जब कभी भी हम इक्विटी या स्टॉक में इन्वेस्ट करने के बारे में सोचते है तो सबसे पहला ख्याल मन में स्टॉक एक्सचेंज या म्यूचुअल फंड का आता है। लगभग सभी बड़ी और रेपुटेड कंपनिया मुख्यतौर पर स्टॉक एक्सचेंज जैसे की NSE और BSE में लिस्ट और ट्रेड होती है। लेकिन उनके इलावा भी कुछ ऐसी कंपनियां है जिनमे क्षमता और स्कोप तो बहुत है लेकिन कई कारणों से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट नही हो पाती। तो यहां सवाल यह उठता है की क्या ऐसा भी कोई प्लेटफॉर्म है जिसके जरिए हम इन कंपनियों में इन्वेस्ट कर पाए? इस सवाल का जवाब है, हां और उसी प्लेटफार्म को हम OTC के नाम से जानते है। चलिए हमारे आर्टिकल ’OTC full form in hindi’ के जरिए हम OTC मार्केट के पूरे कांसेप्ट को समझने की कोशिश करते है।
OTC मार्केट क्या है – OTC full form in Hindi
OTC का मतलब होता है: Over the counter
भारत में OTC (Over-the-Counter) एक ऐसा बाजार है जहां सिक्योरिटीज़ जैसे कि स्टॉक्स, बॉन्ड्स, डेरिवेटिव आदि सीधे दो पार्टियों के बीच बिना किसी फॉर्मल स्टॉक एक्सचेंज के खरीदी और बेची जाती हैं। यहां पर ट्रांजैक्शन सीधे बिना किसी मिडलमैन के होती है। इस मार्केट के ज्यादातर अनलिस्टेड सिक्योरिटी यानी की वह सिक्योरिटी जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड नही होती उनकी ट्रेडिंग ब्रोकर और डीलर के नेटवर्क द्वारा की जाती है। स्टॉक मार्केट के विपरीत यह एक decentralized मार्केट होती है और इस मार्केट में होने वाली सभी ट्रांजेक्शन को भी रेगुलेटरी बॉडीज़ द्वारा सुपरवाइज किया जाता है। हालांकि इसमें रेगुलेशन ट्रेडिशनल स्टॉक एक्सचेंज की तुलना में कम होती है।
OTC मार्केट कैसे काम करती है – OTC market kaise kaam karti hai
OTC मार्केट का काम करने का तरीका भी एक आम स्टॉक एक्सचेंज की तरह ही है। इसमें फर्क सिर्फ इतना ही है की यहां हम सिक्योरिटी को स्टॉक एक्सचेंज से ना खरीदकर सीधे कम्पनी से खरीदते है। स्टॉक मार्केट की तरह ही यहां पर भी हम कोई भी डीलिंग डायरेक्टली नही कर सकते। इसके लिए हम ब्रोकर और डीलर की जरूरत होती है और उन्ही के जरिए सभी तरह की ट्रांजेक्शन को पूरा किया जाता है। OTC प्राइवेट कंपनी के शेयर समेत बॉन्ड और डिबेंचर आदि के लिए सेकेंडरी मार्केट का काम करती है। OTC मार्केट में ट्रांजेक्शन को चलाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले लोग है:
ब्रोकर: ब्रोकर यानी की वह लोग जो बायर और सेलर के बीच मिडिलमैन का काम करते है। इसके बदले वह कुछ फीस या ब्रोकरेज चार्ज करते है।
मार्केट मेकर: मार्केट मेकर यानी की वह लोग जो यह सुनिश्चित करते है की OTC मार्केट में ट्रेड होने वाली सभी सिक्योरिटी सही प्राइस और सही क्वांटिटी में सबको उपलब्ध हो।
कस्टोडियन: कस्टोडियन का काम एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़ा होता है जो मुख्यता सिक्योरिटी की क्लियरेंस और डॉक्यूमेंटेशन का ध्यान रखते है।
ट्रांसफर एजेंट: यह OTC मार्केट में हो रही सभी ट्रांजेक्शन की ट्रांसफर और अलॉटमेंट का ध्यान रखते है।
