बैंकिंग जगत में कई ऐसे तरीके है, जिसके जरिए सेंट्रल बैंक और सरकार देश की इकोनॉमी को बैलेंस और उसमे सुधार करने की कोशिश करते है। इन्ही के अंतर्गत सेंट्रल बैंक द्वारा सारी रेश्यो का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे की SLR, Repo rate, Reverse repo rate आदि। CRR भी इन्ही में से एक रेश्यो है, जो देश में इनफ्लेशन को कंट्रोल करने में एक अहम योगदान देती है। लेकिन यह काम कैसे करती है, इसी को हम आज के आर्टिकल ’CRR full form in Hindi’ में जानने की कोशिश करेंगे
CRR क्या है – CRR full form in hindi
CRR का मतलब होता है : Cash Reserve Ratio
यह रेश्यो RBI द्वारा निर्धारित किया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण टूल हैं, जो देश में पैसों की सप्लाई और लिक्विडिटी को कंट्रोल करने में मदद करता है। CRR उस मिनिमम पर्सेंटेज को निर्धारित करता है, जिसके अनुसार सभी बैंक को कुछ कैश, रिजर्व के तौर पर RBI के पास डिपॉजिट रखना पड़ता है। इस पर्सेंटेज को RBI द्वारा फिक्स किया जाता है और हर बैंक को इसका पालन करना पड़ता है।
देश की इकोनॉमी में CRR लिक्विडिटी रिस्क को कम करने का काम करता है, जहां अगर किसी इमरजेंसी स्तिथि के दौरान लोगो को एक साथ पैसे की जरूरत पड़े तो उस समय बैंक के पास पैसों की डिमांड को पूरा करने के लिए प्रयाप्त मात्रा में फंड मौजूद हों। सभी बैंक को CRR रेश्यो के अनुसार RBI के पास फंड को डिपॉजिट रखना जरूर है, जिसका पालन ना करने पर उन्हें पेनल्टी का सामना करना पड़ सकता है।
CRR कैसे काम करता है – CRR kaise kaam karta hai
CRR देश में फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और इनफ्लेशन को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाता है। यह मॉनेटरी पॉलिसी का एक अहम भाग है, जो देश में पैसों के फ्लो को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसके तहत बैंको को अपने डिपॉजिट का एक निश्चित हिस्सा RBI के पास रिजर्व के तौर पर रखना पड़ता है। CRR की दर को घटा या बढ़ा कर सेंट्रल बैंक, देश की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी को बनाए रखता है।
अगर देश में CRR की दर ज्यादा होती है, तो बैंक को अपने डिपॉजिट का बड़ा हिस्सा RBI के पास रखना पड़ता है। इससे बैंक के पास कम पैसा बचता है और पैसों की कमी होने के कारण बैंक लोगो और बिजनेस को ज्यादा लोन नहीं दे पाते। लोगो के पास ज्यादा पैसा ना होने के कारण उनके खर्चों में कमी आयेगी, जिस कारण प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड भी कम होगी। डिमांड कम और सप्लाई ज्यादा होने पर प्रोडक्ट और सर्विसेज का प्राइस कम होगा, जिस से इनफ्लेशन को कम रखने में मदद होती है।
इसके विपरीत अगर CRR रेश्यो कम होगी तो बैंक के पास ज्यादा डिपॉजिट के पैसे होंगे, जिन्हे वह लोगो को लोन और अन्य लैंडिंग टूल्स के माध्यम से दे पाएगी। लोगों के पास ज्यादा पैसा होने के कारण उनकी खर्च करने की क्षमता और डिमांड बढ़ेगी जिससे देश की इकोनॉमी और प्रोडक्शन को बढ़ावा मिलता है।
CRR को कैसे कैलकुलेट किया जाता है – CRR ko kaise calculate Kiya jaata hai
CRR को कैलकुलेट करने के लिए कोई भी फिक्स्ड फॉर्मूला नही है। आमतौर पर इसे बैंको की Net demand and Time liabilities (NDTL) की पर्सेंटेज के रूप में कैलकुलेट किया जाता है। NDTL में बैंक के सेविंग अकाउंट, करेंट अकाउंट, RD और फिक्स्ड डिपॉजिट आदि की फंडिंग शामिल होती है।
उदाहरण के लिए अगर बैंक के पास Net Demand and Time Liabilities 500 करोड़ है, और CRR रेट 4% है, तो बैंक को RBI के पास 2 करोड़, कैश रिजर्व रेश्यो के तौर पर रखना होगा।
CRR का महत्व – CRR ka mahatav
