SME IPO in Hindi – जानिए SME IPO क्या है, और आम IPO से कैसे अलग है

SME यानी की छोटी और मीडियम साइज की कंपनियां। बड़ी कंपनियों की तरह ही यह कंपनिया भी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ और उसकी तरक्की में एक अहम भूमिका निभाती है। हर छोटे सेक्टर से लेकर बड़े सेक्टर के काम काज और सर्विसेज के लिए हमे इनपर रहना पड़ सकता है, और यही वह कंपनिया है जो बाद में बड़ी कंपनियों में तब्दील होती है। हर कंपनी की तरह इन्हे भी समय समय पर अपने विस्तार और मैनेजमेंट के लिए फंड्स की जरूरत पड़ती है, और SME IPO, इस फंड को जुटाने में एक अहम किरदार निभाता है। क्या है SME IPO? और आम IPO से कैसे है अलग, जानते है यही आज के आर्टिकल ‘SME IPO in Hindi’ में।

SME IPO in Hindi
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SME IPO क्या है? – SME IPO in Hindi

SME IPO का फुल फॉर्म है: Small and Medium Enterprises Initial Public Offering

SME IPO उस प्रोसेस को कहते है, जब छोटी और मध्यम उद्योग (SME) कंपनियां अपने शेयर्स पहली बार पब्लिक को बेचने के लिए स्टॉक मार्केट में लिस्ट करती है। SME कंपनियां अक्सर कैपिटल की कमी के कारण अपने बिजनेस को आगे बढ़ा नही पाती। IPO के माध्यम से, ये कंपनियां अपने बिज़नेस को बढ़ाने, नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने, और अपने ऑपरेशनल खर्चों को मैनेज करने के लिए पैसे जुटाती हैं। IPO से इक्ट्ठी की गई कैपिटल उन्हें स्थाई ग्रोथ और मार्केट में कॉम्पिटेटिव बनने में मदद करती है।

SME कंपनियों की बात करें तो वह कंपनिया, जिनका सालाना टर्नओवर 50 करोड़ या उससे ज्यादा का नही होता, वह स्मॉल एंटरप्राइज और 250 करोड़ से कम के टर्न ओवर वाली कंपनियों को मीडियम एंटरप्राइज की कैटेगरी में रखा जाता है। SME के लिए IPO प्लेटफार्म पहली बार 2012 में सेबी ने लागू किया जा था जहां पहली बार इनकी लिस्टिंग के लिए अलग से BSE और NSE के प्लेटफार्म बनाए गए थे, और इनके लिस्टिंग नियमों में भी काफी ढील दी गई थी।

SME IPO का महत्व – SME IPO ka mahatav

आम IPO की तरह ही SME IPO का अपना महत्व है। यह छोटे और मीडियम साइज के उद्योग को अपने बिजनेस को बढ़ाने और कर्ज के बोझ को कम करने के लिए जरूरी कैपिटल का निर्माण करता है। कंपनी का विस्तार होने से देश की इकोनॉमी में भी सुधार होता है। इससे लोगों को रोजगार मिलता है और बाहरी देशों में प्रोडक्ट की सप्लाई की निर्भरता को कम करने में भी मदद मिलती है। इसी तरह अगर कोई कंपनी SME IPO द्वारा लिस्ट होती है तो लोगो का उसपर भरोसा बढ़ता है, और उन्हें भी इन्वेस्टमेंट पर अच्छी रिटर्न पाने के लिए एक बढ़िया साधन मिलता है।

SME IPO में भाग लेने वाली पार्टियों में आम लोगो के इलावा बड़े इंस्टीट्यूशन और DII आदि भी शामिल होते है। इनसे कंपनी को एक बड़ी मात्रा में फंडिंग मिलती है, और मार्केट में उसकी विजिबिलिटी भी बढ़ती है।

SME IPO का प्रोसेस – SME IPO ka process

SME कंपनियों को अक्सर कैपिटल की कमी से जूझना पड़ता हैं। IPO के माध्यम से ये कंपनियां अपने बिज़नेस को बढ़ाने, नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने, और अपने ऑपरेशनल खर्चों को मैनेज करने के लिए पैसों का प्रबंध कर सकती हैं। IPO से जुटाई गई कैपिटल उन्हें ग्रोथ में मदद और मार्केट में बने रहने में मदद करती है। SME IPO का लिस्टिंग प्रोसेस कुछ हद तक एक रेगुलर IPO जैसा ही होता है। लेकिन कुछ जरुरते और रूल ऐसे है, जो SME IPO के लिए अलग होते हैं। चलिए देखते हैं SME IPO का शुरू से लेकर अंत तक का सारा प्रोसेस।

एलीजिबिलिटी चेक: SME को अपनी लिस्टिंग के लिए सबसे पहले एलीजिबिलिटी क्राइटेरिया को पूरा करना होता है। यह क्राइटेरिया SEBI (Securities and Exchange Board of India) और स्टॉक एक्सचेंजेस द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। BSE और NSE दोनो प्लेटफार्म के लिए इन रूल्स में कुछ फर्क होते है। यहां पर लिस्टिंग के लिए कुछ मुख्य नियमों को बताया गया है।

