TDS kya hota hai – क्यों और कब काटा जाता है? पूरी जानकारी

ITR भरते वक्त या फॉर्म 16 में आपने TDS के बारे में पढ़ा या देखा तो जरूर होगा। TDS इनकम टैक्स का एक जरुरी भाग है, जो अगर आपकी इनकम एक निश्चित तय की गई सीमा से अधिक है तो उस पर लिया जाता है। यह टैक्स पेयर द्वारा पेमेंट को करने से पहले काटकर सरकार जो सबमिट कर दिया जाता है इसलिए यह एडवांस टैक्स की दायरे में आता है। आज के इस आर्टिकल “TDS kya hota hai?” में हम TDS के बारे में हर जरुरी बात को पूरी तरह से जानेंगे।

TDS kya hota hai

TDS क्या होता है? – TDS kya hota hai?

TDS का मतलब होता है Tax Deduction at Source। यह भारत सरकार द्वारा लागु की गई टैक्स की एक किस्म है जो किसी इनकम की पेमेंट होने से पहले ही पेमेंट करने वाले द्वारा काट कर सरकार को जमा करवा दिया जाता है। इस टैक्स की डिडक्शन पेमेंट की कुछ परसेंटेज के रूप में होती है जो की हर ट्रांजेक्शन के नेचर के हिसाब से अलग अलग हो सकती है। TDS इनकम टैक्स एक्ट 1961 के अंतर्गत लागु किया गया था जो कई तरह की पेमेंट जैसे की सैलरी, इंटरेस्ट इनकम, रेंट आदि पर काटा जाता है।

कोई भी इंसान या कंपनी जो की इस तरह की पेमेंट कर रही है के लिए असल पेमेंट करने से पहले टैक्स को काटना और सरकार जो जमा करना जरुरी होता है। ऐसे ट्रांजेक्शन में जो पार्टी पेमेंट कर रही है या टैक्स को काट रही है उसे deducter और जो पार्टी पेमेंट को ले रही है या जिसकी इनकम से टैक्स कट रहा है उसे deducted कहते है।

TDS कितनी तरह का होता है? – Types of TDS

TDS के दायरे में आने वाली कुछ मुख्य पेमेंट नीचे बताई गई है:

सैलरी – Salary: सैलरी पर TDS काटना टैक्स डिडक्शन का सबसे आम तरीका है। हर उस एम्प्लायर को जिनके कर्मचारी की सैलरी एक निश्चित स्लैब से ज्यादा है को उनकी सैलरी से TDS काटना जरुरी होता है। 60 साल के उम्र तक वह सभी नागरिक जिनकी सालाना आय 2.5 लाख रूपये से कम है को TDS में एक्जेंप्शन मिलती है, यानि की 2.5 लाख तक की इनकम पर कोई भी टैक्स नहीं काटा जाता। पुराने टैक्स रेजीम के अनुसार अगर आपकी इनकम 2.5 लाख से 5 लाख के बीच में है तो उस पर 5% के हिसाब से TDS एप्लीकेबल होगा। इसी तरह 5 से 10 लाख तक की इनकम रेंज 20% TDS स्लैब के दायरे में आती है। सैलरी पर कटने वाले TDS की कैलकुलेशन हम विस्तार से आगे आर्टिकल में करेंगे।

इंट्रेस्ट और डिविडेंड – Interest & Dividend: फाइनेंशियल संस्था इंटरेस्ट की पेमेंट और कंपनिया अपने शेयरहोल्डर को डिविडेंड देने से पहले उसपर TDS को काटती है। अगर दिए जाने वाले डिविडेंड की अमाउंट 5000 से ज्यादा है तो उसपर 10% के हिसाब से TDS काटा जायेगा। इसपर भी अगर डिविडेंड लेने वाले का पैन उपलब्ध नहीं है तो यही दर 10% की जगह 20% होगी।

रेंट पेमेंट – Rent Payment: उन रेंटल पेमेंट पर जो की एक निश्चित सीमा से ज्यादा होती है, उसपर TDS काटा जाता है। ये रेंटल पेमेंट किसी मशीन या प्रॉपर्टी के एवज में हो सकती है। अगर पेमेंट किसी मशीनरी के रेंट के रूप में आ रही है और सालाना 240,000 रूपये से ज्यादा है तो उसपर 2% के हिसाब से TDS लागु होगा। इसी तरह वह इनकम जो किसी प्रॉपर्टी के किराए के रूप में आ रही है और उसकी सालाना रकम 240,000 से ज्यादा है तो उसपर 10% TDS लागु होगा।

प्रॉपर्टी की सेल – Property sale: वह प्रॉपर्टी जो किसी को बेची जा रही है या जिसकी मलकियत को ट्रांसफर किया जा रहा है, अगर उसकी वैल्यू 50,00,000 से ज्यादा है तो उसपर 1% के हिसाब से TDS लागु होता है। यहां इस बात का ध्यान रखे की इस तरह की प्रॉपर्टी में एग्रीकल्चर लैंड यानि की खेतीबाड़ी की जमीन शामिल नहीं होती, और अगर यह खेतीबाड़ी की जमीन है तो उसकी खरीद और बेच पर कोई भी TDS लागु नहीं होगा।

प्रोफेशनल और कंसल्टेशन फीस – Professional and consultation fees

TDS सर्टिफिकेट क्या होता है? – TDS certificate kya hota hai?

