सरकार को देश चलाने, निर्माण और डेवलपमेंट कामों को करने के लिए पैसों की जरूरत होती है। इस पैसे को जुटाने के लिए सरकार के पास कई तरीके है जैसे की टैक्स, फाइन, फीस और कर्जा आदि। Disinvestment भी एक ऐसा ही तरीका हैं जिस से सरकार पब्लिक सेक्टर कंपनियों या सरकारी एजेंसियों से अपनी हिस्सेदारी बेचकर पैसा जुटाती है। आज इस आर्टिकल “Disinvestment meaning in hindi” में हम disinvestment के कांसेप्ट को समझने की कोशिश करते हुए यह भी जानेंगे की यह क्यों जरूरी है।
Disinvestment क्या है – Disinvestment meaning in hindi
जब सरकार एक पब्लिक सेक्टर कंपनी से अपनी हिस्सेदारी या इन्वेस्टमेंट को बेचती है तो उसे disinvestment कहते है। सरल भाषा में हम कह सकते है disinvestment के जरिए सरकार या एक संस्था अपना शेयर किसी और पार्टी को बेच कर फंड का इंतजाम करती है। इससे सरकार के खर्चों में कमी आती है और जो पैसा सरकार को disinvestment से मिलता है, उसका इस्तेमाल कर्ज को चुकाने, लॉन्ग टर्म सरकारी योजनाओं में, विकास के कामों में किया जाता है। भारत में disinvestment का कार्यभार देखने के लिए एक अलग से डिपार्टमेंट का गठन किया गया हैं जिसका नाम DIPAM यानी की Department of Investment and Public Asset Management है।
Disinvestment के कारण प्राइवेट कंपनियों को सरकारी अंडरटेकिंग को मैनेज करने का मौका मिलता है जिससे उनकी मैनेजमेंट में सुधार और मुनाफे में बढ़ोतरी होती है। प्राइवेट मैनेजमेंट आने के कारण मार्केट में मोनोप्ली भी खत्म होती है साथ ही कॉम्पिटिशन को बढ़ावा मिलता है। हाल ही में भारतीय सरकार द्वारा Air India का स्टेक टाटा को disinvestment के तहत ही बेचा किया गया था।
Disinvestment का महत्व – Disinvestment ka mahatav
सरकार disinvestment का रास्ता कई कारणों से चुन सकती है। इसका एक बड़ा मुख्य कारण तो यह हो सकता है जब सरकार पर भारी कर्जा हो और इसे चुकाने के लिए पैसे की जरूरत हो या फिर किसी निर्धारित प्रोजेक्ट के लिए एक बड़ी राशि को जरूरत हो।
इसके इलावा सरकारी विभागों में कई बार सही से काम नहीं होता और इसी कारण उसमे मुनाफे की जगह नुकसान होने लगता है। Disinvestment के जरिए सरकार प्राइवेट कम्पनी को सरकारी मैनेजमेंट में भाग लेने और इन्वेस्टमेंट करने के लिए प्रोत्साहित करती है जिस से मैनेजमेंट में सुधार और नुकसान को कंट्रोल किया जा सकता है। इस से सर्विस में भी सुधार होता है और आम लोगो को सरकारी सहुलतो का फायदा सही ढंग से मिल पाता है।
सरकार ने पहली बार 1992 की इकोनॉमिक पॉलिसी में disinvestment के महत्व पर जोर दिया गया था। उस समय की PSU यानी की सरकारी संस्थान पर काफी सालो तक नेगेटिव रिटर्न आने के कारण सरकार को काफी नुकसान होने लगा था। Disinvestment के तहत सरकार ने उन सेक्टर्स पर ध्यान दिया जहां पर सही ढंग से काम ना होने के कारण सरकार को नुकसान हो रहा था। इस समय देश में प्राइवेट कंपनियों का भी उदय हो रहा था इस कारण सरकार ने इन संस्थानों से अपना स्टेक बेचकर प्राइवेट कंपनियों को मौका देने का फैसला किया। इस से एक तो मैनेजमेंट में सुधार हुआ दूसरा मार्केट में नए लोगो के आने से नए आइडिया और स्किल में बढ़ावा मिला।
Disinvestment के प्रकार – Disinvestment ke prakaar