OTC मार्केट के प्रकार – Types of OTC market
OTC मार्केट में ट्रेड होने वाली सिक्योरिटी को उनकी फाइनेंशियल स्तिथि के अनुसार तीन भागो में बांटा गया है। यह तीन भाग है:
The Best Market: इसमें वह कंपनियां शामिल होती है जिनकी फाइनेंशियल स्तिथि काफी अच्छी है और जो मार्केट में अच्छी रेपुटेशन रखती है। यह सिर्फ रेगुलेटरी कारणों से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट नही हो पाती लेकिन अगर इनमे इन्वेस्टमेंट की जाए तो इनसे अच्छी रिटर्न मिलने की काफी संभावना होती है।
The Venture Market: Venture Market में ऐसी कंपनिया जो नई है और अभी डेवलपमेंट स्टेज में है, शामिल होती है। स्टॉक एक्सचेंज की तुलना में OTC मार्केट में लिस्ट होने के लिए काफी कम रिस्ट्रिक्शन और रूल होते है इसलिए यह कंपनिया यहां पर ट्रेड हो पाती है।
The Pink Market: Pink Market OTC मार्केट का सबसे रिस्की भाग है। इस भाग में वह कंपनिया ट्रेड होती है जिनके फाइनेंशियल रिकॉर्ड काफी बुरे है या फिर पैनी स्टॉक या बहुत छोटी कंपनिया। इनमे फ्रॉड और रिस्क की संभावना काफी ज्यादा रहती है।
OTC मार्केट में कैसे इन्वेस्ट करे – OTC market me kaise invest karen
OTC मार्केट को हम स्टॉक एक्सचेंज की तरह OTC एक्सचेंज भी कह सकते है। स्टॉक एक्सचेंज की तरह ही आप OTC मार्केट में डायरेक्टली इन्वेस्ट नही कर सकते। इसके लिए आपको ब्रोकर और डीलर्स की मदद लेनी पड़ती है। यह ब्रोकर और डीलर किसी सिक्योरिटी को खरीदने के लिए अपनी प्राइस या bid को डालते है। OTC मार्केट में काम करने वाले ब्रोकर्स को हम दो भागो में विभाजित कर सकते है:
Full Service Brokers: यह ब्रोकर आपको OTC एक्सचेंज में किसी सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करने में मदद करते है। इसके इलावा यह आपके पोर्टफोलियो को मैनेज करने, आपको फाइनेंशियल एडवाइज देने और पोर्टफोलियो को रिबैलेंस करने का भी काम करते है। इसके बदले यह आपसे कुछ फीस चार्ज कर सकते है या फिर ब्रोकरेज के रूप में अपना कमीशन कमा सकते है।
Discount Brokers: डिस्काउंट ब्रोकर आपको किसी भी तरह की इन्वेस्टिंग एडवाइज देने या पोर्टफोलियो मैनेज करने का काम नही करते। इनका मुख्य उद्देश्य आपको एक प्लेटफॉर्म देना है जहां पर आप सिक्योरिटीज में ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग कर पाएं। यहां इस बात का ध्यान जरूर रखे की सभी डिस्काउंट ब्रोकर इस सुविधा को नही देते इसलिए अगर आप OTC मार्केट की सिक्योरिटी में डिस्काउंट ब्रोकर द्वारा इन्वेस्ट करने की सोच रहे है तो सबसे पहले उसके द्वारा ऑफर की जा रही सभी सर्विसेज के बारे में जांच कर ले।
स्टॉक एक्सचेंज और OTC मार्केट में फर्क – Stock Exchange vs OTC market
स्टॉक एक्सचेंज | OTC मार्केट |
यह एक सेंट्रलाइज्ड मार्केट होती है जहां पर एक्सचेंज में लिस्टेड सिक्योरिटी में इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग की जाती है। | यहां पर डायरेक्टली दो पार्टियां बायर और सेलर ब्रोकर के माध्यम से ट्रेडिंग करते है। |
