आप में से जो भी लोग शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड में निवेश करते है उन्हे ब्रोकरेज स्लीप में चार्जेस वाले सेक्शन में अलग अलग तरह के टैक्स देखने को मिलते होंगे। इन टैक्स में STT भी शामिल होता है जो की आपकी ट्रांजेक्शन कॉस्ट को कई हद तक बढ़ाने में एक बड़ा योगदान करता है। यह टैक्स उन सिक्योरिटीज की ट्रांजेक्शन पर लगाया जाता हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होती है। अगर आप भी स्टॉक मार्केट से जुड़ीं किसी तरह की एसेट में इन्वेस्ट करते है तो STT के बारे में जानना आपके लिए भी जरूरी है। आज के आर्टिकल “STT kya hota hai” में हम इसी टैक्स के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
STT क्या होता है – STT meaning in Hindi
STT का मतलब होता है: सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (Security Transaction Tax)
STT एक डायरेक्ट टैक्स हैं जो भारत सरकार द्वारा उस सिक्योरिटी की ट्रांजेक्शन पर लगाया जाता है जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है। इन सिक्योरिटी में इक्विटी, डेरिवेटिव, इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड और IPO आदि शामिल हो सकते है।
STT को पहली बार 2004 के फाइनेंशियल एक्ट के तहत लागू किया गया था ताकि फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन में होने वाली टैक्स की चोरी को रोका जा सके और सिस्टम को ट्रांसपेरेंट बनाया जा सके। STT से पहले लोगो द्वारा इक्विटी सेलिंग से हुए कैपिटल गेन या प्रॉफिट को डिक्लेयर ना करने से टैक्स से जुड़े काफी सारी इलीगल काम होते थे।
STT को ट्रांजेक्शन की वैल्यू पर वसूला जाता है और STT एक्ट के तहत इस बात को सपष्ट किया गया है की किन केस में यह एप्लीकेबल होगा और साथ में यह भी की बॉयर या सेलर किसके द्वारा यह भरा जाना है। उदाहरण के लिए अगर आप कुछ स्टॉक अपने ब्रोकर द्वारा इंट्राडे या इन्वेस्टिंग के लिए खरीदते हो तो आपको इसकी ब्रोकरेज और अन्य चार्जेस समेत STT भी देना पड़ता है जो आपकी खरीद का मूल्य और बढ़ा देता है।
STT kaise kaam karta hai – STT कैसे काम करता है
जैसा की पहले ही बताया गया है, STT सिक्योरिटी जैसे की स्टॉक, म्यूचुअल फंड और डेरिवेटिव आदि के लेन देन पर लगाया जाता है जिसे 2004 में पहले के टैक्स सिस्टम स्टांप ड्यूटी को रिप्लेस करने के लिए लागू किया गया था। STT दोनो बॉयर और सेलर को ट्रांजैक्ट हो रही सिक्योरिटी के आधार पर भरना पड़ सकता है और इसकी दर भी अलग अलग होती है।
STT को स्टॉक एक्सचेंज द्वारा इन्वेस्टर की तरफ से डेडक्ट किया जाता है और बाद में सरकार को जमा करवा दिया जाता है। STT का मुख्य उद्देश्य कैपिटल गेन टैक्स की चोरी को रोकना और सरकार के लिए रेवेन्यू को इकट्ठा करना है। इससे बाजार में ट्रेडिंग करने वाले लोगो में भी कमी आती है क्युकी यह ट्रेडिंग के खर्चे को भी बढ़ा देता है। STT के कारण बाजार में हो रही स्पेक्युलेटिव ट्रेडिंग में भी कमी आती है और लिक्विडिटी पर भी प्रभाव पढ़ता है।
STT कहां लागू होता है – STT kahan lagu hota hai
जब भी कोई सिक्योरिटी भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड होती है तो उस पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स लगाया जाता है। यह टैक्स बायर और सेलर दोनो की तरफ से लागू हो सकता हैं जिसे स्टॉक एक्सचेंज द्वारा कलेक्ट करके सरकार को जमा करवा दिया जाता है। इन सिक्योरिटी में शामिल है:
इक्विटी शेयर
इक्विटी ऑरेंटेड म्यूचुअल फंड
डेरिवेटिव
ETF
IPO में शामिल अनलिस्टेड शेयर
STT का रेट हर सिक्योरिटी के लिए अलग अलग हो सकता है, जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
STT कैसे कैलकुलेट किया जाता है – STT kaise calculate Kiya jaata hai
STT ट्रांजैक्ट की जा रही सिक्योरिटी की वैल्यू पर एप्लीकेबल होता है, चाहे ट्रेडर को लॉस हो रहा हो प्रॉफिट। चलिए इसे एक उदाहरण की मदद के समझते है।
आमिर एक एक्टिव ट्रेडर है जिसने इंट्राडे बेसिस पर 100 रुपए के 500 शेयर खरीदे और कुछ समय बाद उन्हें 105 रुपए में बेच दिया। इंट्राडे इक्विटी ट्रेड में 0.025% की दर से STT एप्लीकेबल होता है। इस हिसाब से इस ट्रेड में STT कैलकुलेट करने के लिए:
STT: 0.025*105*500 = 13.125
STT का रेट सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है और समय समय पर बदला जाता है। अलग अलग सिक्योरिटी में लागू STT की दर को आप नीचे देख सकते है।
STT की दर – STT rates
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन | STT रेट | STT भरने की जिम्मेवारी |
इक्विटी शेयर की खरीद (डिलीवरी बेस्ड) | 0.1% | खरीददार |
इक्विटी शेयर की सेलिंग ( डिलीवरी बेस्ड) | 0.1% | सेलर |
इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड की खरीद | NIL | |
इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड की सेलिंग | 0.001% | सेलर |
ऑप्शन की सेलिंग पर ( डेरिवेटिव) | 0.017% | सेलर |
ऑप्शन सेलिंग पर जहां ऑप्शन को एक्सरसाइज किया जाए | 0.125% | खरीददार |
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की सेलिंग पर ( डेरिवेटिव) | 0.01% | सेलर |
ETF की सेलिंग पर | 0.001% | सेलर |
OFS में अनलिस्टेड शेयर्स की सेलिंग और IPO जहां पर शेयर्स स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट होने है | 0.2% | सेलर |
STT के प्रभाव – STT ke prabhav
चार्जेस में बढ़ोतरी: जो लोग शेयर बाजार में ट्रेडिंग करते है उनके लिए STT के कारण ट्रांजेक्शन कॉस्ट में बढ़ोतरी हो जाती है। इस कारण उनका प्रॉफिट मार्जिन भी कम हो जाता है।
लिक्विडिटी में कमी: STT के कारण स्टॉक ट्रेडिंग में लिक्विडिटी की कमी आ सकती है। किन्ही सिक्योरिटी में ज्यादा STT होने के कारण लोग उनमें ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग करने से बचते है। इस से स्टॉक मार्केट में वॉल्यूम और लिक्विडिटी प्रभावित होती है।
ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में बदलाव: STT होने के कारण लोग उन सिक्योरिटी में ट्रेडिंग करने से बचते है जिनमे ज्यादा टैक्स लगने की संभावना होती है। इस लिए उन्हें अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में बदलाव करके किसी और सिक्योरिटी की तरफ शिफ्ट होना पड़ सकता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
STT एक डायरेक्ट टैक्स है जो स्टॉक एक्सचेंज द्वारा इन्वेस्टर और ट्रेडर द्वारा ट्रेड की गई सिक्योरिटी की वैल्यू पर वसूला जाता है। यह 2004 में पहली बार लागू किया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य है कैपिटल गेन टैक्स की चोरी को रोकना। यह सरकार के लिए रेवेन्यू का एक मुख्य सोर्स है लेकिन इन्वेस्टर के लिए यह एक परेशानी का कारण बन सकता है क्युकी इससे उसके प्रॉफिट मार्जिन में कमी आती है और ट्रेडिंग कॉस्ट बढ़ता है।