुद कोई एक्शन भी नहीं ले पाते। एल्गो ट्रेडिंग की यह बात इसे आम ट्रेडर के लिए काम्प्लेक्स बनाती है।
टेक्निकल खर्चा: एल्गो ट्रेडिंग को करने के लिए आपके पास एक अच्छा सिस्टम और सॉफ्टवेयर होना चाहिए। इसके इलावा मेंटेनेंस, अच्छा इंटरनेट और बैकअप भी आपके ट्रेडिंग कॉस्ट को काफी हद्द तक बड़ा देता है। इसलिए एक छोटे ट्रेडर के लिए एल्गो ट्रेडिंग करना मुश्किल हो जाता है।
फ्लेक्सिबिलिटी की कमी: स्टॉक मार्केट हमेशा एक सी नहीं रहती और इसका ट्रेंड बदलता रहता है। Trending मार्केट में एल्गो ट्रेडिंग अच्छे से काम करती है लेकिन sideways मार्केट में यह ज्यादा अच्छे ढंग से काम नहीं कर पाती। ऐसे स्तिथि में ट्रेड में बार बार स्टॉपलॉस हिट होने का रिस्क रहता है क्युकी मार्केट का एक क्लियर डायरेक्शन नहीं होता।
टेक्निकल इश्यू: एल्गो ट्रेडिंग पूरी तरह से computerized सिस्टम पर निर्भर करती है। सिस्टम में किसी तरह की दिक्कत या टेक्निकल इश्यू आने पर ट्रेड में नुक्सान हो सकता है और कोई अच्छी ट्रेड हाथ से निकल सकती है।
मार्केट पर असर: एल्गो ट्रेडिंग में कई सारे ट्रेड एक साथ execute किए जा सकते है इस कारण मार्केट के ज्यादा volatility और लिक्विडिटी हो सकती है। यह volatility कई ट्रेडर्स के नुक्सान का कारण बन सकती है।
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एल्गो ट्रेडिंग का भविष्य – Algo trading ka bhavishya
जैसी वर्तमान काल में टेक्नोलॉजी की एडवांसमेंट हो रही है, एल्गो ट्रेडिंग आने वाले समय में व्यापक तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है। नई टेक्नोलॉजी होने के कारण यह अभी बड़े इंस्टीट्यूशन और ट्रेडर्स तक ही सीमित है क्युकी यह ट्रेडिंग के कॉस्ट काफी हद तक बड़ा देता है। लेकिन यहां एक बात ध्यान देने योग्य है की AI की एडवांसमेंट के साथ हमे प्रोग्रामिंग को और किसी अन्य स्किल को सिखने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी जिससे भविष्य में किसी और पर निर्भर हुए बिना ही आप अपनी स्ट्रैटर्जी के हिसाब से कोड लिखवा पाएंगे।
इसके इलावा Zerodha Streak जैसे प्लेटफार्म बिना किसी कोडिंग के जानकारी के भी ट्रेडिंग स्ट्रैटर्जी को बनाने और ट्रेडिंग में इस्तेमाल करने की सहूलियत देते है। उम्मीद है की भविष्य में एल्गो ट्रेडिंग की कॉस्ट भी कम होगी और मेरी और आपकी तरह छोटे और आम ट्रेडर भी इसका फायदा ले पाएंगे।
निष्कर्ष – Conclusion
इस बात में कोई शक नहीं है की एल्गो ट्रेडिंग भविष्य में ट्रेडिंग करने के नए तरीके के रूप में सामने आएगा। जहां अभी यह कुछ ही लोगो द्वारा ही इस्तेमाल किया जाता है, वह समय दूर नहीं की जब यह सभी ट्रेडर्स द्वारा इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस बात को नोट करना भी जरुरी है की एल्गो ट्रेडिंग को लेकर सेबी समय समय पर guidelines के कर आता रहा है और इसका एल्गो ट्रेडिंग भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो वक्त ही बताएगा।
बढ़िया जानकारी दी आपने