बैंकिंग जगत में आप करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट जैसी टर्म्स के बारे में तो रोज सुनते होंगे, लेकिन क्या आप जानते है की इसके इलावा भी कई सारे ऐसे अकाउंट है जिसके बारे में हमे कभी कभार ही सुनने मिलता है। एस्क्रो अकाउंट इन्ही में से एक है। एस्क्रो अकाउंट बाकि बैंक अकाउंट की तुलना में अलग होता है जिसका इस्तेमाल ट्रेडिंग और मॉर्गेज जैसे कामों में होता है। आज के इस आर्टिकल “Escrow Account Meaning in Hindi” में हम एस्क्रो अकाउंट के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
एस्क्रो अकाउंट क्या है – Escrow Account Meaning in Hindi
एक एस्क्रो अकाउंट दो लेन देन करने वाली पार्टियों के बीच में थर्ड पार्टी अकाउंट की तरह काम करता है। इसका काम दोनों पक्षों के पैसों को निरपक्ष रूप से मैनेज करना होता है ताकि फ्रॉड की सम्भावना को कम से कम रखा जा सके। इस अकाउंट में पैसे रखने के बदले कुछ टर्म्स और कंडीशन रखी जाती है, जिनको अगर दोनों पार्टियां पूरी करती है तभी किसी पेमेंट का भुगतान किया जाता है।
इस तरह का अकाउंट दो पार्टियों जो ट्रांज़ैक्शन में शामिल होती है, की तरफ से फंड्स को होल्ड और मैनेज करता है। एस्क्रो अकाउंट का मुख्य उद्देश्य दोनों बायर और सेलर को सिक्योर और निरपेक्ष सर्विस देना होता है ताकि दोनों पार्टियां यह सुनिश्चित कर सके की किसी भी तरह की स्तिथि में उन्हें पैसों का कोई नुक्सान नहीं होगा और अगर होगा भी तो उसके लिए अलग से कंपनसेशन मौजूद होगा। इस तरह के अकाउंट आम तौर पर रियल एस्टेट की ट्रांज़ैक्शन, मॉर्गेज, लिक्वीलॉन्स आदि के केस में खोले जाते है।
चलिए इसे एक उदाहरण के साथ समझते है। मान लीजिए आप एक फ्रीलांसर है और आप upwork या fivver जैसी फ्रीलांसिंग साइट के द्वारा मिले किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है। ऐसे केस में आप जिसके प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है, आप उसे ना के बराबर जानते है और हो सकता है वह किसी और देश से हो। इस स्तिथि में आपके मन में यह शंका रहेगी की प्रोजेक्ट पूरा होने पर आपको पेमेंट मिलेगी की नहीं या काम देने वाले के मन में यह बात हो सकती है की पैसे देने की बाद भी उसका प्रोजेक्ट पूरा होगा या नहीं।
ऐसी स्तिथि में फ्रीलांसिंग साइट का अकाउंट जिसके द्वारा आप दोनों एक दूसरे से मिलते हो, एक एस्क्रो अकाउंट का काम करता है। इन साइट में ऐसी टर्म्स और कंडीशन होती है जिनके चलते दोनों पार्टियां किसी भी तरीके से आपस में पर्सनली कांटेक्ट नहीं कर सकती यानि जो भी कम्युनिकेशन और पेमेंट होगी वह फ्रीलांसिंग साइट के माध्यम से ही होगी और यही साइट इस बात की गैरेंटर भी होगी की दोनों पक्ष का काम सही ढंग से पूरा हो जाए और कहीं पर भी डिफॉल्ट कर फ्रॉड की सम्भावना ना रहे।
एस्क्रो अकाउंट कैसे काम करता है – Escrow account kaise kaam karta hai
मुख्यता एस्क्रो अकाउंट का इस्तेमाल बड़ी ट्रांजेक्शन के लेन देन के लिए किया जाता है जिनकी कीमत करोड़ो में हो सकती है। इसमें शामिल पार्टिया भी बड़े इस्टीट्यूशन, ब्रोकर या कम्पनिया होती है। एक एस्क्रो अकाउंट की वर्किंग में निचे दिए स्टेप्स शामिल होते है:
एग्रीमेंट: सबसे पहले वह दो पार्टियां आपस में एग्रीमेंट करती है जिनको बिज़नेस और पैसों का लेन देन करना होता है। इस एग्रीमेंट में बिजनेस के नेचर, ट्रांजेक्शन और कॉन्ट्रैक्ट से जुडी सभी टर्म्स और कंडीशन शामिल होती है। दोनों पार्टियां इस बात पर एग्री करती है की दोनों को बिजनेस में शामिल फंड्स को मैनेज करने के लिए एक एस्क्रो अकाउंट की जरुरत है।
एस्क्रो एजेंट का चुनाव: दोनों पार्टियां आपसी सहमति से एक एस्क्रो एजेंट का चुनाव करती है जो आमतौर पर एक बैंक या फाइनेंशियल इस्टीट्यूशन होता है। एस्क्रो एजेंट दोनों पार्टी की तरफ से फंड्स को मैनेज करने और सेट टर्म्स और कंडीशन पर काम करने की सहमति देता है।
फंडिंग: सभी जरुरी फॉर्मेलिटी हो जाने के बाद दोनों पार्टियों के द्वारा एस्क्रो अकाउंट में फण्ड डिपाजिट या फंड्स का लेन देन किया जाता है।
