Debt Mutual Funds Meaning in Hindi – जानिए क्या होते है डेट फंड्स और कैसे हैं बैंक FD से बेहतर

म्यूचुअल फंड्स की दुनिया में, लगभग सभी लोगों की जरूरत के मुताबिक, फंड्स की अलग-अलग किस्में मौजूद हैं। हर इन्वेस्टर अपने गोल और जरूरत के मुताबिक इनमें से किसी एक फंड का चुनाव कर सकता है। डेट फंड्स, म्यूचुअल फंड की एक अहम कैटेगरी है। ये उन लोगों की जरूरत के लिए फायदेमंद हैं जो अपने पैसे को सुरक्षित और स्थिर इन्वेस्टमेंट में लगाना चाहते हैं। आज अपने इस आर्टिकल ‘Debt Mutual Funds Meaning in Hindi’ के माध्यम से हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर डेट म्यूचुअल फंड होते क्या हैं, कैसे काम करते हैं, और किन लोगों के लिए ये सही होते हैं।

Image by snowing on Freepik

डेट म्यूचुअल फंड क्या है? – Debt Mutual Funds Meaning in Hindi

डेट, यानि की कर्ज। डेट म्यूचुअल फंड ऐसे फंड होते हैं जो इन्वेस्टर्स के पैसे को फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे कि गवर्नमेंट बॉन्ड्स, कॉरपोरेट बॉन्ड्स, ट्रेजरी बिल्स, और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स आदि में इन्वेस्ट करते हैं। इन्हें ‘डेट’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये फंड्स डेट इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते हैं, जिनका मतलब होता है किसी कंपनी या सरकार द्वारा आम लोगो से पैसे जुटाने के लिए बॉन्ड्स जैसे इंस्ट्रूमेंट में माध्यम से लोन लेना और जिस पर वह ब्याज देने का कॉन्ट्रैक्ट करती है। डेट म्यूचुअल फंड्स का मुख्य उद्देश्य कम रिस्क में रेगुलर इनकम को जेनरेट करना होता है। यानी की अगर आप बैंक FD का कोई विकल्प ढूंढ रहे है, तो आप इसमें इन्वेस्ट कर सकते है।

डेट म्यूचुअल फंड में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले कम रिस्क होता है, लेकिन इसकी रिटर्न भी उनके मुकाबले काफी कम होती है। यह उन लोगों के लिए अच्छा हैं जो कम रिस्क वाले साधन में इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं, जिन्हे अपने पैसे को शार्ट टर्म के लिए इन्वेस्ट करना है और कम रिटर्न से भी संतुष्ट है।

डेट म्यूचुअल फंड कैसे काम करते है – Debt Mutual Fund kaise kaam karte hai

डेट म्यूचुअल फंड्स इक्विटी म्यूचुअल फंड के मुकाबले कम रिस्की एसेट जैसे की गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, कॉरपोरेट बॉन्ड्स, ट्रेजरी बिल्स और दूसरे फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते है। ये इंस्ट्रूमेंट्स एक फिक्स्ड ब्याज दर पर रिटर्न देते हैं, जिससे इन्वेस्टर को रेगुलर इनकम मिलती है। जैसे इक्विटी म्यूचुअल फंड की परफॉर्मेंस स्टॉक मार्केट के ऊपर निर्भर करती है, वैसे ही डेट फंड्स की परफॉर्मेंस इंट्रेस्ट रेट, इकोनॉमी और बाजार की स्थिति पर निर्भर करती है। यह रिटर्न इक्विटी म्यूचुअल फंड जितनी तो नहीं होती, लेकिन बैंक FD से बेहतर हो सकती है, जिसे हम कभी भी निकलवा सकते है। ज्यादातर डेट फंड पर कोई भी एग्जिट लोड नहीं देना पड़ता जिस कारण यह अपने शार्ट टर्म फंड को इन्वेस्ट करने के लिए भी एक बेहतर ऑप्शन होते है।

डेट म्यूचुअल फंड के प्रकार – Types of Debt Mutual Fund in Hindi

डेट म्यूचुअल फंड कई प्रकार के होते हैं, जो अलग अलग इन्वेस्टर्स की जरूरतों और इन्वेस्टमेंट अवधि के हिसाब से डिजाइन किए गए हैं। इसके मुख्यता शामिल हैं:

लिक्विड फंड: लिक्विड फंड ऐसे डेट फंड्स होते हैं जो बहुत कम दिनों की मैच्योरिटी वाली सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करते हैं। इन सिक्योरिटीज का मैच्योरिटी पीरियड 91 दिन से कम होता है। ये फंड उन इन्वेस्टर्स के लिए सही होते हैं जो अपनी सेविंग, बैंक की जगह किसी और जगह रखना चाहते है, जहां उन्हें लिक्विडिटी और अच्छे रिटर्न दोनो का फायदा मिले।

अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड: अल्ट्रा-शॉर्ट टर्म फंड्स थोड़े लंबे मैच्योरिटी पीरियड के डेट इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते हैं, जो 3 महीने से लेकर 6 महीने तक हो सकती है। ये फंड लिक्विड फंड की तुलना में थोड़ा ज्यादा रिटर्न ऑफर करते हैं और अगर आप एक बार में बड़ी राशि इक्विटी फंड में इन्वेस्ट नही करना चाहते, तो उसे अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में में डाल कर STP के जरिए इक्विटी फंड में शिफ्ट कर सकते है। इससे आपको लंप्सम इन्वेस्टमेंट होने पर भी रूपी कॉस्ट एवरेजिंग का फायदा मिलता रहेगा।

लौ ड्यूरेशन फंड: लौ ड्यूरेशन फंड ऐसे लोगो के लिए सही है जिनका इन्वेस्टमेंट पीरियड 6 महीने से 1 साल तक का है। यह फंड कम क्रेडिट रेटिंग वाली सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट कर सकते है, ताकि ज्यादा इंट्रेस्ट पेमेंट का लाभ उठाया जा सके। 

शॉर्ट टर्म फंड: शॉर्ट टर्म फंड ऐसे फंड्स होते हैं जो 1-3 साल के मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स में इन्वेस्ट करते हैं। इनका उद्देश्य थोड़ा ज्यादा रिटर्न जेनरेट करना होता है, लेकिन ब्याज दरों में बदलाव हो जाने के केस में इसमें थोड़ा रिस्क भी होता है।

कॉरपोरेट बॉन्ड फंड: कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स मुख्य रूप से हाई क्रेडिट रेटेड डेट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते है। इनमे मुख्य रूप से कॉरपोरेट यानी की प्राइवेट कंपनियों के बॉन्ड शामिल होते है।

गिल्ट फंड: ऐसे डेट फंड जो सिर्फ सरकारी सिक्योरिटी में ही इन्वेस्ट करते है, उन्हें गिल्ट फंड कहा जाता है। इनमें रिस्क की संभावना बहुत कम होती है, क्योंकि सरकार की तरफ से डिफॉल्ट का केस ना के बराबर होता है।

क्रेडिट रिस्क फंड: जैसा की नाम से ही जाहिर है ऐसे फंड जिनकी क्रेडिट रेटिंग बाकि इंस्ट्रूमेंट की तुलना में थोड़ी कम होती है, उन्हें क्रेडिट रिस्क फंड कहा जाता है। इसी बात की भरपाई करने के लिए इनमे मिलने वाली रिटर्न भी बाकि फंड्स की तुलना में बेहतर होती है। 

मीडियम टर्म फंड: इस तरह के डेट फंड पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर दोनों तरह की कंपनियों के बॉन्ड में इन्वेस्टमेंट करते है। इनका इन्वेस्टमेंट पीरियड 3 से 7 साल तक का हो सकता है और इतने ही टर्म पीरियड की इन्वेस्टमेंट के लिए आप इन फंड्स का चुनाव कर सकते है। 

लॉन्ग ड्यूरेशन फंड: मीडियम ड्यूरेशन फंड की तरह लॉन्ग ड्यूरेशन फंड भी पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों के बांड में इन्वेस्ट करते है, लेकिन इनका इन्वेस्टमेंट पीरियड 7 साल से ज्यादा का हो सकता है। 

कॉरपोरेट बॉन्ड फंड: कॉरपोरेट बॉन्ड फंड ऐसे फंड होते है जो अपने पोर्टफोलियो का कम से कम 80% AA रेटेड डेट सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करते है। यह फंड कम रिस्क और अच्छी रिटर्न चाहने वाले लोगो के लिए बेहतरीन हो सकते है। 

बैंकिंग और PSU फंड: मध्यम रिस्क के साथ यह फंड बैलेंस्ड पोर्टफोलियो रिटर्न देने का काम करते है। इनकी कम से कम 80% इन्वेस्टमेंट ऐसी सिक्योरिटी में होती है, जो पब्लिक संस्थान या बैंको द्वारा जारी किए जाते है। 

