स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों के पास यहां से फंड जुटाने, इन्वेस्टर्स को रिवॉर्ड देने और प्रॉफिट कमाने के कई सारे तरीके है। यह तरीके किसी न किसी तरह शेयर्स की संख्या और लिक्विडिटी को बढ़ावा देने का भी काम करते है। ऐसे ही एक तरीके में शामिल है ‘OFS’ जिसके बारे में हम सब लोगों को अक्सर सुनने को मिलता है। इस आर्टिकल ‘OFS Meaning in Hindi’ में हम विस्तारपूर्वक जानेंगे कि OFS होता क्या है, IPO से कैसे अलग है और हम इन्वेस्टर्स के लिए कैसे महत्वपूर्ण है।
स्टॉक मार्केट में OFS क्या है – OFS Meaning in Hindi in Stock Market
OFS का मतलब होता है, Offer for Sale
स्टॉक मार्केट में OFS एक ऐसा तरीका है, जिसके जरिए कंपनी के मुख्य शेयरहोल्डर और प्रमोटर्स अपने हिस्से को पब्लिक को बेच सकते है। यह एक सेकेंडरी मार्केट प्रोसेस होता है, जिसमें कम्पनी कोई भी नए शेयर इश्यू नहीं करती। इसमें कंपनी के पहले से मौजदा शेयर्स को मार्केट के बेचने के लिए ऑफर किया जाता है।
SEBI द्वारा इस प्रोसेस को 2012 में शुरू किया गया था, जिसके द्वारा प्रमोटर्स का कम्पनियों में अपना स्टेक कम करना आसान हो सके। प्रमोटर्स अपने स्टेक को कई कंप्लायंस और रेगुलेटरी कारणों से कम कर सकते है। IPO की तरह OFS भी एक बहुत ही आसान प्रोसेस है, जिसका फायदा प्रमोटर्स और इन्वेस्टर्स दोनों को होता है।
OFS कैसे काम करता है – OFS kaise kaam karta hai
OFS एक बहुत सरल बिडिंग पर निर्भर प्रोसेस होता है। इसका मतलब यह कि जो भी शेयर बेचे जाते है, उनका का कोई भी फिक्स्ड प्राइस नहीं होता। OFS का सारा प्रोसेस स्टॉक एक्सचेंज जैसे कि BSE और NSE द्वारा किया जाता है और आमतौर से 1 दिन का होता है। इसमें शमिल सभी स्टेप्स को नीचे बताया गया है।
अनाउंसमेंट करना: सबसे पहले कंपनी के प्रमोटर्स, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से अपने शेयर्स को बेचने के लिए अप्रूवल लेते है। अप्रूवल मिल जाने पर वह स्टॉक एक्सचेंज में यह अनाउंसमेंट करते है कि प्रमोटर्स OFS के द्वारा अपने शेयर्स बेचने के लिए ऑफर कर रहे है।
प्राइस बैंड: कंपनी द्वारा अपने शेयर को बेचने के लिए एक प्राइस बैंड सेट किया जाता है। यह प्राइस बैंड वह मिनिमम प्राइस होता है, जिससे नीचे शेयर को खरीदने के लिए बोली नहीं लगाई जा सकती, या जो शेयर को बेचने का एक मिनिमम प्राइस होता है।
बिडिंग: OFS को कुछ समय के लिए बिडिंग के लिए खोला जाता है। बिडिंग को OFS वाले दिन 9.15 से 3.15 के बीच किया जा सकता है जिसमें इन्वेस्टर शेयर्स को खरीदने के लिए बोली लगा सकते है। बोली लगाने के लिए इन्वेस्टर्स अपने ब्रोकर और ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते है।
अलॉटमेंट: बिडिंग खत्म जाने पर एक निश्चित समय के बाद जो इन्वेस्टर शेयर के लिए सबसे ज्यादा बोली लगाते है, उन्हें शेयर्स की अलॉटमेंट की जाती है और उनके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट कर दिए जाते है।
OFS में कौन भाग ले सकते है – OFS me kaun bhaag le sakte hai
OFS में मार्केट कैपिटलाइजेशन के अनुसार टॉप 200 कंपनिया भाग ले सकती है। इन कंपनियों को OFS का 25% म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस कंपनियों के लिए रिजर्व रखना पड़ता है, और 10% रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए रिजर्व होता है। OFS इश्यू करने वाली कंपनी को इसको इश्यू करने के कम से कम 2 ट्रेडिंग दिन पहले एक्सचेंज पर इसकी सूचना देनी पड़ती है और किसी भी इन्वेस्टर को OFS का 25% से ज्यादा भाग एलोकेट नहीं किया जा सकता।
