Short Selling Meaning in Hindi – जानिए शेयर मार्केट में शॉर्ट सेलिंग क्या है और कैसे काम करता है

शेयर मार्केट से पैसे कमाने के कई तरीके है, जिनमें मुख्य है इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग। ट्रेडिंग की बात करें तो एक पापुलर तरीका जो हमे देखने के मिलता है, वह है शॉर्ट सेलिंग। शॉर्ट सेलिंग ट्रेडिंग के सबसे महत्वपूर्ण तरीको में से एक है। शॉर्ट सेलिंग का मुख्य उद्देश्य एक शेयर के गिरते हुए प्राइस से प्रॉफिट कमाना होता है। आज के आर्टिकल ‘Short Selling meaning in Hindi’ में, हम शॉर्ट सेलिंग के हर पहलू को समझने की कोशिश करेंगे, जैसे कि इसका मतलब, इसे कैसे किया जाता है, इसके फायदे और इसमें कौन कौन से रिस्क शामिल होते है।

Short selling meaning in hindi

शॉर्ट सेलिंग क्या है – Short Selling Meaning in Hindi

शॉर्ट सेलिंग ट्रेडिंग में ट्रेडर एक ऐसे शेयर को बेचते है, जो उनके पास नहीं होता। यह प्रोसेस इस उम्मीद में किया जाता है कि भविष्य में उस शेयर का प्राइस नीचे गिरेगा, और उसे सस्ते भाव पर वापिस खरीद लिया जाएगा। ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग में हम आमतौर पर शेयर को सस्ते भाव में खरीदते और महंगे भाव पर बेचते है, और दोनों के प्राइस का फर्क हमारा प्रॉफिट होता है। शॉर्ट सेलिंग हम तब करते है, जब मार्केट डाउन ट्रेंड में हो और शेयर के प्राइस बढ़ने से बजाए गिरने लगे जिससे हमे ज्यादा ट्रेडिंग अवसर नहीं मिल पाते।

चलिए इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझते है। मान लीजिए अभी एक शेयर का प्राइस 100 रुपए चल रहा है, और आने वाले समय में उसके प्राइस के घटने की संभावना ज्यादा है। इस केस में शॉर्ट सेलिंग की मदद से हम प्रॉफिट कमा सकते है। इसके तहत बताए गए शेयर के कुछ यूनिट हम चल रहे प्राइस पर बेच देते यानी सेल कर देते है। अगर आने वाले समय में शेयर का प्राइस 100 से नीचे या मान लीजिए 95 तक जाता है, तो हम बेची गई संख्या 95 रुपए में खरीद लेते है। इस तरह प्राइस का फर्क 5 रुपए * शेयर की संख्या हमारा प्रॉफिट होता है।

शॉर्ट सेलिंग कैसे काम करता है – Short Selling kaise kaam karta hai

शॉर्ट सेलिंग में मुख्यता निम्लिखित चरण शामिल होते है:

शेयर्स का चुनाव: शॉर्ट सेलिंग का सबसे पहला स्टेप है ऐसे शेयर का चुनाव करना जिनकी आने वाले समय में गिरने की संभावना है। ऐसे शेयर को आप टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर शॉर्टलिस्ट कर सकते हो। इसके इलावा कंपनी या सेक्टर के जुड़ी कुछ ऐसी खबर जो उस शेयर के प्राइस के गिरने का कारण बने, उसके आधार पर भी शेयर का चुनाव किया जा सकता है।

शेयर उधर लेना: शेयर का चुनाव करने के बाद आपको उस शेयर की कुछ संख्या बेचनी पड़ती है। अब सवाल यह उठता है कि शेयर तो आपके पास मौजूद ही नहीं है, फिर आप उसको कैसे बेचेंगे। इसके लिए हमे हमारे स्टॉक ब्रोकर से मदद मिलती है। यानी कि हम शेयर को अपने ब्रोकर से उधार लेकर बेचते है, और बाद में उसी  उधार को चुकाने के लिए उसे वापिस खरीद लेते है। इस सारे प्रोसेस में हमारे पास फिजिकल शेयर की कोई भी संख्या असल में क्रेडिट नहीं की जाती।