जब कभी भी किसी पेमेंट से TDS को काटा जाता है तो deductee एक सर्टिफिकेट को इश्यू करता है जिसे TDS सर्टिफिकेट कहते है। एक TDS सर्टिफिकेट में काटे गए TDS की पूरी जानकारी होती है। TDS सर्टिफिकेट दो तरह के होते है: फॉर्म 16 और फॉर्म 16A।

जब कोई एम्प्लायर अपने कर्मचारी की सैलरी में से TDS को काटता है तो उस काटे गए TDS की पूरी जानकारी फॉर्म 16 में होती है। फॉर्म 16 में TDS के इलावा कर्मचारी की अन्य स्रोतों से इनकम और टैक्स डिडक्शन का ब्योरा होता है। हर कंपनी जो की अपने कर्मचारी की सैलरी से TDS डिडिक्ट करती है, को फॉर्म 16 को इश्यू करना जरुरी होता है।

सैलरी के इलावा किसी और इनकम के साधन से काटे गए TDS को फॉर्म 16A में दर्शाया जाता है, जैसे की रेंटल इनकम, सेल ऑफ प्रॉपर्टी, डिविडेंड पेमेंट आदि।

सैलरी पर TDS कैसे कैलकुलेट किया जाता है? – Salary par TDS kaise calculate kiya jaata hai?

किसी भी कर्मचारी की सैलरी पर TDS को कैलकुलेट करने के लिए सब से पहले उसकी ग्रॉस सैलरी का पता लगाया जाता है जो एक फाइनेंशियल ईयर में कर्मचारी को दी जानी है। इस सैलरी में basic pay, allowance, HRA, EPFO, gratuity आदि शामिल होते है। इसके बाद सैलरी में मिलने वाली exemptions को घटाया जाता है जिनके अंतर्गत इनकम टैक्स में रिबेट मिलती है। यह exemption HRA, travel expense, rental allowance आदि के रूप में हो सकती है। इसके इलावा सैलरी में से स्टैण्डर्ड डिडक्शन जो 50,000 तक की होती है, को भी घटाया जाता है।

ग्रॉस सैलरी से सभी तरह deductions के बाद जो रकम बचती है उसे नेट टैक्सेबल इनकम कहते है। सैलरी इनकम के इलावा अगर कर्मचारी अन्य सोर्स से इनकम की जानकारी देता है, जैसे किसी तरह का रेंट, बैंक डिपाजिट का इंटरेस्ट, तो उसे भी इनकम ही समझा जाता है और नेट टैक्सेबल सैलरी में जमा कर दिया जाता है।

इसके अलावा अगर कर्मचारी ने कोई टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट कर रखी है और एम्प्लायर को इसकी जानकारी है तो वह उसे नेट टैक्सेबल इनकम से घटा सकता है। इनमे इन्वेस्टमेंट जैसे की PPF, ELSS म्यूच्यूअल फण्ड, लाइफ इंश्योरेंस, LIC आदि शामिल होती है। इन इन्वेस्टमेंट में अलग अलग सेक्शन जैसे 80C, 80D और 80G के अंतर्गत रिबेट मिलती है।

सेक्शन 192 के अंतर्गत अलग अलग इनकम स्लैब पर अलग अलग TDS की दर लागु होती है। हां, अगर कर्मचारी का पैन कार्ड मौजूद नहीं है तो TDS की दर 20% + 4% cess होती है। पुराने टैक्स रेजीम और नई टैक्स रेजीम के अंतर्गत निम्नलिखित स्लैब पर TDS रेट लागु होते है:

Income Slab TDS as per New tax regime
Up to Rs 2.5 lakh NIL
₹2,50,000 – ₹5,00,000 5%
(tax rebate u/s 87A is available)
₹5,00,000 – ₹7,50,000 10%
₹7,50,000 – ₹10,00,000 15%
₹10,00,000 – ₹12,50,000 20%
₹12,50,000 – ₹15,00,000 25%
>₹15,00,000 30%
Income Slab TDS as per old tax regime
Up to Rs 2.5 lakh NIL
Rs 2.5 lakh – Rs 5 lakh 5%
Rs 5 lakh – Rs 10 lakh 20%
> Rs 10 lakh 30%

