फाइनेंशियल मार्केट में लगभग हर किस्म के लोगो की जरूरतों के अनुसार प्लान और स्कीम उपलब्ध है। यह प्लान खासकर इनके टारगेट कस्टमर की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए और ऑपरेट किए जाते है। देश और दुनिया के कुछ अमीर और हाई नेट वर्थ लोग है, जो अपनी इन्वेस्टमेंट को मैनेज करने के लिए अलग से प्रोफेशनल लोगो को काम पे रख सकते है, जिनका काम उनके कैपिटल को सुरक्षित रखते हुए मार्केट से अच्छी रिटर्न जेनरेट करके देना होता है और इसके बदले वह कुछ फीस चार्ज करते है। ऐसे लोगो की जरूरतों के लिए चलाए जाने वाले फंड में से एक है, हेज फंड। आज हम अपने आर्टिकल ’Hedge Fund meaning in hindi’ के जरिए इस फंड के सभी जरूरी पहलुओं को जानने की कोशिश करेंगे।
हेज फंड क्या होता है – Hedge Fund meaning in hindi
हेज फंड एक तरह के प्राइवेट पार्टनरशिप इन्वेस्टमेंट होती है, जहां पर कई बड़े इन्वेस्टर अपने पैसे को एक साथ पूल करते है, और एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा उन पैसों को मैनेज और इन्वेस्ट किया जाता है। यह एक तरह का म्यूचुअल फंड ही होता हैं जिसका मुख्य उद्देश्य हर तरह की मार्केट कंडीशन में इन्वेस्टर्स के लिए एक अच्छी रिटर्न जेनरेट करना होता है। हेज का मतलब होता है, किसी एसेट पर अलग अलग स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करके रिस्क को कम से कम रखना और रिटर्न को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना। इनमे शॉर्ट सेलिंग, लिवरेज, फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग जैसी स्ट्रेटजी शामिल हो सकती है।
हेज फंड में आम लोग द्वारा इन्वेस्ट नही किया जा सकता। यह फंड हाई नेट वर्थ वाले लोगो की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए होते है, जिसकी मैनेजमेंट और रिटर्न को जेनरेट करने के लिए उनसे फीस चार्ज की जाती है। इनको प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टमेंट और वेंचर कैपिटल फंड के नाम से भी जाना जाता है। भारत में Sebi ने हेज फंड को 2012 में एक AIF यानी की Alternative Investment Fund के तौर पर शुरू किया था।
हेज फंड की विशेषताएं – Hedge Fund ki visheshtaye
Qualification: हेज फंड केवल हाई नेट वर्थ लोगो के लिए उपलब्ध होता है, जो सेट की गई इनकम इन्वेस्टमेंट लिमिट को पूरा करते है। एक हेज फंड को शुरू करने के लिए मिनिमम 20 करोड़ की पूल इन्वेस्टमेंट की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए क्युकी हेज फंड को एक रिस्की इन्वेस्टमेंट माना जाता है और अगर फंड मैनेजर के पास पर्याप्त फंड उपलब्ध होंगे तभी वह इसे अच्छी तरह मैनेज, और होने वाले लॉस को कवर कर पाएगा।
एक्टिव मैनेजमेंट: हेज फंड, फंड मैनेजर द्वारा एक्टिवली मैनेज किया जाता है। यानी वह मार्केट कंडीशन और उसके उतार चढ़ाव को देखते हुए तेजी से निर्णय लेते है और अपनी स्ट्रेटजी में बदलाव करते है ताकि कम रिस्क में अच्छी रिटर्न को जेनरेट किया जा सके।
फीस स्ट्रक्चर: हेज फंड द्वारा इन्वेस्टर से इसको मैनेज और रिटर्न को जेनरेट करने के लिए फीस चार्ज की जाती है। यह फीस परफॉर्मेस बेस्ड या पर्सेंट बेस्ड हो सकती है, जो आमतौर पर 2% या उससे ज्यादा होती है।
