Fundamental Analysis in Hindi – फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें? एक शुरुआती इन्वेस्टर के लिए आसान गाइड

शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने वाले लोगों के मन में सबसे पहला सवाल यही आता है कि कौन सा स्टॉक खरीदे, कितने प्राइस पर खरीदे और कब खरीदे। एक शॉर्ट टर्म इन्वेस्टर के लिए इन बातों का पता लगाने का एक आसान तरीका है, टेक्निकल एनालिसिस। लेकिन अगर आप एक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर है, और ज्यादा समय के लिए अच्छे स्टॉक में इन्वेस्टेड रहना चाहते है तो आप सिर्फ टेक्निकल एनालिसिस पर निर्भर नहीं रह सकते। इसके लिए आपको कंपनी के हर बात का बारीकी से अध्ययन करना पड़ता है, जिसमें फंडामेंटल एनालिसिस आपकी बहुत मदद करता है। इस आर्टिकल ‘Fundamental Analysis in Hindi’ में हम फंडामेंटल एनालिसिस के हर पहलू को आसान भाषा में समझेंगे, ताकि आप अपनी इन्वेस्टमेंट को बेहतर बना सकें।Fundamental analysis in hindi

फंडामेंटल एनालिसिस क्या है – Fundamental Analysis in Hindi

फंडामेंटल एनालिसिस एक ऐसा प्रोसेस है जिसमें किसी कंपनी की फाइनेंशियल और आर्थिक पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि किसी कंपनी के शेयर की असली कीमत जिसे टेक्निकल टर्म में Intrinsic Value कहते है, क्या है और  वह वर्तमान मार्केट प्राइस से कितनी ज्यादा या कम है।

फंडामेंटल एनालिसिस को करने के लिए मुख्यत दो तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है:

क्वांटिटेटिव फंडामेंटल एनालिसिस: इसमें कंपनी के फाइनेंशियल आंकड़े, जैसे कि बैलेंस शीट, इनकम स्टेटमेंट और कैश फ्लो स्टेटमेंट आदि को स्टडी किया जाता है।

क्वालिटेटिव फंडामेंटल एनालिसिस: इसमें कंपनी की मैनेजमेंट क्वालिटी, ब्रांड वैल्यू, मार्केट पोजीशन, कॉम्पटीशन और इंडस्ट्री ट्रेंड्स का अध्ययन किया जाता है।

फंडामेंटल एनालिसिस क्यों जरूरी है – Fundamental Analysis kyu jaruri hai

फंडामेंटल एनालिसी से हमें एक स्टॉक की स्टडी और सिलेक्शन करने में मदद मिलती है। यह हमें:

लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट में मदद: स्टॉक मार्केट में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करने के लिए हमें कंपनी के फाइनेंशियल का बारीकी से अध्ययन करना पड़ता है। इन सब का अध्ययन करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस हमारी बहुत मदद करता है।

स्टॉक की असल वैल्यू का पता: स्टॉक की असल वैल्यू यानी कि मार्केट वैल्यू के मुकाबले स्टॉक कितना ओवरवैल्यूड या अंडरवैल्यूड है। स्टॉक सिलेक्शन में हमेशा उन्हीं स्टॉक को प्राथमिकता दी जाती है, जो अंडरवैल्यूड होते है यानि जिनके फंडामेंटल अच्छे हो लेकिन किसी कारण अभी प्राइस ज्यादा न बढ़ा हो। ऐसे स्टॉक का चुनाव करके आप लॉन्ग टर्म में अच्छी रिटर्न का लाभ कमा सकते है।

स्टॉक और कंपनी की तुलना करना: फंडामेंटल एनालिसिस की मदद से हम उपलब्ध कई सारी कंपनियों की तुलना करके किसी एक का चुनाव कर सकते है।

रिस्क को कम करना: अगर आप सब कुछ जान कर और फंडामेंटल को समझ कर इन्वेस्टमेंट करते है तो यह आपके नुकसान के रिस्क को काफी हद्द तक कम कर देता है।

बेहतर इन्वेस्टमेंट निर्णय लेने में मदद: फंडामेंटल एनालिसिस की मदद से हमें निष्पक्ष इन्वेस्टमेंट निर्णय ले पाते है। यह हमें किसी भी कंपनी की तरफ झुकाव को कम करके उसके परफॉर्मेंस के आधार पर निर्णय लेने में मदद करता है।