कंडीशन पर डिस्बर्समेंट: एस्क्रो एजेंट तब तक फंड को अपने पास होल्ड करता है जब तक तय टर्म्स और कंडीशन की आपूर्ति नहीं हो जाती। इनके पुरे होने पर ही फंड्स को किसी एक पार्टी को रिलीज किया जाता है।
विवाद का सुलझाव: अगर किसी केस में टर्म्स और कंडीशन पूरी नहीं हो पाती तो एस्क्रो एजेंट शामिल पार्टी से संपर्क करके मामले को सुलझाने की कोशिश करता है। इसके बाद भी अगर कोई नतीजा नहीं निकलता है तो वह जरुरी लीगल एक्शन और प्रोसीजर को फॉलो कर सकता है।
एस्क्रो अकाउंट कहां इस्तेमाल होता है – Escrow account kahan istemal hota hai
भारत में एस्क्रो अकाउंट कई क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जाता है जिनमे से कुछ मुख्य निचे दिए गए है:
रियल एस्टेट: एस्क्रो अकाउंट को सबसे ज्यादा इस्तेमाल यही इंडस्ट्री करती है। बीते कुछ वक्त में रियल एस्टेट ट्रांजेक्शन में काफी फ्रॉड हुए है और इनमे शामिल फंड्स भी काफी ज्यादा मात्रा में थे। इसे देखते हुए सरकार ने रियल एस्टेट ट्रांज़ैक्शन के लिए एस्क्रो अकाउंट को जरुरी बना दिया है। इसके मुताबिक कस्टमर फण्ड का कम से कम 80% हिस्सा एस्क्रो अकाउंट में रखना जरुरी है।
NBFC और फिनटेक: NBFC और फिनटेक अपने फंड्स को कस्टमर को डिसबर्स करने से पहले उसे एस्क्रो अकाउंट में रखते है।
मर्जर और एक्यूजिशंस: किसी कंपनी के दूसरे के साथ मर्जर होने पर या किसी कंपनी के दूसरे को खरीदने पर भी जो पैसों का लेन देन होता है उसे एस्क्रो अकाउंट में रखा जा सकता है। ऐसे केस में सौदा होने के दौरान बहुत सारी लीगल फॉर्मेलिटी और दोनों स्टेकहोल्डर्स के अप्रूवल जैसे प्रोसेस शामिल होते है। जब तक यह सब चीजे पूरी होती है तब तक फंड को दोनों पार्टियों के बजाए एस्क्रो अकाउंट में रखा जाता है ताकि डील पूरी होने तक किसी भी तरह की कोई परेशानी ना हो।
फ्रीलांसर: जैसे की ऊपर बताए उदाहरण में दर्शाया गया है फ्रीलांसिंग वेबसाइट पर फ्रीलांसर और सर्विस लेने वाले व्यक्ति के बीच हो रहे पैसों के लेन देन में भी एस्क्रो अकाउंट का प्रयोग किया जाता है ताकि दोनों पार्टी अपने कॉन्ट्रैक्ट पर बनी रहे और पैसों के मामले में किसी भी तरह का फ्रॉड ना होने पाए।
ऑक्शन: ऑक्शन यानि नीलामी के केस में भी एस्क्रो अकाउंट का प्रयोग किया जाता है। ऑक्शन के पुरे प्रोसेस के दौरान एक बैंक ऑक्शन करने वाली पार्टी और बायर के बीच में एस्क्रो अकाउंट का काम करता है।
भारत में एस्क्रो अकाउंट कैसे खोलें – Bharat me escrow account kaise kholen
- कहीं पर एस्क्रो अकाउंट खुलवाने से पहले बायर और सेलर उस एग्रीमेंट पर agree करते है जिसमे सौदे के लिए सभी टर्म्स और कंडीशन मौजूद होती है, इस एग्रीमेंट को एस्क्रो एग्रीमेंट भी कहा जाता है।
- किसी एक बैंक या फाइनेंशियल इस्टीट्यूशन के पास अकाउंट खुलवाने के बाद बायर एग्रीमेंट के मुताबिक उसमे फंड जमा करवाता है।
- दोनों पार्टीज की तरफ से फंड को एस्क्रो एजेंट द्वारा साइन और वेरीफाई किया जाता है। एस्क्रो एजेंट अकाउंट में पड़े पैसों पर लगातार नजर रखता है और इस बात का ध्यान देता है की पैसों के मामले में दोनों पार्टियां सही ढंग से अपना काम कर रही है या नहीं।
- एस्क्रो अकाउंट में पड़े फंड या एसेट को तभी रिलीज किया जाता है जब दोनों पार्टियों की और से एग्रीमेंट के मुताबिक व्यवहार किया जाता है।
- अगर दोनों पार्टियां या एक पार्टी एस्क्रो अकाउंट के एग्रीमेंट के मुताबिक काम नहीं करती तो फण्ड को रिलीज नहीं किया जाता है और मामले के निपटारे के लिए लीगल एक्शन लिया जा सकता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
ज्यादातर लोगो के लिए एस्क्रो अकाउंट एक नया कांसेप्ट है जिसके बारे में उन्हें कभी कभार ही सुनने को मिलता है। इ-कॉमर्स और डिजिटल ट्रांजैक्शन के इस युग में यह अकाउंट बहुत अहम भूमिका निभाता है। यह बायर और सेलर दोनों के लिए फंड्स की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और इस बात का ध्यान रखता है की दोनों पक्षों को पैसों से जुडी कोई हानि ना उठानी पड़े। उम्मीद है की इस आर्टिकल ने आपकी फाइनेंस और बैंकिंग जगत की जानकारी में और इजाफा किया होगा और आपको इनसे जुड़ा कुछ और नया जानने को मिला होगा।