रिस्क मैनेजमेंट: हेज फंड के एग्रेसिव नेचर होने के कारण इनमे काफी रिस्क शामिल होता है, और यहीं पर फंड मैनेजर को अपनी काबिलियत भी दिखानी होती है। उन्हे अच्छी रिटर्न जेनरेट करने के लिए कई सारी स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो रिटर्न को बढ़ावा देने के साथ ही रिस्क को भी कई गुना तक बढ़ा देता है।
लॉक इन पीरियड: हेज फंड इन्वेस्टमेंट पर लॉक इन पीरियड को लागू किया जाता है, जो 1 से 3 सालो तक का हो सकता है। इस लॉक इन पीरियड के दौरान इन्वेस्टर अपना पैसा निकलवा नहीं सकता। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि फंड मैनेजर के पास उपयुक्त समय के लिए कैपिटल उपलब्ध हो जिसका इस्तेमाल वह बिना किसी बंदिश के मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने के लिए कर सके।
हेज फंड कैसे काम करता है – Hedge Fund kaise kaam karta hai
हेज फंड में फंड मैनेजर का मुख्य उद्देश्य इन्वेस्टर को एक अच्छी रिटर्न कमाकर देना होता है, जो इंडेक्स और अन्य इन्वेस्टमेंट ऑप्शन की एवरेज रिटर्न को मात दे सके। इसके लिए वह मार्केट में रिसर्च करके उपयुक्त स्ट्रेटजी और पोर्टफोलियो का चुनाव करते है। इन सबमें निम्लिखित स्टेप्स शामिल होते है:
फंड इक्ट्ठा करना: सबसे पहले इच्छुक हाई नेट वर्थ इन्वेस्टर अपने पैसे के कंट्रीब्यूशन से एक कैपिटल पूल का निर्माण करते है। इसी कैपिटल पूल का इस्तेमाल फंड मैनेजर इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग के लिए करते है।
इन्वेस्टमेंट: इक्ट्ठा हुई पूल इन्वेस्टमेंट का इस्तेमाल फंड मैनेजर अलग अलग स्ट्रेटजी द्वारा स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट के लिए करते है। इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी में शॉर्ट सेलिंग, डेरिवेटिव, अंडरवेल्यू स्टॉक को खरीदना आदि शामिल हो सकता है।
रिस्क मैनेजमेंट और उद्देश्य पूर्ति: किसी भी तरह की इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी का इस्तेमाल करते समय फंड मैनेजर को रिस्क को अच्छी तरह से मैनेज करना पड़ता है ताकि विपरीत मार्केट कंडीशन में पोर्टफोलियो पर ज्यादा प्रभाव ना पड़े। इसके लिए वह डाइवर्सिफिकेशन का सहारा ले सकता है, जिसमे वह पोर्टफोलियो को अलग अलग एसेट क्लास में बांट सकता है या फिर डेरिवेटिव यानी की ऑप्शन और फ्यूचर की मदद भी ले सकता है।
हेज फंड के प्रकार – Types of Hedge fund in hindi
Global Macro Hedge Funds: जैसा की नाम से ही जाहिर यह फंड सिर्फ भारत तक ही सीमित ना होकर ग्लोबल ट्रेंड्स के अनुसार इन्वेस्टमेंट करते है। इस तरह के हेज फंड में मैनेजर, ग्लोबल इकॉनमिक गतिविधियों को देखते हुए उनसे फाइनेंशियल सेक्टर में होने वाले बदलाव को ध्यान में रखकर उपयुक्त स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करते है। यह सिर्फ इक्विटी तक ही सीमित ना होकर, बॉन्ड्स, कमोडिटी और करेंसी आदि में भी इन्वेस्ट करते है।