फंडामेंटल एनालिसिस के मुख्य भाग – Fundamental Analysis ke mukhya bhaag

फंडामेंटल एनालिसिस करने के लिए इसके कुछ महत्वपूर्ण भागों को समझना जरूरी होता है। ये सब कंपनी की आर्थिक स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को समझने में मदद करते हैं। इनमें शामिल है:

फाइनेंशियल स्टेटमेंट

किसी भी कंपनी की फाइनेंशियल परफॉर्मेंस को उसकी इनकम स्टेटमेंट, कैश फ्लो स्टेटमेंट और बैलेंस शीट से समझा जा सकता है।

बैलेंस शीट: यह कंपनी की कुल एसेट, लायबिलिटी और शेयरहोल्डर्स की इक्विटी को दर्शाता है।

इनकम स्टेटमेंट: इसे Profit and Loss Statement भी कहा जाता है, जो कंपनी की आमदनी, खर्च और मुनाफे को दर्शाने का काम करता है।

कैश फ्लो स्टेटमेंट: जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह कंपनी में आने और जाने वाले पैसे यानि कि प्रोडक्ट बेचकर आए पैसे और प्रोडक्ट बनाने में हुए खर्चों का रिकॉर्ड रखता है।

फाइनेंशियल रेशों

फाइनेंशियल रेशों का इस्तेमाल कंपनी के स्टॉक की सही वैल्युएशन का पता करने के लिए किया जाता है। इनमें मुख्यत शामिल है:

Earnings Per Share: EPS बताता है कि कंपनी प्रति शेयर कितना मुनाफा कमा रही है।

P/E Ratio: P/E Ratio यानि कि Price to Earnings Ratio. यह किसी स्टॉक की मार्केट में चल रही कीमत और उसके प्रति शेयर मुनाफे की रेशों होती है।

Debt to Equity Ratio: यह कंपनी के कर्ज और उसकी इक्विटी का रेशों बताता है। यानि कि यह इस बात को जानने में मदद करता है कि कंपनी के कुल कैपिटल में कितना कर्ज ले रखा है, और उसकी अपनी इक्विटी कितनी शामिल है।

ROE: ROE या Return to Equity, यह बताता है कि किसी कंपनी के एक शेयर में की गई इन्वेस्टमेंट के बदले इन्वेस्टर्स को कितनी रिटर्न मिली है।

मार्केट कंपटीशन

एक कंपनी की ग्रोथ में उस कंपनी के सेक्टर में कंपटीशन का बहुत बड़ा रोल होता है। उसी सेक्टर में काम करने वाली जितनी ज्यादा कंपनिया होगी उतना ही ज्यादा कंपटीशन होगा और उस सेक्टर में अपनी पहचान बनाना और अच्छा प्रॉफिट कमाना उतना ही मुश्किल होगा। लेकिन अगर कोई कंपनी अपने सेक्टर में लीडर है, तो उसमें इन्वेस्टमेंट करना सुरक्षित हो सकता है।

बिजनेस का स्कोप

किसी कंपनी की परफॉर्मेंस सिर्फ उसके खुद के फैसलों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि उसकी इंडस्ट्री और पूरे बाजार की स्थिति पर भी निर्भर करता है। अगर किसी इंडस्ट्री में तेजी से ग्रोथ हो रही है, तो उस इंडस्ट्री की कंपनियों में इन्वेस्टमेंट करना फायदेमंद हो सकता है। किसी भी सेक्टर से जुड़े सरकारी नियम और नीतियाँ भी कंपनी की ग्रोथ को काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं।

कंपनी की मैनेजमेंट और ब्रांड वैल्यू

किसी कंपनी का भविष्य उसकी मैनेजमेंट और ब्रांड वैल्यू पर निर्भर करता है। एक अच्छी मैनेजमेंट अपनी टीम और कंपनी को सही दिशा में ले जाती है। अगर किसी कंपनी के CEO और अन्य लीडर्स अनुभवी और काबिल हैं, तो कंपनी के सफल होने की संभावना ज्यादा होती है।

ब्रांड वैल्यू भी एक बड़ा फैक्टर होता है। मजबूत ब्रांड वाली कंपनिया आमतौर पर ज्यादा ग्रोथ करती हैं। एक बड़ा ब्रांड जो लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो उसके प्रोडक्ट की मार्केट में ज्यादा डिमांड होती है।

फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें – Fundamental Analysis kaise karen