  • SME के पास एक प्रॉफिटेबल बिज़नेस मॉडल होना चाहिए।
  • SME को कंपनीज ACT 1956 के तहत रजिस्टर्ड होना चाहिए।
  • अगर SME को किसी प्रोपराइटर फर्म, पार्टनरशिप या LLP से तब्दील करके बनाया गया है तो इसका कम से कम 3 साल का ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिए।
  • SME की नेट tangible एसेट वैल्यू 1.5 करोड़ तक होनी चाहिए।
  • SME की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए।
  • SME की फेस वैल्यू (पोस्ट इश्यू paid up कैपिटल) 25 करोड़ तक होनी चाहिए।
  • कंपनी की बीते 3 सालो में से 2 साल का ऑपरेटिंग नेट प्रॉफिट होना चाहिए।
  • SME की IPO लिस्टिंग के एक साल के अंदर किसी भी प्रमोटर में  बदलाव नहीं होना चाहिए।

अंडरराइटर अपॉइंट करना: अगर कंपनी ऊपर बताए सभी जरूरतों को पूरा करती है तो वह IPO के प्रोसेस को मैनेज करने के लिए अंडरराइटर्स को अप्वाइंट करती है। अंडरराइटर के इलावा इसमें लीड मैनेजर, रजिस्ट्रार, ऑडिटर और लीगल एडवाइजर शामिल होते है। इनका काम सभी IPO से संभत्तित डॉक्यूमेंट्स को त्यार और ड्राफ्ट करना होता है।

प्रोस्पेक्टस ड्राफ्ट और फाइल करना: अंडरराइटर द्वारा त्यार किए गए ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस में कंपनी का फाइनेंशियल स्टेटस, बिज़नेस मॉडल, रिस्क फैक्टर्स, और IPO के डिटेल्स होते हैं। इस ड्राफ्ट को DRHP यानी Draft Red Herring Prospect कहा जाता है। ड्राफ्टेड प्रोस्पेक्टस को SEBI और स्टॉक एक्सचेंज में अप्रूवल के लिए फाइल किया जाता है।

रोडशो और मार्केटिंग: कंपनी अपने IPO को प्रमोट करने के लिए रोडशो और मार्केटिंग कैंपेन का आयोजन करती है। यह इन्वेस्टर्स को IPO के बारे में जानकारी देने और कंपनी की खूबियों के बारे में बताने का काम करता है।

प्राइसिंग और अलॉटमेंट: निश्चित तारीख को IPO को सब्सक्रिप्शन के लिए खोला जाता है, जिसके दौरान लोग IPO के शेयर को खरीदने के लिए अप्लाई कर सकते है। इस सारे प्रोसेस के बाद IPO की फाइनल  प्राइस निर्धारित होती है और इन्वेस्टर को शेयर्स अलॉट किए जाते हैं। SME’s अक्सर फिक्स्ड प्राइस IPO का उपयोग करते हैं।

स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग: IPO के प्रोसेस के पूरे हो जाने के बाद, कंपनी के शेयर्स स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाते हैं, जहां से इन्वेस्टर सेकेंडरी मार्केट में शेयर्स को खरीद और बेच सकते हैं। विभिन्न SME IPO की जानकारी के लिए आप अपने ब्रोकर और ऑनलाइन माध्यमों जैसे Investorgain आदि की मदद ले सकते है।

SME IPO के फायदे – SME IPO ke fayde

कैपिटल का निर्माण: IPO के माध्यम से SME कंपनिया अच्छी अमाउंट में कैपिटल जुटा कर सकती हैं, जो उनके बिज़नेस को आगे बढ़ाने और चल रहे कर्जों का भुगतान करने में मदद करती है।

मार्केट विजिबिलिटी: पब्लिक लिस्टिंग से कंपनी को मार्केट में विजिबिलिटी मिलती है। इससे लोगो और इन्वेस्टर्स में कंपनी की एक अच्छी छवि बनती है और उनका कंपनी पर भरोसा बढ़ता है।

शेयर्स के लिए लिक्विडिटी: SME IPO से फाउंडर्स और पहले से मौजूद इन्वेस्टर्स के लिए लिक्विडिटी का निर्माण होता है। इसकी मदद से वह अपनी कंपनी में चल रही इन्वेस्टमेंट को मार्केट में नए इन्वेस्टर्स को बेच पाते है। यह उनको अपनी इन्वेस्टमेंट में मुनाफा कमाने और पोर्टफोलियो को diversify करने में मदद करता है। 

एम्प्लॉई मोटिवेशन: एक कंपनी जब पब्लिकली लिस्टेड बनती है तो उसके कर्मचारियों में उसकी एक अच्छी छवि बनती है। इसके इलावा कंपनी के कर्मचारी एम्प्लॉई स्टॉक ऑप्शंस (ESOP’s) का चुनाव कर सकते है, जिसमे उन्हें कंपनी के स्टॉक्स यानी की कम्पनी में हिस्सेदारी प्रदान की जाती है।