गिल्ट फंड: गिल्ट फंड अलग अलग मैच्योरिटी  पीरियड वाली सरकारी सिक्योरिटी में इन्वेस्टमेंट करते है। 

डायनेमिक बांड फंड: डायनेमिक यानि की मार्किट की स्तिथि के अनुसार इन्वेस्ट करने की क्षमता। इस तरह के डेट फंड में इन्वेस्टमेंट करने के लिए किसी भी तरह की डेट सिक्योरिटी या मैच्युरिटी पीरियड की कोई बंदिश नहीं होती। यह मार्किट स्तिथि की अनुरूप अच्छी रिटर्न जेनरेट करने के लिए सभी तरह की सिक्योरिटी में इन्वेस्टमेंट कर सकते है। 

फ्लोटर फंड: फ्लोटर फंड ऐसी डेट सिक्योरिटी में इन्वेस्टमेंट करते है जिनके कूपन रेट periodically रिसेट होते रहते है। इनका कूपन रेट मौजूदा मार्केट की में चल रहे इंट्रेस्ट रेट के अनुरूप रीसेट किया जाता है।

फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान: FMP यानि की फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान। यह क्लोज एंडेड डेट फंड होते है, जो ऐसी फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करते है, जो कम रिस्की होती है। FMP में सिर्फ नए फंड ऑफर के दौरान ही इन्वेस्टमेंट की जा सकती है, जिनकी मैच्योरिटी होने पर इन्वेस्टर को पैसे रिटर्न समेत वापिस कर दिए जाते हैं। 

डेट म्यूचुअल फंड में किसे इन्वेस्ट करना चाहिए – Debt Mutual Fund me kise invest karna chahiye

अगर आप अपने कैपिटल को सुरक्षित रखते हुए उससे एक रेगुलर इनकम चाहते है, तो डेट म्यूचुअल फंड्स आपके लिए सही चॉइस हो सकते हैं। भारत में अभी भी बहुत सारे ऐसे लोग है, जो अपनी इन्वेस्टमेंट पर ना के बराबर रिस्क चाहते है, चाहे उसपर रिटर्न कितनी भी कम क्यों ना हो। ऐसे लोगो के लिए भी डेट फंड का चुनाव कर सकते है क्युकी इक्विटी की तुलना में इनमे रिस्क काफी हद तक कम होता है। शार्ट टर्म इन्वेस्टर्स जिन्हे अपने पैसे को शार्ट टर्म के लिए इन्वेस्ट करना है, और उससे अच्छी रिटर्न भी चाहिए, वह भी अपनी इन्वेस्टमेंट के लिए डेट फंड को ध्यान में रख सकते है।

इसके इलावा डेट फंड्स डाइवर्सिफिकेशन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अगर आप अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई करना चाहते हैं, तो अन्य फंड के साथ ही डेट फंड्स एक अच्छा ऑप्शन हो सकते है। कुल मिलाकर कहें तो अगर आप अपने पैसों को शार्ट से मीडियम टर्म के लिए इन्वेस्ट करना चाहते है, और ज्यादा रिस्क भी नहीं लेना चाहते है डेट फंड आपके लिए एक उपयुक्त साधन हो सकते है। 

डेट म्यूचुअल फंड में कैसे इन्वेस्ट करें – Debt Mutual Fund me kaise invest karen

किसी भी म्यूचुअल फंड के समान डेट म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करना बहुत आसान है। लेकिन इसमें इन्वेस्टमेंट करने से पहले आपको इस बात का पता होना चाहिए, की हम किस कारण इसमें इन्वेस्टमेंट करना चाहते है और हमारी रिटर्न और रिस्क की क्या संभावनाएं है। डेट फंड कई प्रकार के होते है, और हमारी जरूरत अनुसार हम उनमें से शॉर्ट टर्म, लिक्विड, लॉन्ग टर्म आदि फंड का चुनाव कर सकते है। अगर हमारे मन से यह सब क्लीयर है तो हम नीचे दिए गए तरीको और स्टेप्स को फॉलो करके इनमे इन्वेस्टमेंट कर सकते है:

सबसे पहले एक इन्वेस्टमेंट प्लेटफार्म का चुनाव करें, जिसके जरिए आप म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट कर सकें। इसके लिए आप सीधे म्यूचुअल फंड AMC की वेबसाइट पर लॉगिन या उनके ऑफिस में जा सकते है। दूसरा आप किसी म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर की मदद ले सकते है, जो आपको उपयुक्त फंड का चुनाव करने और इन्वेस्टमेंट के पूरे प्रोसेस को पूरा करने में मदद करेगा। तीसरा आप ऑनलाइन म्यूचुअल फंड ब्रोकर के माध्यम से भी आसानी से कुछ ही मिनटों में डेट फंड में इन्वेस्ट कर सकते है। इन ब्रोकर में Groww, ETmoney, Zerodhacoin आदि शामिल हो सकते है।

किसी भी तरह की फाइनेंशियल सिक्योरिटी में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आपकी KYC पूरी होनी चाहिए। अगर आप पहले से ही म्यूचुअल फंड या स्टॉक मार्केट में इन्वेस्टमेंट कर रहे है, तो आपकी  KYC बनी हो सकती है, अगर नहीं, तो आप किसी भी ऊपर बताए माध्यम से अपनी KYC बनवा सकते है।

डेट फंड में इन्वेस्टमेंट करते समय आपको यह भी निश्चित करना होगा की यह इन्वेस्टमेंट आप लंप्सम करना चाहते है, या SIP के रूप में। अलग अलग लोगो की इसके लिए अलग अलग प्राथमिकता हो सकती है।

अंतिम स्टेप में आपको ऑफलाइन या ऑनलाइन एप्लीकेशन फॉर्म भरना पड़ता है, जिसमे आपके सभी डेटा को AMC को दिया जाता है। इसी एप्लीकेशन फॉर्म के साथ आप पेमेंट का चेक/ऑनलाइन पेमेंट और SIP के लिए OTM को भी सबमिट करवाते है। इन सब स्टेप के पूरे हो जाने की बाद आपकी एप्लीकेशन सफलतापूर्वक सबमिट कर ली जाती है, और कुछ ही समय में म्यूचुअल फंड के यूनिट आपको अलॉट कर दिए जाते है।

डेट म्यूचुअल फंड के फायदे – Debt Mutual Fund ke fayde

लो रिस्क: डेट म्यूचुअल फंड्स इक्विटी फंड्स के मुकाबले कम रिस्की होते हैं। ये उन इन्वेस्टर्स के लिए उपयुक्त हैं जो अपने कैपिटल को सुरक्षित रखना चाहते हैं और स्थिर रिटर्न्स पाना चाहते हैं।

रेगुलर इनकम: डेट फंड्स का मुख्य फोकस रेगुलर इनकम को जेनरेट करना होता है, जो इन इंस्ट्रूमेंट से ली जाती है। इनकी रिटर्न आमतौर फिक्स्ड होती है, जो ब्याज के रूप में मिलती है।

लिक्विडिटी: डेट म्यूचुअल फंड्स में लिक्विडिटी काफी अच्छी होती है। आप अपने फंड्स को कभी भी बिना किसी बड़ी पेनल्टी के निकलवा सकते हैं।

डाइवर्सिफिकेशन: ये फंड्स आपको अपने पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन देने में मदद करते हैं। इक्विटी के साथ-साथ डेट इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करके आप अपने सारे पोर्टफोलियो का रिस्क कम और रिटर्न को बैलेंस कर सकते है।

लो कॉस्ट इन्वेस्टमेंट: सभी म्यूचुअल फंड की तरह डेट म्यूचुअल फंड की मैनेजमेंट के लिए भी फंड हाउस कुछ एक्सपेंस रेश्यो चार्ज करता है, जो किसी भी केस में 2% से ज्यादा नहीं हो सकती। यह एक्सपेंस रेश्यो इन्वेस्टमेंट के अन्य साधन की तुलना में काफी कम है। दूसरा ज्यादातर डेट म्यूचुअल फंड को आप कभी भी बिना किसी एग्जिट लोड के निकलवा सकते हो, यानी की इनपर कोई भी एक्सपेंस रेश्यो नही चार्ज को जाती। इस तरह के चार्ज ना होने के कारण भी इन्वेस्टर अपनी पूरी रिटर्न का लाभ उठा पाते है।

डेट म्यूचुअल फंड के नुकसान – Debt Mutual Fund ke nuksaan

इंटरेस्ट रेट रिस्क: डेट फंड द्वारा इन्वेस्ट किए जाने वाले बॉन्ड के रेट इकोनॉमी में चल रहे इंटरेस्ट रेट के अनुसार घटते और बढ़ते रहते है। यही बात डेट फंड की इन्वेस्टमेंट रिटर्न को प्रभावित करती है, अगर  सिक्योरिटीज की वैल्यू बदलती है, जो फंड की NAV पर असर पड़ता है।