Activist Hedge Funds: एक्टिविस्ट हेज फंड अपनी यूनिक वर्किंग के लिए जाने जाते है। यह एक कम्पनी में इतने स्टेक के लिए इन्वेस्ट करते है, जहां पर यह कम्पनी की मैनेजमेंट और ऑपरेशन में हिस्सा ले पाए। इस तरह यह एक कम्पनी के मैनेजमेंट को यह सुझाव दे सकते है की किस कारण से कम्पनी के ग्रोथ पर प्रभाव पड़ रहा हैं या नहीं हो पा रही है। अगर इन्ही सुझाव के कारण लिए गए फैसलों से कंपनी की मैनेजमेंट में सुधार होता है, तो इससे होने वाली प्रॉफिटेबिलिटी उसके शेयर के बढ़ने का कारण बनती है। एक बड़ा शेयरहोल्डर होने के नाते, हेज फंड को भी मुनाफा होता है और अपने उद्देश्य के पूरे हो जाने पर वह अपने स्टेक को बेच का बाहर निकल सकते है।
Equity Hedge Funds: इक्विटी हेज फंड ग्लोबल और डोमेस्टिक स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करते है, जहां वह over valued स्टॉक को बेचकर under valued स्टॉक पर ध्यान देते है।
Relative Value Hedge Funds: रिलेटिव वैल्यू हेज फंड एक या एक से ज्यादा फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट के प्राइस के फर्क का फायदा उठाकर प्रॉफिट कमाने की कोशिश करते है। उदाहरण के लिए फंड मैनेजर एक कम्पनी के स्टॉक को लॉन्ग और दूसरे को शॉर्ट कर सकते है। इस तरह वह अपने रिस्क को कम करके किसी भी तरह की मार्केट कंडीशन में प्रॉफिट कमाने की कोशिश करते है।
हेज फंड में किसे इन्वेस्ट करना चाहिए – Hedge fund me kise invest karna chahiye
हेज फंड एक प्रोफेशनल मैनेज्ड फंड होते है, जो हाई रिटर्न ऑफर करते है। यह कुछ गिने चुने लोगो की रिस्क प्रोफाइल के अनुसार काम करते है। भारत में हेज फंड मुख्यता बड़े इन्वेस्टर द्वारा इस्तेमाल किए जाते है जिनकी नेट वर्थ कम से कम 1 करोड़ तक होती है। इन इन्वेस्टर्स की अपनी इन्वेस्टमेंट जरूरत होती है जिन्हे वह अपनी रिस्क प्रोफाइल के अनुसार मैनेज करवाना चाहते है।
हेज फंड में इन्वेस्ट करने वाली दूसरी मुख्य इन्वेस्टर क्लास इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर की है। इन इन्वेस्टर्स में इंश्योरेंस कम्पनी, बैंक, और पेंशन फंड आदि शामिल होते है, जिन्हे अपने पास पड़े लोगो के पैसे पर इंट्रेस्ट देना होता है।
इसके इलावा हेज फंड में फैमिली ऑफिस और सीज़नल इन्वेस्टर जिन्हे की मार्किट को अच्छी जानकारी हो और मार्केट से उतार चढ़ाव को अच्छे से समझते है, के लिए उपयुक्त ऑप्शन होते है।
हेज फंड के फायदे – Hedge fund ke fayde
ज्यादा रिटर्न: हालांकि हेज फंड इन्वेस्टमेंट भी लॉस और रिस्क से बचा नही है, लेकिन इसमें मिलने वाली रिटर्न इन्वेस्टमेंट के अन्य साधनों को तुलना में काफी अच्छी होती है। इसमें फंड मैनेजर द्वारा मार्केट कंडीशन के अनुसार अलग अलग स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करके ज्यादा से ज्यादा रिटर्न जेनरेट करने की कोशिश की जाती है।
प्रोफेशनल मैनेजमेंट: हेज फंड को प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा मैनेज किया जाता है। यह सेबी द्वारा रजिस्टर्ड अनुभवी लोग होते है जो अपनी प्रोफेशनल सर्विसेज के लिए कुछ फीस चार्ज करते है। इन्वेस्टमेंट के पैसे की मैनेजमेंट इन लोगो के हाथो मे होने के कारण उन्हें अपने पैसे की ज्यादा चिंता करने की जरूरत नही होती।