यह SEBI द्वारा सख्ती से रेगुलेट की जाती है। | इनमे स्टॉक एक्सचेंज के मुकाबले रेगुलेशन कम होती है। |
हम सिर्फ उन्ही सिक्योरिटी में ट्रेड कर सकते है जो एक्सचेंज में लिस्टेड होती है। | यहां पर सिक्योरिटी को लिस्ट होने की जरूरत नही होती। |
यहां पर लिक्विडिटी काफी ज्यादा होती है यानी की हम कभी भी बिना किसी परेशानी के किसी भी स्टॉक को बेच या खरीद सकते है। | स्टॉक एक्सचेंज की तुलना में OTC मार्केट में लिक्विडिटी की कमी होती है। |
OTC मार्केट का महत्व – OTC market ka mahatav
- OTC मार्केट कई तरह से भारतीय और ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में एक अहम किरदार निभाती है। यह शेयर समेत कई और सिक्योरिटियो जैसे की बॉन्ड, डिबेंचर, डेरिवेटिव और कमोडिटी के लिए सेकेंडरी मार्केट का काम करती है।
- हमे एक इन्वेस्टर के तौर पर उन कंपनियों में भी इन्वेस्ट करने का मौका मिलता है जिनमे अच्छा पोटेंशियल तो है लेकिन वह पब्लिकली ट्रेड नही हो रही। इनमे इन्वेस्ट और ट्रेड करके हम अपने प्रॉफिट और रिटर्न को कई गुना तक बढ़ा सकते है।
- OTC मार्केट में लिस्ट होने वाली सिक्योरिटी का प्राइस स्टॉक एक्सचेंज के स्टॉक से ज्यादातर कम होता है। वह इन्वेस्टर जिनके पास लिमिटेड कैपिटल है वह OTC मार्केट के द्वारा अपने पैसे को अच्छी अनलिस्टेड कंपनियों में इन्वेस्ट कर सकते है।
- OTC मार्केट के लिस्टेड सिक्योरिटी के डाइवर्स होने के कारण हमे भी अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने और उससे एक अच्छी रिटर्न जेनरेट करने का अवसर मिलता है।
OTC मार्केट के रिस्क – OTC market ke risk
- OTC मार्केट में स्टॉक एक्सचेंज की तुलना में कम लिक्विडिटी होती है। कम लिक्विडिटी होने के कारण इसमें ट्रेड होने वाली सिक्योरिटी काफी वोलेटाइल हो सकती है जो इन्वेस्टर के लिए ज्यादा रिस्क और नुकसान कारण बन सकता है।
- OTC मार्केट में रेगुलेशन की कमी होने के कारण इसमें रिस्क और फ्रॉड होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
- OTC मार्केट में ट्रेड और एक्सचेंज होने वाली कम्पनियों के फाइनेंशियल रिकॉर्ड में पारदर्शिता की कमी होती है। स्टॉक एक्सचेंज के विपरीत जहां SEBI की गाइडलाइन अनुसार एक कम्पनी को अपने मैनेजमेंट से जुड़े सभी निर्णय और रिकॉर्ड आम लोगो के सामने रखने जरूरी है, OTC मार्केट की कंपनिया इन सब चीजों के लिए बाध्य नहीं होती इसलिए इन्वेस्टर को इन्हे एनालाइज करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
OTC मार्केट भारतीय और ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में एक अहम किरदार निभाती है। अनलिस्टेड स्टॉक समेत कई सारी सिक्योरिटीज में इसके द्वारा इन्वेस्ट किया जा सकता है। हालांकि यह मार्केट भी रेगुलेटेड होती है लेकिन फिर भी कई हद तक इसमें स्टॉक मार्केट से ज्यादा रिस्क शामिल होता है। एक इन्वेस्टर के तौर पर हमे इस मार्केट में ट्रेड हो रही किसी भी सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर या खुद ही सही से जांच जरूर कर लेनी चाहिए।