CRR मॉनेटरी पालिसी का एक अहम भाग है और यह देश में पैसों की मैनेजमेंट और इकोनॉमी में इसके फ्लो को कंट्रोल में बनाए रखने में मदद करता है। इसके इलावा CRR मुख्यता:
फाइनेंशियल स्तीर्था: CRR इस बात की तस्दीक करता है की बैंक के पास पर्याप्त मात्रा में डिपॉजिट के रूप में हर समय फंड मौजूद हो। इस तरह इमरजेंसी की स्तिथि में लोगो को पैसे के मामले किसी तरह की परेशानी का सामना नही करना पड़ता।
इनफ्लेशन पर कंट्रोल: CRR की दर को कंट्रोल करके RBI इनफ्लेशन को कंट्रोल करता है। जैसा की पहले ही बताया गया है, अगर CRR की दर बढ़ाई जाती है, तो महंगाई को कंट्रोल करने में मदद मिलती है वही CRR को घटा कर इकोनॉमी में डिमांड और प्रोडक्शन को बढ़ावा दिया जाता है।
लिक्विडिटी को बैलेंस करना: CRR के जरिए देश में पैसों के फ्लो को कंट्रोल किया जाता है। यह इस बात की तस्दीक करता है की जरूरत पड़ने पर इकोनॉमी से जरूरत से ज्यादा पैसे ना हो अगर इकोनॉमी के काम काज को तेज करना हो तो बिना किसी दिक्कत के लोगो के लिए फंड और साधन मौजूद हों।
बेस रेट: CRR, बेस रेट का निर्णय करने में अहम भूमिका निभाता है। बेस रेट वह मिनिमम रेट हैं, जिसको बेंचमार्क मानकर ही कोई भी बैंक लोगो को लोन के रूप में पैसे उधार दे सकता है।
CRR को क्यों बदला जाता है – CRR ko kyu badla jaata hai
इकोनॉमिक और सरकारी पॉलिसी के अनुसार CRR में समय समय पर बदलाव किया जाता है, और ऐसा करना जरूरी भी है। जब इकोनॉमी या लोगो के पास बहुत ज्यादा पैसा हो तो वह महंगाई का कारण बनता है, क्युकी ज्यादा पैसा होने के केस में लोग ज्यादा खर्चा करते है, जिससे डिमांड बढ़ती है और डिमांड बढ़ने के कारण इनफ्लेशन भी ज्यादा हो जाती है। CRR के जरिए RBI देश में पैसा और उसके फ्लो को कम और ज्यादा कर सकती है, जिससे महगांई को कंट्रोल करने में मदद करती है। ऐसे ही कई सारे इकोनॉमिक और फाइनेंशियल कारण है जिसके कारण सरकार को CRR में बदलाव करना पड़ता है।
वर्तमान CRR दर – Vartman CRR rate
भारत में वर्तमान CRR की दर 4.5% है। यानी की अगर किसी बैंक के पास 1000 रुपए का डिपॉजिट है, तो उसे 450 रुपए सेंट्रल बैंक के पास CRR के रूप में रखने पड़ेंगे।
यह भी जाने : NPA Meaning in Hindi – जानिए बैंकिंग जगत में NPA क्या होता है
CRR और SLR के बीच अंतर – CRR aur SLR ke bich antar
CRR | SLR |
CRR मतलब वह रेश्यो जो देश के बैंको को RBI के पास जरूरी तौर पर रखना पड़ता है। | SLR बैंक के डिपॉजिट का वह पर्सेंटेज है जिसको लिक्विड एसेट की फॉर्म जैसे की सोने, कैश या सरकारी सिक्योरिटी के तौर पर रखना पड़ता है। |
CRR की मदद से RBI देश में पैसों को सप्लाई और इनफ्लेशन को मैनेज करती है। | SLR की मदद के सेंट्रल बैंक इस बात की पुष्टि करती है, की बैंक के पास पर्याप्त मात्रा में फंड मौजूद रहे और उनकी कंडीशन स्टेबल हो। |
CRR रेश्यो पर RBI का डायरेक्ट कंट्रोल होता है। | SLR पर RBI का इनडायरेक्ट कंट्रोल होता है। |
CRR के तौर पर सेंट्रल बैंक के पास रखे पैसों पर कोई इंट्रेस्ट नही दिया जाता। | SLR फंड पर सेंट्रल बैंक द्वारा कुछ इंट्रेस्ट दिया जा सकता है। |
अगर बैंक CRR रेश्यो का पालन नही करता तो उसे पेनल्टी भरनी पड़ सकती है। | SLR को मेंटेन ना करने पर बैंक को पेनल्टी भरनी पड़ती है। |
निष्कर्ष – Conclusion
CRR मॉनेटरी पालिसी का अहम टूल हैं जिसका इस्तेमाल सेंट्रल बैंक समय समय पर करता रहता है। यह भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी बैंको द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की इकोनॉमिक और फाइनेंशियल कंडीशन में बैलेंस बनाए रखने का काम करता है।
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