जब कभी भी आप स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग की कोई ट्रांजेक्शन करते है तो आपने नोटिस किया होगा की आपको अपने ब्रोकर से ईमेल पर कॉन्ट्रैक्ट नोट की एक कॉपी भेजी जाती है। इस कॉन्ट्रैक्ट नोट पर हम में से ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते लेकिन यह कई मायने में हमारे लिए जरूरी है। आज के आर्टिकल “Contract note kya hota hai” के जरिए हम कॉन्ट्रैक्ट नोट को समझने की कोशिश करेंगे और यह भी जानेंगे की इसका क्या महत्व है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट क्या होता है – Contract Note kya hota hai
कॉन्ट्रैक्ट नोट एक लीगल डॉक्यूमेंट होता है जिसमे आपके द्वारा स्टॉक एक्सचेंज में दिन भर के किए गए ट्रेड का ब्योरा होता है। आपका ब्रोकर हर ट्रेडिंग दिन के बाद आपको आपकी रजिस्टर्ड ईमेल आईडी पर कॉन्ट्रैक्ट नोट की कॉपी भेजता है। इसमें आपके अपने ब्रोकर द्वारा इक्विटी और डेरिवेटिव में NSE और BSE में किए गए ट्रेड का पूरा रिकॉर्ड शामिल होता है। यह एक लीगल एग्रीमेंट की तरह काम करता है जो आपके और आपके ब्रोकर द्वारा की गई सभी तरह की स्टॉक मार्केट ट्रांजेक्शन का प्रूफ होता है। इसमें मुख्यता ट्रेड के टर्म और कंडीशन, क्वांटिटी, प्राइस ,टाइम, चार्जेस आदि का ब्योरा होता है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट को खोलने के लिए आपको पासवर्ड को जरूरत होती है। यह पासवर्ड आपका PAN नंबर अप्पर केस यानी की बड़े अक्षरों में होता है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट के भाग – Contract note ke bhaag
लगभग सभी ब्रोकर के कॉन्ट्रैक्ट नोट में नीचे दिए भाग शामिल होते है:
ऑर्डर नंबर: ऑर्डर नंबर में एक्सचेंज पर प्लेस किए गए ऑर्डर का सीरियल नंबर होता है। यह सीरियल नंबर हर ऑर्डर का अलग होता है जो आप एक्सचेंज में प्लेस करते हो।
ऑर्डर टाइम: ऑर्डर टाइम यानी की वह टाइमस्टैम्प जिस समय ऑर्डर को प्लेस किया गया था।
ट्रेड नंबर: यह एक्सचेंज में डाले गए ट्रेड का नंबर दर्शाता है।
ट्रेड टाइम: यह उस समय को दर्शाता है जिस समय ट्रेड एक्सचेंज पर एक्जीक्यूट यानी पूरा हुआ था।
सिक्योरिटी/कॉन्ट्रैक्ट विवरण: यह उस सिक्योरिटी/स्टॉक के नाम को दर्शाता है जिसकी ट्रेडिंग के लिए ऑर्डर डाला गया था।
BUY/SELL: यह ऑर्डर की किस्म को दर्शाता है। BUY सिक्योरिटी की खरीद के लिए और SELL बेचने के ऑर्डर के लिए।
क्वांटिटी: क्वांटिटी यानी की ट्रेड किए गए स्टॉक की गिनती और अगर डेरिवेटिव में ट्रेड किया गया है तो lot की गिनती।
Gross Rate/Trade Price Per unit: इस भाग में लिए गए ट्रेड की वैल्यू यानी की जिस प्राइस पर ट्रेड एक्जीक्यूट हुए है उस का विवरण होता है।
Net Rate per unit: इसकी वैल्यू Gross Rate जितनी ही होती है क्युकी ब्रोकरेज और चार्जेस आदि को एक अलग कॉलम में दर्शाया जाता है।
The Closing Rate per unit: यह भाग सिर्फ डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट के लिए होता है। यह उन डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट को दर्शाता है जिन्हे हम अगले दिन के लिए कैरी करते है। इसमें कैरी किए गए कॉन्ट्रैक्ट के दिन का क्लोजिंग प्राइस होता है।
Net total Before Levies: यह उस टोटल अमाउंट को दर्शाता है जो ब्रोकरेज और टैक्स से पहले क्लाइंट को दी या ली जानी होती है।
ऊपर दिए गए विवरण के बाद एक अंतिम पेज होता है जिसमे ट्रांजेक्शन पर लगे सभी तरह के टैक्स और ब्रोकरेज की जानकारी होती है। इन सब की व्याख्या नीचे की गईं है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट कैसे समझे – Contract note kaise samjhe