शेयर शॉर्ट सेल करना: शेयर का चुनाव, होने के बाद हम इसे तय किए गए प्राइस पर शॉर्ट सेल यानी बेच देते है। यहां इस बात का ध्यान रखे कि भारत में हम शेयर को सिर्फ ऑप्शन और फ्यूचर के द्वारा ही शॉर्ट सेल कर सकते है। कैश मार्केट में शेयर को सेल करना भारतीय शेयर मार्केट में मुमकिन नहीं है।

शेयर वापिस खरीदना: इसके बाद मार्केट के सेंटीमेंट के अनुसार शेयर का प्राइस बढ़ता या घटता है। अगर शेयर का प्राइस घटता है तो आपको फायदा होता है और आप सेट किए टारगेट प्राइस पर उसे खरीद सकते है। वहीं अगर शेयर का प्राइस बढ़ता है तो आप अपने सेट किए स्टॉप लॉस प्राइस पर उसे खरीद कर अपने लॉस और रिस्क को कंट्रोल में रख सकते है।

शॉर्ट सेलिंग स्ट्रेटजी – Short Selling Strategy 

शॉर्ट सेलिंग में नीचे दिए गए तरीकों की मदद से शेयर्स का चुनाव किया जा सकता है:

टेक्निकल एनालिसिस: टेक्निकल एनालिसिस यानी कि शेयर के कैंडलेस्टिक चार्ट पर प्राइस, वॉल्यूम और ट्रेंड को देखकर शेयर्स को खरीदना या बेचना। ज्यादातर ट्रेडर टेक्निकल एनालिसिस को आधार बना कर ही किसी भी ट्रेड में कदम रखते है। ऐसे में वह प्राइस ब्रेकआउट, सपोर्ट का टूटना, किसी महत्वपूर्ण प्राइस लेवल को तोड़ना और वॉल्यूम आदि के आधार पर ट्रेड लेने का प्राइस और स्टॉपलॉस निर्धारित कर सकते है।

मार्केट सेंटीमेंट: किसी भी ट्रेड में कदम रखने से पहले मार्केट के सेंटीमेंट को ध्यान में रखना जरूरी है। अगर आप मार्केट सेंटीमेंट के खिलाफ ट्रेड लेते है तो लॉस होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए जब मार्केट का सेंटीमेंट नेगेटिव हो या डाउनट्रेंड में हो तभी किसी शेयर को शॉर्ट करने के बारे में सोचे।

मार्केट न्यूज और इवेंट्स: शेयर मार्केट से जुड़ी न्यूज और इवेंट पर ध्यान रखे। नेगेटिव न्यूज और किसी कंपनी से जुड़ा नेगेटिव इवेंट आपको उसके शेयर को शॉर्ट करने का अवसर दे सकता है।

फंडामेंटल एनालिसिस: आप किसी कंपनी का फंडामेंटल अनालिसिस करके भी शेयर का चुनाव कर सकते है। जैसे कि अगर एक कंपनी की बैलेंस शीट कमजोर है, उसपर ज्यादा कर्जा है, रिजल्ट अच्छे नहीं आ रहे और उसकी मार्केट छवि का अच्छा ना होना भी भविष्य में उसके शेयर का प्राइस गिरने का कारण बन सकता है।

शॉर्ट सेलिंग के फायदे – Short Selling ke fayde

गिरते बाजार में फायदा: शेयर मार्केट हमेशा एक ही दिशा में नहीं चलती। यह uptrend या downtrend में चल सकती है, या फिर sideways भी हो सकती है। Uptrend में तो ट्रेड लेने के हमारे पास बहुत से मौके होते है लेकिन गिरते हुए बाजार में हमे ट्रेड लेने के ज्यादा मौके नहीं मिलते। ऐसे में शॉर्ट सेलिंग की मदद से हम downtrend में भी प्रॉफिट कमा सकते है।

हेजिंग में मददगार: अगर इन्वेस्टर के डीमैट अकाउंट में कुछ ऐसे शेयर पड़े है जिनके भविष्य में गिरने की संभावना है तो हम उस शेयर को शॉर्ट सेल कर सकते है। इस तरह अगर शेयर का प्राइस गिरता भी है तो एक तरफ का घाटा दूसरी तरफ के प्रॉफिट से बैलेंस हो जाता है।