डाइवर्सिफिकेशन: हेज फंड मैनेजर किसी एक इन्वेस्टमेंट साधन में इन्वेस्टमेंट नहीं करते। पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई और रिस्क को कम करने करने के लिए इन्वेस्टमेंट को अलग अलग एसेट जैसे की बॉन्ड्स, स्टॉक, कमोडिटी और करेंसी आदि में विभाजित किया जाता है, जिस कारण अगर एक सेक्टर भी परफॉर्म नहीं करता तो कुल पोर्टफोलियो पर ज्यादा असर नही होता।
इन्वेस्टर सेंट्रिक: हेज फंड्स को कुछ हाई नेट वर्थ लोगो, इंस्टीट्यूशन इन्वेस्टर, बैंक और कमर्शियल फर्म के इंट्रेस्ट को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाता है। इन इन्वेस्टर्स की जरूरत और रिस्क लेने की क्षमता अनुसार ही मैनेजर इन फंड को ऑपरेट करते है।
हेज फंड के नुकसान – Hedge Fund ke nuksaan
हाई मिनिमम इन्वेस्टमेंट: भारत में हेज फंड में इन्वेस्टमेंट केवल हाई नेट वर्थ लोगो द्वारा की जाती है, जिनकी अपनी अलग से इन्वेस्टमेंट जरूरत होती है। इनमे इन्वेस्टमेंट करने के लिए मिनिमम राशि 1 करोड़ से शुरू होती है, इसलिए किसी आम इन्वेस्टर के लिए इन सर्विसेज का लाभ ले पाना मुमकिन नही है।
लिक्विडिटी की कमी: हेज फंड में 1 से 3 साल तक का लॉक इन पीरियड होता है। इस लॉक इन पीरियड के कारण हेज फंड में लिक्विडिटी की कमी होती है, यानी की किसी इमरजेंसी की स्तिथि में इन्वेस्टर अपने ही पैसों को निकाल नही पाते। हालाकि इन्वेस्टमेंट मैनेजर के नजरिए से यह जरूरी भी है, इसलिए हेज फंड में इन्वेस्टमेंट से पहले इसके इस पहलू को भी ध्यान में रखना बहुत जरूरी है।
कॉम्प्लेक्स स्ट्रेटजी: हेज फंड की इन्वेस्टमेंट के लिए मैनेजर कॉम्प्लेक्स स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करते है जिनमे हेजिंग, शॉर्ट सेलिंग, लीवरेज और डेरिवेटिव आदि प्रमुख है। हालांकि यह इन्वेस्टमेंट की रिटर्न को बढ़ाने में मदद करते है, लेकिन इसके रिस्क को भी काफी हद तक बढ़ा देते है।
चार्जेस: हेज फंड की मैनेजमेंट के बदले मैनेजर एक फिक्स्ड या प्रॉफिट पर्सेंट के रूप में चार्ज वसूल करते है।
हेज फंड पर टैक्सेशन – Hedge Fund par taxation
हेज फंड कैटेगरी III के AIF के दायरे में आते है, जिनमे फंड से होने वाले किसी भी तरह के मुनाफे पर टैक्स देना पड़ता है। हेज फंड पर टैक्सेशन नीचे दिए विवरण अनुसार लागू होती है:
5 करोड़ से कम के मुनाफे पर: 30%
5 करोड़ से ज्यादा के मुनाफे पर: 42.74%
डिविडेंड पर : 15%
यह भी जानिए : FMP full form in hindi – जानिए म्यूचुअल फंड में FD यानी FMP के बारे में
निष्कर्ष – Conclusion
हेज फंड कुछ गिने चुने इन्वेस्टर क्लास के लिए एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट ऑप्शन है। इन्हे उनकी अपनी पर्सनल इन्वेस्टमेंट जरूरत को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाता है, जिसमे कई सारी विशेषताएं जैसे की ज्यादा मिनिमम इन्वेस्टमेंट, डाइवर्सिफाई पोर्टफोलियो, रिस्क प्रोफाइल आदि शामिल होते है। यह उन लोगो के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हे अपनी इन्वेस्टमेंट जरूरत को पूरा करने के लिए ट्रेडिशनल मेथड से अलग ऑप्शन की जरूरत है।
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