अब जब आप फंडामेंटल एनालिसिस के मुख्य भागो को समझ चुके हैं, तो चलिए देखते हैं कि इसे कैसे किया जाता है।

कंपनी को चुनें: सबसे पहले उन कंपनियों को शॉर्टलिस्ट करें जो आपको इन्वेस्टमेंट के लिए सही लगती हैं। इसके लिए आप ऐसे सेक्टर की कंपनिया चुन सकते है जिसके आगे ग्रोथ की काफी संभावना है जैसे कि अब के समय में AI और EV सेक्टर से जुड़ी कंपनिया मार्केट में ट्रेड में है और जिनमें आने वाले समय में अच्छे स्कोप की संभावना है।

फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स का अध्ययन करें: कंपनी को शॉर्टलिस्ट करने के बाद उनकी बैलेंस शीट, इनकम स्टेटमेंट और कैश फ्लो स्टेटमेंट को देखे और समझने की कोशिश करें। इन स्टेटमेंट को आप आसानी से SEBI और कंपनी की अपनी वेबसाइट पर आसानी से पा सकते है।

जरूरी फाइनेंशियल रेशों का अध्ययन करें: कंपनी की बैलेंस शीट देखने के साथ ही बाकी महत्वपूर्ण रेशों जैसे कि, P/E Ratio, EPS, ROE आदि को देखना न भूलें। इंटरनेट पर बहुत सारी ऐसे टूल्स और वेबसाइट उपलब्ध है, जिनके माध्यम से आप कंपनी बैलेंस शीट समेत सभी तरह की फाइनेंशियल रेशों का पता लगा सकते है। जैसे कि tickertape, screener, finology ticker आदि।

कंपनी की मैनेजमेंट और ब्रांड वैल्यू का अध्ययन करें: कंपनी की मैनेजमेंट उसके प्रमोटर्स, लीडरशिप टीम और ब्रांड की मार्केट में प्रेजेंस को देखें। यह सुनिश्चित करें कि कंपनी मार्केट के ट्रेड के साथ समय समय पर खुद को अपग्रेड कर रही है। मार्केट में लंबे समय तक टीके रहने के लिए चल रहे ट्रेड और कस्टमर की पसंद अनुसार खुद में बदलाव भी बहुत जरूरी है।

इंडस्ट्री और प्रतियोगिता का अध्ययन करें: इस बात को देखें कि कंपनी की इंडस्ट्री में ग्रोथ के क्या मौके हैं। एक समय के बाद हर प्रोडक्ट और सर्विस का दौर और चलन पुराना हो जाता है और उसके बाद नई टेक्नोलॉजी उसका स्थान ले लेती है। चल रहे दौर में जहां रोज नए नए ट्रेड और अवसर लोगो के जीवन में बदलाव ला रहे है, वहां एक कंपनी का अपने आप को लीडर बनाए रखना बहुत मुश्किल काम हो गया है।

न्यूज और रिजल्ट को फॉलो करें: मार्केट, सेक्टर और कंपनी से  कंपनी से जुड़े नए अपडेट्स और बिजनेस न्यूज पर नजर रखें। इस बात पर अहम ध्यान दे कि किसी भी गलत कारणों से आपके द्वारा चुनी गई कंपनी का नाम चर्चा में ना हो और कंपनी अपनी अच्छी छवि और वैल्यू के साथ निरंतर बेहतर प्रदर्शन जारी रखे।

फैसला लें और इन्वेस्ट करें: ऊपर बताई सभी बातों को एनालाइज करने के बाद अगर आपको लगता है कि कंपनी का स्टॉक अंडरवैल्यूड है और उसमें ग्रोथ की काफी संभावना है, तो उसमें इन्वेस्टमेंट करने के बारे में विचार कर सकते है।

यह भी जाने: IPO GMP Full Form in Hindi – IPO GMP क्या है और क्यों मायने रखता है? जानिए इसका सही उपयोग!

निष्कर्ष – Conclusion

फंडामेंटल एनालिसिस शेयर बाजार में सफल इन्वेस्टमेंट के लिए एक महत्वपूर्ण टूल है। यह आपको किसी भी कंपनी के असल प्राइस और उसकी ग्रोथ पोटेंशियल को समझने में मदद करता है। अगर आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट में एक बढ़िया रिटर्न कमाना चाहते हैं, तो इस प्रोसेस को सीखना और समझना आपके लिए बेहद जरूरी है।

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