इन्वेस्टर्स की बात करें तो कोई भी व्यक्ति जो स्टॉक मार्केट में भागीदार है, और जिसके पास डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट है, OFS में शेयर खरीदने के लिए बिडिंग कर सकता है।
OFS में क्यों भाग लेंना चाहिए – OFS main kyu bhaag lena chahiye
एक इन्वेस्टर के तौर पर सबकी यही कोशिश रहती की अच्छी कंपनियों के शेयर सस्ते दामों पर खरीद सकें, ताकि बाद में उनसे मुनाफा कमाया जा सके। OFS भी आपकी इन्हीं जरूरतों को पूरा करता है। इसके के जरिए आप:
- मार्केट की लीडर और अच्छी फंडामेंटल वाली कंपनियों के शेयर को सस्ते दामों पर खरीद सकते है क्योंकि यह शेयर डिस्काउंटेड रेट पर ऑफर किए जाते है।
- इसके जरिए आप अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई कर सकते है और रिस्क को कम सकते है।
- अगर आपको मार्केट के ट्रेंड्स की अच्छी जानकारी है तो भी आप OFS का इस्तेमाल इन्वेस्टिंग में शॉर्ट टर्म गेन्स के लिए कर सकते है।
OFS से शेयर की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ता है – OFS se share ki kimto par kya prabhav padta hai
OFS में शेयर्स को डिस्काउंटेड रेट पर ऑफर किया जाता है। यानी कि वह रेट वो इसके मौजूदा चल रहे मार्केट प्राइस से कम होता है। इसका शेयर्स के मार्केट प्राइस पर शॉर्ट टर्म में ज्यादा असर पड़ता है।
OFS के जरिए जब मार्केट में शेयर की सप्लाई बढ़ती है तो शेयर्स के प्राइस में शॉर्ट टर्म वोलैटिलिटी हो सकती है। अगर सप्लाई ज्यादा और डिमांड कम हो तो शेयर के प्राइस गिर सकते है। इसी तरह डिस्काउंटेड प्राइस होने के कारण यह इन्वेस्टर्स को सस्ते दामों पर खरीद के लिए उपलब्ध होते है, लेकिन यह एक तरह का नेगेटिव सिग्नल भी हो सकता है, क्योंकि प्रमोटर्स का अपने स्टेक को बेचना और कम दाम पर ऑफर करना कंपनी के फंडामेंटल के लिए सही नहीं माना जाता, जिससे शेयर के प्राइस के गिरावट आती है।
दूसरी तरफ अगर कंपनी के फंडामेंटल अच्छे है और वह मार्केट की लीडर कंपनी है, तो शॉर्ट में प्राइस गिरने के बावजूद वह बाद में जल्द ही रिकवर कर सकती है। इस सब में मार्केट का सेंटीमेंट भी अहम योगदान निभाता है। बुलिश मार्केट में प्राइस के गिरने के बावजूद भी वह जल्द ही रिकवर कर जाता है, वहीं बेयरिश मार्केट में प्राइस का रिकवर करना ज्यादा आसान नहीं होता।
OFS के लिए कैसे अप्लाई करें – OFS ke liye kaise apply karen
IPO की तरह ही OFS में अप्लाई करने के लिए आपके पास एक डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट होना चाहिए। अगर आप के पास यह दोनों नहीं है तो आप आसानी से इसे कुछ ही स्टेप्स में ऑनलाइन ब्रोकर जैसे Zerodha, Groww, Upstox आदि में खुलवा सकते है। एक बार आपका डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खुल जाए तब आप आसानी से अपने ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर जाकर OFS के लिए बिडिंग कर सकते है। इसमें नीचे दिए स्टेप्स शामिल होते है:
- आपको OFS से जुड़ी कंपनी अनाउंसमेंट के प्रति सजग रहना होता है। यह अनाउंसमेंट कंपनी और फाइलिंग और स्टॉक एक्सचेंज के प्लेटफार्म पर आसानी से मिल जाती है।
- OFS एक दिन या ज्यादा से ज्यादा दो दिन के लिए खुला रह सकता है। जिस दिन OFS के लिए बिडिंग शुरू होती है तब ट्रेडिंग समय के दौरान आपको ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर लॉगिन करना है।
- OFS सेक्शन में जाएं और उस कम्पनी का चुनाव करें जिसके OFS के लिए आप अप्लाई करना चाहते है। शेयर्स के क्वांटिटी और प्राइस डाल कर बिडिंग करें। यह प्राइस फ्लोर प्राइस भी हो सकता है, यानी की बिडिंग के लिए निर्धारित मिनिमम प्राइस।
- जब आप बिडिंग कर चुके होते है, तो इसके लिए जरूरी अमाउंट आप के ट्रेडिंग अकाउंट में ब्लॉक और deduct कर ली जाती है। यह अमाउंट अप्लाई किए गए शेयर के प्राइस और क्वांटिटी पर निर्भर करती है।
