इन्वेस्टमेंट जगत में डाइवर्सिफिकेशन एक ऐसा बेसिक प्रिंसिपल है जिसे हर इन्वेस्टर को समझना और अपनी इन्वेस्टमेंट में लागू करना चाहिए। इन्वेस्टिंग से जुड़ी एक बात को अक्सर कहा जाता है, ‘Don’t put all your eggs in one basket’ यानी की कभी भी अपनी सारी इन्वेस्टमेंट किसी एक एसेट क्लास में नहीं करनी चाहिए। ऐसा क्यों है और क्यों जरूरी हैं इसी को हम हमारे आज के आर्टिकल ’diversification meaning in hindi’ में समझने की कोशिश करेंगे।
डाइवर्सिफिकेशन क्या है – Diversification meaning in hindi
डाइवर्सिफिकेशन उस स्ट्रेटजी को कहा जाता है जिसके तहत हम अपने पैसे को एक ही जगह पर इन्वेस्ट ना करते हुए अलग अलग एसेट क्लास और सेक्टर में इन्वेस्ट करते है। इस प्रैक्टिस में इस बात का ध्यान रखा जाता है की रिस्क कम से कम रहे और रिटर्न को बढ़ाया जा सके। जब हम अपनी इन्वेस्टमेंट को सिर्फ एक एसेट में करते है तो उसका अच्छा परफॉर्म ना करना हमारी सारी इन्वेस्टमेंट के नुकसान का कारण बनता है लेकिन अगर हम अपने पोर्टफोलियो या सेविंग को अलग अलग इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करेंगे तो किसी एक के परफॉर्म ना भी करने पर हमारे पोर्टफोलियो पर ज्यादा असर नही पढ़ेगा। यहां पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है की डाइवर्सिफिकेशन हमारे इन्वेस्टमेंट में शामिल रिस्क को पूरी तरह खत्म कर देता है लेकिन यह इन्वेस्टमेंट के रिस्क को कम करके रिटर्न को बैलेंस रखने का काम जरूर करता है।
उदाहरण के लिए अगर आपने अपना पैसा सिर्फ इक्विटी म्यूचुअल फंड या स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट किया हुआ हैं तो मार्केट में किसी भी तरह की गिरावट के कारण आपके पोर्टफोलियो में नुकसान की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसी रिस्क को कम करने के लिए आप अपने पैसे को इक्विटी, डेब्ट, फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट जैसे की FD, सोने और रियल एस्टेट आदि में बांट सकते है। आप अपनी आय, उम्र और रिस्क लेने की क्षमता अनुसार हरेक एसेट में एलोकेट की जा सकने वाली अमाउंट का चुनाव कर सकते है। जैसे की अगर आप अच्छा कमा रहे है और आपकी उम्र अभी कम है तो आप ज्यादा रिस्क ले सकते है। इसलिए आप अपने फंड के 70% इक्विटी और 30% डेट में इन्वेस्ट कर सकते है।
डाइवर्सिफिकेशन क्यों जरूरी है – Diversification kyu jaruri hai
रिस्क कम करने के लिए: डाइवर्सिफिकेशन में आपका इन्वेस्टमेंट का रिस्क अलग अलग एसेट क्लास में बंट जाता है। अगर कोई एक इन्वेस्ट की गई एसेट अच्छा परफॉर्म नहीं भी करती तब भी आपको ज्यादा नुकसान होने की संभावना बहुत कम होती है।
अच्छी रिटर्न पाने के लिए: डाइवर्सिफिकेशन के अंतर्गत अलग अलग सेक्टर में एक्सपोजर होने के कारण आपका पोर्टफोलियो लॉन्ग टर्म में एक अच्छी और स्टेबल रिटर्न दे पाने में सक्षम हो पाता है।
अच्छे अवसर का लाभ उठाने के लिए: अगर हम इन्वेस्टमेंट में डाइवर्सिफिकेशन का सहारा लेते है तो हमारे पास इन्वेस्ट करने के लिए कई सारे साधन खुल जाते है। अलग अलग एसेट क्लास जैसे की स्टॉक, बॉन्ड, सोने, रियल एस्टेट आदि में इकोनॉमिक साइकिल के अनुसार उतार चढ़ाव आते रहते है। इन्ही उतार चढ़ाव से मिलने वाले अवसर का लाभ हम डाइवर्सिफिकेशन के तहत उठा सकते है।
मार्केट वोलेटिलिटी से बचने के लिए: सभी एसेट क्लास अलग अलग मार्केट कंडीशन में अलग तरह से परफॉर्म करती है। उदाहरण के लिए इकोनॉमी में स्टेबिलिटी ना होने के कारण बॉन्ड अच्छा परफॉर्म कर सकते है लेकिन वहीं दूसरी तरफ हमें स्टॉक मार्केट में वोलेटिलिटी का सामना करना पड़ सकता है। इस सब के प्रभाव से हमारे पोर्टफोलियो को सुरक्षित करने में डाइवर्सिफिकेशन एक अहम किरदार निभाता है।
डाइवर्सिफिकेशन स्ट्रेटजी – Diversification strategy