SME IPO में रिस्क – SME IPO main risk

रेगुलेटरी कंप्लायंस: अपने IPO को लिस्ट करवाने के लिए SME को SEBI और स्टॉक एक्सचेंजेस के रेगुलेटरी कंप्लायंस को पूरा करना पड़ता है। वह कंपनिया जो इन रूल्स पर खरी नहीं उतरती उन्हें IPO के जरिए पैसे जुटाने में इंतजार करना पड़ सकता है ।

मार्केट कंडीशन: एक IPO की सफलता बहुत हद तक मार्केट की कंडीशन और ट्रेंड पर निर्भर करती है। अगर मार्केट अपट्रेंड में है तो काफी हद तक संभावना हो सकती है की मार्किट में IPO को अच्छा रेस्पॉन्स मिले, और वह अच्छी मात्रा में फंड जुटा पाए। दूसरी तरफ अगर कंडीशन अच्छी नहीं हैं तो IPO के जरिए पर्याप्त फंड्स जुटाना मुश्किल हो सकता है।

IPO प्रोसेस के खर्चे: IPO का प्रोसेस काफी खर्चीला होता है। डॉक्यूमेंटेशन, मार्केटिंग, और इंटरमीडियरीज़ की फीस इसके शामिल खर्चे को काफी हद तक बढ़ा देती है।

ऑपरेशनल रिस्क: एक बार पब्लिक कंपनी बनने के बाद, ऑपरेशनल रिस्क और जिम्मेवारियां बढ़ जाती है, क्योंकि ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी ज्यादा हो जाने के कारण कम्पनी द्वारा अपने हर एक्शन का ब्योरा SEBI और इन्वेस्टर्स को देना पड़ता है।

SME IPO लिस्टिंग प्लेटफॉर्म्स – SME IPO ke liye listing platforms 

भारत में मुख्यता दो स्टॉक एक्सचेंज हैं जो SMEs के लिए IPO लिस्टिंग प्लेटफॉर्म्स का काम करते है।

BSE SME प्लेटफॉर्म: BSE (Bombay Stock Exchange) का SME प्लेटफॉर्म छोटी और मध्यम कंपनियों के लिए एक्सचेंज का काम करता है जहां कंपनिया अपने शेयर्स लिस्ट कर सकती हैं।

NSE Emerge: NSE (National Stock Exchange) का NSE Emerge प्लेटफॉर्म भी SMEs के लिए मुख्य है और उन्हें IPO के जरिए कैपिटल जुटाने करने में मदद करता है।

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IPO और SME IPO के बीच फर्क – IPO aur SME IPO ke bich fark

IPO  SME IPO
IPO में बड़ी या ज्यादा नेटवर्थ वाली कंपनिया शामिल होती है। SME IPO में कम नेटवर्थ वाली छोटी और मीडियम साइज कंपनिया शामिल होती है।
IPO की लिस्टिंग में सख्त रेगुलेटरी जरूरतों का पालन किया जाता है। SME IPO की जरुरते इनकी लिस्टिंग के अनुरूप होती है।
IPO में एप्लीकेशन की अमाउंट साइज काफी ज्यादा हो सकतीं है। SME IPO में एप्लीकेशन की अमाउंट IPO के मुकाबले कम होती है।
IPO में कम से कम 1000 लोगो को शेयर की अलॉटमेंट होनी चाहिए। SME IPO में कम से कम 50 लोगो को शेयर की अलॉटमेंट होनी चाहिए।
IPO में एप्लीकेशन साइज 10 से 15 हजार के बीच में होता है। SME IPO में एप्लीकेशन साइज 1 लाख रूपए का होता है।

निष्कर्ष – Conclusion 

SME IPO एक छोटी और मध्यम वर्गीय कंपनी को अपने बिज़नेस का विस्तार करने, नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने, और फाइनेंशियल स्टेबिलिटी पाने करने में मदद करता है। लेकिन, इस प्रक्रिया में रेगुलेटरी कंप्लायंस, मार्केट कंडीशन, और खर्चों को ध्यान में रखना जरूरी है। एक सफल IPO के लिए प्लानिंग, एक्ज़ीक्यूशन, और सही एडवाइज़र्स की मदद लेना जरूरी होता है। भारत में BSE SME और NSE Emerge प्लेटफॉर्म्स SMEs को एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं, जहां से वह अपने ग्रोथ को और ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। SMEs को चाहिए कि वे IPO के जरिए जुटाई गई कैपिटल का सही उपयोग करें और अपने बिज़नेस को लॉन्ग-टर्म स्थाई ग्रोथ की तरफ ले जाएं। IPO के रिस्क और चुनौतियों को सही तरीके से मैनेज करके, SMEs एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकते है।

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