Source: Income Tax offical website

आइए सैलरी पर TDS कैलकुलेशन को इस उदाहरण के माध्यम से समझते है:

मान लीजिए एक व्यक्ति जिसका नाम अमित है एक कंपनी ABC में काम करता है जहां उसकी सैलरी 75000 रूपये महीना है। इस सैलरी में से हम exemptions जैसे की HRA जिसे हम 7500 महीना मान के चलते है को घटा सकते है। इसके इलावा अमित ने 10,000 ELSS में और 10,000 PPF में इन्वेस्ट किया हुआ है।

दिए गए वर्णन के अनुसार उसकी कुल सालाना सैलरी होगी: 75000*12=900,000

कुल exemption जिसे हम घटा सकते है: 7500*12=90,000

वह एप्लीकेबल स्टैण्डर्ड डिडक्शन जिसे वह क्लेम कर सकता है: 50,000

अपनी इन्वेस्टमेंट पर वह रिबेट क्लेम कर सकता है: 150,000

Particulars Action Amount
Gross Salary 900,000
Exemptions Less 90,000
Standard Deduction Less 50,000
Gross Taxable Income 760,000
Section 80c Investment Rebate Less 150,000
Net Taxable Income 610,000
TDS As per old tax slab 0 to Rs 2.5 lakh – Nil
Rs 2.5 lakh to Rs 5 lakh – 5%
Rs 5 lakh to Rs 10 lakh – 20%
12,500 + 22,000
Total TDS applicable 34,500

TDS कटने पर रिफंड कैसे ले? – TDS katne par refund kaise len?

TDS का रिफंड तब क्लेम किया जाता है या एप्लीकेबल होता है जब आपकी इनकम या सैलरी से कटा TDS आपकी कुल टैक्स देनदारी से ज्यादा हो। इनकम टैक्स के अंतर्गत टैक्सपेयर अलग अलग टैक्स स्लैब्स के अंडर आते है। जिसमे अगर आपकी असल टैक्स स्लैब आपके कटे गए TDS टैक्स स्लैब से मेल नहीं खाती तो आप उन दोनों के अंतर को TDS रिफंड के रूप में क्लेम कर सकते है। चलिए इसे एक उदाहरण के साथ समझते है:

मान लीजिए आपकी सैलरी से 50,000 के करीब TDS काटा गया है जो आपकी सिर्फ सैलरी से हो रही इनकम के आधार पर ही कटा है और इसमें आपकी किसी भी पर्सनल इनकम और इन्वेस्टमेंट का ब्यौरा शामिल नहीं है। TDS के कटने के बाद कटे TDS का विवरण आप फॉर्म 16 और फॉर्म 16A में देख सकते है और यही दो फॉर्म आपको ITR को भरने और उसे आपकी exact इनकम से मैच करने में भी मदद करते है।

इस केस में जब भी आप ITR फाइल करेंगे तो आपको अपनी इन्वेस्टमेंट और सेविंग का ब्यौरा भी उसमे शामिल करना पड़ेगा। इस इन्वेस्टमेंट पर आप इनकम टैक्स के विभिन्न सेक्शन के अंतर्गत रिबेट ले सकते है। ITR में रिबेट लेने की बाद यदि आपकी टैक्सेबल इनकम, आपके कटे गए TDS से कम होती है तो इन दोनों का जो फर्क होगा, उसे आप TDS रिफंड के रूप में क्लेम कर सकते है। अगर आपका कुल बनता टैक्स 20,000 रूपये है तो टोटल कटे TDS से इसे घटाने के बाद जो की 50,000 रूपये था, आप बचे 30,000 को TDS रिफंड के रूप में क्लेम कर सकते है। ITR भरने के दौरान आपसे इनकम टैक्स पोर्टल में अपनी बैंक अकाउंट की जानकारी सबमिट करने को कहा जायेगा और इसी बैंक अकाउंट में ही आपका TDS क्लेम रिफंड किया जाता है।

यह भी जानिए: Old vs New tax regime – दोनों में क्या फर्क है, बजट 2023 के बाद कौन सा चुने?

अंत में हम यही कह सकते है की TDS भारतीय टैक्स सिस्टम का एक बेसिक फंक्शन है जो टैक्स की चोरी को रोकने में मदद करता है। इस आर्टिकल के माध्यम से हमने TDS से जुडी सभी जरुरी जानकारी आप तक सरल भाषा में पहुंचने की कोशिश की है, क्युकी टैक्स के अन्य रूपों की तरह ही TDS को समझाना और इसकी कार्यप्रणाली को जानना हमारे लिए जरुरी है।

Liked our Content? Spread a word!

Leave a Comment