लगभग सभी तरह की फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन पर ब्रोकर द्वारा कुछ ना कुछ ब्रोकरेज वसूली जाती है। हालांकि आजकल काफी सारे ब्रोकर फ्री ट्रेडिंग की सुविधा दे रहे है, लेकिन इस के इलावा भी कुछ टैक्स और चार्ज है जो सरकार द्वारा लगाए जाते है और जिन्हे भरना जरूरी होता है। चलिए इन्ही सभी चार्जेस के बारे में जानते है।
Pay In/Pay Out Obligation: इस कॉलम में दिन भर की कुल डेबिट और क्रेडिट ट्रांजेक्शन दी गई होती है। क्रेडिट ट्रांजेक्शन को + और डेबिट ट्रांजेक्शन को – की साइन द्वारा दर्शाया जाता है।
ब्रोकरेज: अगले कॉलम में आपके ब्रोकर द्वारा ट्रांजेक्शन पर चार्ज की गई फीस या ब्रोकरेज का रेट दिया होता है। ज्यादातर डिस्काउंट ब्रोकर एक ऑर्डर पर 0.05 % या 20 रुपए दोनो में से जो भी कम हों वह अमाउंट चार्ज करते है।
STT: इस भाग में सरकार द्वारा लगाए जाने वाला डायरेक्ट टैक्स STT शामिल है जिसे ब्रोकर द्वारा वसूल कर सरकार को जमा करवा दिया जाता है। यह टैक्स इक्विटी डिलीवरी की buy और sell दोनो पर और इंट्रा डे और डेरिवेटिव में sell साइड लिया जाता है।
Taxable Value of Supply: यह भाग तीन चार्जेस के जोड से बना होता है जिसमे शामिल है:
- Total brokerage: ट्रेड पर बनती कुल ब्रोकरेज की अमाउंट।
- Exchange transaction charges: यह अलग अलग एक्सचेंज जैसे की NSE, BSE, MCX आदि द्वारा ट्रेडिंग की सर्विस देने के लिए लिया जाता है।
- Sebi turnover fees: यह मार्केट रेगुलेटर द्वारा चार्ज की जाने वाली फीस है।
CGST: सेंट्रल GST
IGST: इंटर स्टेट GST
SGST: स्टेट GST
स्टांप ड्यूटी: यह सरकार द्वारा शेयर, डिबेंचर, करेंसी और डेरिवेटिव के ट्रांसफर पर लिया जाने वाला चार्ज है।
Net amount payable/receivable: अंतिम भाग में क्लाइंट को दी जाने वाली या उस से ली जाने वाली कुल अमाउंट के बारे में बताया जाता है। यहां पर भी ट्रांजेक्शन को + और – साइन से दर्शाया जाता है। जहां पर + साइन क्रेडिट ट्रांजेक्शन को दर्शाता है वहीं – साइन अमाउंट के डेबिट किए जाने की और इशारा करता है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट क्यों जरूरी है – Contract note kyu jaruri hai
लीगल प्रोटेक्शन: कॉन्ट्रैक्ट नोट एक लीगल डॉक्यूमेंट की तरह काम करता है जिनमे ब्रोकर और इन्वेस्टर दोनो पार्टी द्वारा की गई सभी ट्रांजेक्शन का ब्योरा होता है। किसी भी विवाद की स्थिति में कॉन्ट्रैक्ट नोट को एक सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
रुगुलेटरी compliance: कॉन्ट्रैक्ट नोट फाइनेंशियल मार्केट में ट्रांसपेरेंसी और रेगुलेशन को बरकरार रखने में मदद करता है। जब कभी ब्रोकर या इन्वेस्टर को रेगुलेटर यानी की सेबी को अपनी ट्रांजेक्शन की डिटेल देनी हो तो इसका रिकॉर्ड वह कॉन्ट्रैक्ट नोट से ले सकते है।
रिकॉर्ड कीपिंग: कॉन्ट्रैक्ट नोट रिकॉर्ड कीपिंग का काम भी करता है। इस से इन्वेस्टर की इन्वेस्टमेंट परफॉर्मेस को ट्रैक करने, उसके टैक्स को कैलकुलेट करने और फाइनेंशियल रिकॉर्ड को रखने में मदद मिलती है।
ब्रोकरेज और चार्जेस का रिकॉर्ड: कॉन्ट्रैक्ट में आपके द्वारा लिए गए सभी ट्रेड्स पर लगने वाले ब्रोकरेज और चार्ज का ब्योरा होता है। यह आपके और ब्रोकर के बीच में ट्रांसपेरेंसी बनाए रखने का काम करता है।
टैक्स कैलकुलेशन: कैपिटल गेन टैक्स को कैलकुलेट करने में कॉन्ट्रैक्ट नोट की मदद ली जा सकती है क्युकी इसमें हमे हुए कुल फायदे या नुकसान का सटीक रिकॉर्ड होता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
कॉन्ट्रैक्ट नोट फाइनेंशियल मार्केट की हमारी ट्रांजेक्शन का रिकॉर्ड रखने और उन्हें ट्रैक करने में एक अहम रोल अदा करता है। इससे हमारे द्वारा की गई ट्रांजेक्शन पर लगने वाले ब्रोकरेज और टैक्स की ट्रांसपेरेंसी बनी रहती है और उन्हें ट्रैक करना बहुत आसान हो जाता है।