क्रेडिट रिस्क: अगर आपका फंड ऐसे बॉन्ड्स में इन्वेस्ट करता है जिनकी क्रेडिट रेटिंग कम है, तो उसमें कम्पनी के डिफॉल्ट करने का रिस्क बना रहता है। 

इन्फ्लेशन रिस्क: अगर इन्फ्लेशन रेट फंड के रिटर्न्स से ज्यादा होता है, तो रियल रिटर्न्स नेगेटिव हो सकते हैं। इस केस में आपके द्वारा की जाने वाली इन्वेस्टमेंट की रिटर्न आपके इन्वेस्टमेंट गोल को पूरा करने में असमर्थ रह जाती है।

डेट फंड vs बैंक FD – Debt Fund vs Bank FD

डेट फंड  बैंक FD
डेट म्यूचुअल फंड की रिटर्न इनके द्वारा इन्वेस्ट की जा रही सिक्योरिटी की परफॉर्मेंस पर निर्भर करती है, जो फिक्स्ड नहीं होती।  बैंक FD में फिक्स्ड रिटर्न की गारेंटी दी जाती है। 
डेट म्यूचुअल फंड में FD के मुकाबले ज्यादा रिस्क शामिल होता है, जो इक्विटी की तुलना में कम होता है।   बैंक FD में रिटर्न फिक्स्ड होती है, इसलिए रिस्क की संभावना बहुत कम हो जाती है। 
इतिहासिक तौर पर डेट म्यूचुअल फंड की रिटर्न बैंक FD से बेहतर रहती है।  आमतौर पर बैंक FD की रिटर्न, बैंक के अनुसार अलग अलग हो सकती है, जिसकी आमतौर पर दर 5 से 7% के बीच में रह सकती है।
डेट म्यूचुअल फंड की रिटर्न पर मार्केट कंडीशन का प्रभाव पड़ता है।  बैंक FD की रिटर्न पर मार्केट कंडीशन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
डेट म्यूचुअल फंड पर इन्वेस्टर के इनकम स्लैब अनुसार टैक्स लागु होता है।  बैंक FD पर इन्वेस्टर की इनकम स्लैब अनुसार टैक्स लागु होता है। 

डेट म्यूचुअल फंड पर टैक्सेशन – Debt Mutual Fund par taxation

2024 के बजट के बाद इक्विटी म्यूचुअल फंड की तुलना में डेट म्यूचुअल फंड की टैक्सेशन में कोई खासा बदलाव नहीं किया गया है। पुराने टैक्सेशन के तरीके में 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड को शार्ट टर्म कैपिटल गेन और 36 महीने से ज्यादा के होल्डिंग पीरियड को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की कैटेगरी में रखा जाता था। लेकिन नए टैक्सेशन रूल के मुताबिक डेट म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट में शार्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, किसी भी तरह का कोई होल्डिंग पीरियड लागु नहीं होगा। डेट म्यूचुअल फंड पर होने वाले सभी तरह के प्रॉफिट को आपकी इनकम स्लैब के अनुसार टैक्सेबल माना जायेगा।

यह भी जाने: Gold ETF meaning in Hindi – गोल्ड ETF क्या है और इसमें क्यों करें इन्वेस्टमेंट

निष्कर्ष – Conclusion 

डेट म्यूचुअल फंड आपको कम रिस्क में एक बैलेंसेड इन्वेस्टमेंट साधन की सुविधा देता है। इक्विटी फंड की मुकाबले जहां पर ज्यादातर इन्वेस्टमेंट लॉन्ग टर्म होराइजन को ध्यान में रखकर की जाती है, डेट फंड बहुत कम टाइम पीरियड से लेकर बहुत ज्यादा टाइम पीरियड के लिए सभी तरह के प्लान उपलब्ध करवाते है। यह उन लोगो के बहुत उपयोगी है जो FD के जितनी या उससे बेहतर रिटर्न तो पाना चाहते है, लेकिन किसी भी तरह का लॉक इन पीरियड नही चाहते। अपने गोल और रिस्क प्रोफाइल को ध्यान में रखकर आप एक उपयुक्त डेट फंड का चुनाव कर सकते है, और डाइवर्सिफिकेशन के लिहाज से भी यह एक अच्छी चॉइस हो सकते है।

Liked our Content? Spread a word!

Leave a Comment