Disinvestment को मुख्यता दो भागो में बांटा जा सकता है। वह है:
Minority Disinvestment
Majority Disinvestment
Minority Disinvestment: Minority Disinvestment में सरकार कंपनी का ज्यादातर हिस्सा अपने पास ही रखती है जो 51% या उससे ज्यादा हो सकता है। यहां इस बात को ध्यान में रखा जाता है की कंपनी की मैनेजमेंट सरकार के हाथो मे ही रहे। Minority स्टेक को सरकार कई तरीको से बेच सकती है जिनमे IPO, FPO और OFS शामिल है।
Majority Disinvestment: इस तरह की disinvestment में सरकार कम्पनी से अपना ज्यादातर हिस्सा बेच देती है और थोड़ा स्टेक ही अपने पास रखती है। इसे मुख्यता तीन तरीको से किया जा सकता जिनमे स्ट्रेटेजिक सेल, privatization और complete privatization शामिल है।
सरकार disinvestment क्यों करती है – Sarkar disinvestment kyu karti hai
सरकार disinvestment कई कारणों से कर सकती है जिनमे से कुछ मुख्य है:
- मार्केट से फंडिंग जुटाने के लिए, जिसका इस्तेमाल सरकार कर्ज को चुकाने और देश में हो रहे विकास कार्यों में करती है।
- Underperform करने वाली फर्म को योग्य लोगो के हाथो में देकर, ताकि परफॉर्मेंस में सुधार किया जा सके और इन्वेस्टमेंट की रिटर्न बढ़ाई जा सके।
- सरकार द्वारा अपने लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट के लिए पैसे जुटाने के लिए।
- मार्केट में प्राइवेट कंपनियों के योगदान को बढ़ावा देने के लिए।
- मार्केट में कॉम्पिटिशन को बढ़ावा देने के लिए जिस से सर्विस में सुधार और लागत में कमी आ सके।
Disinvestment और प्राइवेटाइजेशन में फर्क – Disinvestment aur privatization me fark
- प्राइवेटाइजेशन अंतर्गत सरकार द्वारा पब्लिक कम्पनी से अपना पूरा स्टेक प्राइवेट कंपनी को बेच दिया जाता है। जबकि disinvestment में सरकार पब्लिक कम्पनी का कुछ स्टेक ही बेचती है जिसके कारण मैनेजमेंट का पूरा या कुछ कंट्रोल सरकार के हाथ में ही रहता है।
- प्राइवेटाइजेशन में एक कंपनी का पूरा मालिकाना हक सरकार से प्राइवेट कंपनी को ट्रांसफर कर दिया जाता है दूसरी तरफ disinvestment में कंपनी के मालिकाना हक में कोई बदलाव नहीं आता।
- प्राइवेटाइजेशन में स्ट्रेटेजिक सेल्स, IPO और नीलामी आदि का प्रयोग किया जाता है वहीं disinvestment में प्राइवेटाइजेशन के सभी तरीको समेत स्टेक सेल का भी सहारा लिया जाता है।
- प्राइवेटाइजेशन से मैनेजमेंट में सुधार, नए आइडिया और कॉम्पिटिशन को बढ़ावा मिलता है दूसरी तरफ disinvestment से मैनेजमेंट में तो सुधार होता है, पर अन्य चीजों की गारंटी नहीं होती।
- प्राइवेटाइजेशन के बाद कंपनी का मुख्य उद्देश्य प्रॉफिट कमाना और एक्सपेंशन होता है लेकिन disinvestment में मुख्य उद्देश्य बेहतर सर्विस प्रदान करना ही रहता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
Disinvestment के जरिए सरकार अपनी हिस्सेदारी उन कंपनियों से बेचती है, जहां से उसे फायदा नहीं हो रहा या मैनेजमेंट की हालत बहुत खराब होने के कारण आम लोगो को परेशानी का सामना करना पढ़ रहा है। सरकार चाहे तो कम्पनी से अपना थोड़ा या ज्यादा स्टेक बेच सकती है लेकिन सिर्फ इतना ही की मेनेजमेंट का कंट्रोल उसके हाथ में रहे और लोगो के हित में किए जाने वाले कामों को कोई प्रभाव न पड़े।