रिस्क लेने की क्षमता: अपने इन्वेस्टमेंट रिस्क को कम करना या एक लिमिट के रखना डाइवर्सिफिकेशन करने के पीछे का मूल कारण है। हर किसी के रिस्क लेने की क्षमता एक सी नही होती। पुराने या उम्रदराज लोग आमतौर पर कम रिस्क वाली एसेट क्लास में इन्वेस्ट करते है क्युकी बढ़ती उम्र के साथ पैसे के एक रेगुलर सोर्स की जरूरत होती है जो मार्केट में चल रही उतार चढ़ाव से कम प्रभावित हो, वहीं वह लोग जिनकी उम्र अभी कम है या वह किसी निश्चित उद्देश्य के लिए इन्वेस्टमेंट कर रहे है वह ज्यादा रिस्क और रिटर्न देने वाली एसेट को चुन सकते है।
इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य: हर किसी के इन्वेस्टमेंट करने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य होता है। यह उद्देश्य लॉन्ग टर्म या शॉर्ट दोनो हो सकते है जैसे की घर की खरीद, बच्चो की पढ़ाई और शादी, रिटायरमेंट प्लानिंग आदि। इन्ही उद्देश्य को ध्यान में रखकर हम एसेट क्लास का चुनाव करते है। जैसे की अगर आपने 10 साल बाद घर खरीदने का उद्देश्य रखा है तो आप ऐसी एसेट में ज्यादा एलोकेशन दे सकते है जिसकी रिटर्न इनफ्लेशन दर से ज्यादा हो।
एसेट एलोकेशन: एक बार आपने अपने रिस्क प्रोफाइल को समझ लिया तो आगे सिर्फ हमे सिर्फ उस इन्वेस्टमेंट साधन का चुनाव करना है जो उसके अनुकूल है। उदाहरण के लिए अगर आपकी प्रोफाइल के हिसाब से कम रिस्क लेना आपके लिए अनुकूल है तो आप ऐसे साधनों का चुनाव कर सकते है जिनमे कम रिस्क शामिल है यानि की फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट। इन इंस्ट्रूमेंट में डेब्ट फण्ड, बांड्स, डिबेंचर्स और प्रॉपर्टी आदि शामिल हो सकते है।
पोर्टफोलियो निर्माण: जब आप अपने चुने गए इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करना शुरू कर देते है तो इससे आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो का निर्माण होता है। यह एक वन टाइम प्रोसेस नहीं है, आपके पास जैसे जैसे फंड उपलब्ध होते जायेंगे आप उसी हिसाब से अलग अलग समय पर इन्वेस्टमेंट कर सकते है।
रिबैलेसिंग: इन्वेस्टमेंट हो जाने के बाद अपने पोर्टफोलियो को समय समय रिबेलेंस करते रहे तांकि जरुरी एसेट एलोकेशन बना रह सके। बाजार में परिस्थिति हमेशा एक सी नहीं रहती और यह इकोनॉमिक फैक्टर और कंपनियों के परफॉर्मेस के अनुसार बदलती रहती है, इस कारण कुछ एसेट दुसरो से अच्छा परफॉर्म कर सकती है। रिबेलेसिंग में हम इन्ही बातो का ध्यान रखते है और पोर्टफोलियो की एलोकेशन उन एसेट की और बढ़ा देते है जिनसे अच्छी रिटर्न की ज्यादा सम्भावना है और परफॉर्म ना करने वाली एसेट से कम कर सकते है।
डाइवर्सिफिवेशन में ध्यान रखने योग्य बातें – Diversification me dhyan rakhane yogya baaten
Over Diversification: अपनी सारी सेविंग को एक ही एसेट क्लास या स्टॉक में इन्वेस्ट कर देना किसी विपरीत मार्केट कंडीशन में हमारे पोर्टफोलियो की परफॉर्मेस को काफी हद्द तक प्रभावित कर सकता है इसी तरह हद्द से ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन भी हमारे पोर्टफोलियो के लिए अच्छा नहीं है। अगर हम बिना सोचे समझे काफी सारी एसेट में इन्वेस्ट कर देंगे तो एक समय बाद सबकी परफॉर्मेंस का ट्रैक रखना और उन्हे मैनेज करना बहुत मुश्किल हो जायेगा। इसी कारण डाइवर्सिफिकेशन को कुछ ही सेक्टर्स जिन्हे आप समझते है और जिनके परफॉर्म करने की अच्छी संभावना है उन्ही तक सीमित रखे,
रिबेलेसिंग की कमी: अपने पोर्टफोलियो की नियमित तौर पर देख रेख ना करना और विपरीत परिस्तिथि में भी उसी एसेट क्लास में इन्वेस्ट रहना पोर्टफोलियो का रिस्क और बढ़ाने का काम करता है। इसलिए जरुरी यही है की चल रही मार्केट कंडीशन अनुसार समय समय पर पोर्टफोलियो में करते फेरबदल करते रहे।
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निष्कर्ष – Conclusion
एक अच्छी इन्वेस्टमेंट रणनीति और पोर्टफोलियो निर्माण में डाइवर्सिफिकेशन का एक अहम् किरदार है। इस से हम रिस्क को कम करने, अच्छी रिटर्न और विभिन्न मार्केट अवसरों जैसे कई सारे फायदे मिलते है। अपनी सेविंग को अलग अलग एसेट क्लास में इन्वेस्ट करके हम अपने पोर्टफोलियो की परफॉर्मेस को लॉन्ग टर्म में बढ़िया बना सकते है। हालांकि डायवर्सिफिकेशन हमे नुकसान से बचाने और प्रॉफिट की कोई गारेंटी नहीं देता लेकिन फिर भी फाइनेंशियल मार्केट में अपने गोल को प्राप्त करने के लिए यह बहुत जरुरी है।