लिक्विडिटी: शॉर्ट सेलिंग में ज्यादातर बड़े ट्रेडर्स का पैसा लगता है क्योंकि इसे करने के लिए मार्जिन भी ज्यादा लगता है। इसके कारण स्टॉक और शेयर मार्केट की गतिविधियों में तेजी आती है जो अच्छी लिक्विडिटी का कारण बनती है। इससे सभी ट्रेडर और इन्वेस्टर आसानी से ट्रेड को एग्जीक्यूट कर पाते है।

शॉर्ट सेलिंग के नुकसान – Short Selling ke nuksaan

अनलिमिटेड लॉस की संभावना: शॉर्ट सेलिंग में हमे अनलिमिटेड लॉस की संभावना होती है। जब शेयर का दाम घटता है तो वह ज्यादा से ज्यादा 0 हो सकता है, लेकिन बढ़ने के केस में उसकी कोई लिमिट नहीं होती। इस कारण रेगुलर ट्रेडिंग के मुकाबले शॉर्ट सेलिंग में नुकसान भी ज्यादा होता है।

मार्जिन कॉल का रिस्क: अगर ट्रेडर की एनालिसिस गलत साबित होती है तो ट्रेड उसके विपरीत जा सकता है। लॉस होने के केस में अगर ट्रेडिंग अकाउंट में कम मार्जिन हो तो ब्रोकर आपको मार्जिन कॉल के द्वारा ट्रेडिंग अकाउंट में और पैसे जमा करवाने को कह सकता है।

वोलैटिलिटी का रिस्क: मार्केट में ज्यादा वोलैटिलिटी होने के कारण शेयर मार्केट रेगुलेटर शॉर्ट सेलिंग पर रोक लगा सकता है। ज्यादा वोलैटिलिटी होने के कारण लोग फ़ोमो में आकर शेयर को खरीदने या पैनिक में आकर बेचने लगते है, जो ट्रेडर के ज्यादा नुकसान का कारण बनता है।

ज्यादा चार्जेस: क्योंकि शॉर्ट सेलिंग उधार लिए शेयर के आधार पर की जाती है इसलिए इनमें इंटरेस्ट, चार्जेस और पेनल्टी भी ज्यादा मात्रा में लगती है, जो ट्रेडर्स के हुए वाले मुनाफे को कम कर सकता है।

ट्रेड को दिए समय को बंद करने की बंदिश: जैसा कि पहले ही बताया गया है, भारत में शॉर्ट सेलिंग सिर्फ ऑप्शन और फ्यूचर के रूप में ही की जा सकती है। सभी ऑप्शन और फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की एक फिक्स्ड एक्सपायरी तारीख होती है, जिससे पहले या किस तारीख पर उस कॉन्ट्रैक्ट के ट्रेड को बंद करना ही पड़ता है। इसलिए अगर ट्रेड आपके डायरेक्शन में जा भी रहा है, तब भी आपको अपने ट्रेड को क्लॉज करना पड़ता है।

यह भी जानिए: MTF Meaning in Hindi – शेयर मार्केट में MTF क्या होता है, क्यों और कैसे इस्तेमाल करें

निष्कर्ष – Conclusion 

शॉर्ट सेलिंग शेयर मार्केट में प्रॉफिट कमाने का एक अनूठा तरीका है, लेकिन यह काफी ज्यादा रिस्क से भरा हुआ भी है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तभी करें जब आपके पास शेयर मार्केट से जुड़ी पूरी जानकारी और अनुभव हो। सही स्ट्रेटजी, डिसिप्लिन और रिसर्च के साथ, शॉर्ट सेलिंग से आप बाजार में मुनाफा कमा सकते हैं। शेयर मार्केट में इन्वेस्ट या ट्रेडिंग करने से पहले, हमेशा अपने फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह जरूर लें और अपनी रिस्क लेने की क्षमता को भी समझें।

Liked our Content? Spread a word!

Leave a Comment