- आमतौर पर शेयर्स की सेटलमेंट T+1 बेसिस पर की जाती है। यानी कि OFS से अलॉट हुए शेयर, ट्रेडिंग के अगले दिन आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट कर दिए जाते है।
OFS और IPO के बीच अंतर – OFS aur IPO ke bich antar
- IPO में एक कंपनी पहली बार पब्लिक को नए शेयर्स इश्यू करतीं है। वहीं OFS में पहले से मौजूद प्रमोटर्स अपने शेयर्स को बेचते है।
- IPO का मुख्य उद्देश्य कंपनी द्वारा फ्रेश कैपिटल को जुटाना होता है। OFS के जरिए कंपनी के प्रमोटर्स अपने शेयर्स को बेच कर प्रॉफिट इनकेश कर लेते है।
- IPO का प्रोसेस underwriters के द्वारा मैनेज किया जाता है। OFS का सारा प्रोसेस ऑनलाइन बिडिंग के माध्यम से होता है।
- IPO में आप कभी भी, मार्केट के दौरान या मार्केट के समय के बाद भी अप्लाई कर सकते है। OFS में आप सिर्फ ट्रेडिंग टाइम के दौरान ही अप्लाई कर सकते है।
- IPO में शेयर के मूल्य का एक प्राइस बैंड फिक्स्ड होता है। OFS में शेयर चल रहे मार्केट प्राइस के डिस्काउंट पर ऑफर किए जाते है।
- IPO से मिलने वाले फंड्स का मुख्य फायदा कंपनी को होता है, जिसका इस्तेमाल वह अपने एक्सपेंशन और ग्रोथ के लिए करती है। OFS में मिलने वाले फंड्स के फायदा स्टेक सेल करने वाले प्रमोटर्स को होता है।
OFS के फायदे – OFS ke fayde
लिक्विडिटी: OFS मार्केट में शेयर्स की लिक्विडिटी बढ़ाने का काम करता है। पहले से मौजूदा प्रमोटर्स अपने शेयर को OFS के द्वारा आम इन्वेस्टर्स को ऑफर करते है जिससे मार्केट में शेयर्स की संख्या में इजाफा होता है और इन्हें और आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है।
आसान प्रोसेस: IPO की तरह ही OFS का प्रोसेस बहुत सरल होता है। इसमें ऐसी कोई भी बात शामिल नहीं होती, जिसे आम इन्वेस्टर्स को समझने में मुश्किल हो और इसका शुरू से अंत तक प्रोसेस भी काफी आसान होता है।
प्राइस डिस्कवरी: OFS के जरिए शेयर बाजार में कंपनी के शेयर का असल प्राइस पता चलता है। OFS में शेयर डिस्काउंट प्राइस पर ऑफर किए जाते है और जिनकी सेटलमेंट बिडिंग के द्वारा की जाती है। इससे मार्केट में कंपनी के शेयर की डिमांड और सप्लाई का पता चलता है जो प्राइस का बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है।
OFS के नुकसान – OFS ke nuksaan
ओवरवैल्यूशन: अगर OFS में शेयर की डिमांड ज्यादा हो तो इन्वेस्टर्स ज्यादा प्राइस पर बिडिंग कर सकते है। इससे शेयर का प्राइस ओवरवैल्यूड हो सकता है और बाद में इन्वेस्टर्स को लॉस का सामना करना पड़ सकता है।
मार्केट वोलैटिलिटी: OFS के कारण मार्केट में वोलैटिलिटी हो सकती है। शेयर्स के प्राइस के डिमांड और सप्लाई ज्यादा या कम होने के कारण मार्केट में उनका प्राइस तेजी से प्रभावित होता है।
लिमिटेड टाइम: OFS की सब्सक्रिप्शन के लिए विंडो सिर्फ 1 दिन के लिए खुला रहता है जिसमें केवल ट्रेडिंग टाइम के दौरान ही बिडिंग की जा सकती है। कम टाइम होने के कारण हम इसमें बिडिंग करने से चूक सकते है।
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निष्कर्ष – Conclusion
OFS स्टॉक मार्केट का एक महत्वपूर्ण प्रोसेस है, जो इन्वेस्टर्स और प्रमोटर्स दोनो के लिए फायदेमंद होता है। इसके जरिए इन्वेस्टर्स को अच्छी कम्पनी के शेयर कम दामों पर मिल जाते है, वहीं प्रमोटर्स को अपना स्टेक बेच कर उससे प्रॉफिट कमाने का मौका मिलता है। लेकिन किसी भी कंपनी के OFS में भाग लेने से पहले इन्वेस्टर्स को उस से जुड़े रिस्क और फायदों को समझना चाहिए। अगर कंपनी के फंडामेंटल अच्छे है या आप मार्केट के ट्रेंड को समझते है, तभी OFS में अप्लाई करना सही रहता है।