ज्यादातर बिजनेस को ऑपरेट करने के लिए निरंतर कैश फ्लो की जरुरत होती है। इनमें छोटे और बड़े दोनों तरह के बिजनेस शामिल होते है। बिजनेस के ऑपरेटिंग कैश फ्लो को बनाए रखने में इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक अहम किरदार निभाता है। यह एक ऐसा फाइनेंशियल टूल है जो एक बिजनेस में पड़ने वाली फंड की जरूरतों को पूरा करता है। इस टूल में बायर और सेलर दोनो शामिल होते है और दोनों को फायदा होता है। आज के आर्टिकल ‘Invoice Discounting Meaning in Hindi’ में हम इसी फाइनेंसिंग टूल के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
इनवॉइस डिस्काउंटिंग क्या है – Invoice Discounting Meaning in Hindi
इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक ऐसा तरीका है जिसमे बिजनेस अपने पेमेंट के लिए पेंडिंग पड़े इनवॉइस का भुगतान तुरंत पा सकते है, लेकिन कुछ डिस्काउंट पर। यह टूल ऐसे बिजनेस के लिए एक अच्छा ऑप्शन है जिनके कई सारे बिल और इनवॉइस की रोजाना देनदारी होती और जिन्हे अपने रोजाना के ऑपरेशन के लिए तुरंत कैश की जरुरत होती है। ऐसे केस में पैसों का लेनदार अपने इनवॉइस और बिल, किसी थर्ड पार्टी, जैसे की बैंक या फाइनेंशियल संस्था को देता है, जिसके बदले उसके कैश की जरुरत तुरंत पूरी हो जाती है। ऐसे मिलने वाली अमाउंट इनवॉइस की अमाउंट से कम होती है। फाइनेंशियल संस्था इनवॉइस की अमाउंट का भुगतान, कुछ मार्जिन जो 1 से 3% तक होता है, रखकर करतीं है। यही मार्जिन इस सारी डील में उसका प्रॉफिट होता है।
इनवॉइस डिस्काउंटिंग का उदाहरण – Invoice Discounting ka udahran
हम मान लेते है की एक कंपनी ABC के पास एक इनवॉइस है जिसकी पेमेंट 90 दिन में भुगतान की जानी है। इनवॉइस की अमाउंट 100,000/- रूपये है। कंपनी को पेमेंट की तुरंत जरुरत है इसलिए वह इंतजार करने की बजाए एक फाइनेंशियल संस्था या किसी थर्ड पार्टी से संपर्क कर सकते है। यह फाइनेंशियल संस्था इनवॉइस को वेरिफाई करने और बाकी जरूरी फैक्टर्स को चेक करने के बाद पूरी पेमेंट का भुगतान तुरंत कर देती है। यह पेमेंट डिस्काउंटेड प्राइस पर की जाती है, यानी की फाइनेंशियल संस्था के अपने चार्जेस काटने के बाद जो आमतौर पर 1 से 3% के बीच में हो सकते है। बाद में यहीं संस्था इनवॉइस की पूरी रकम को देनदार पार्टी से तय तारीख को वसूल कर लेती है।
इनवॉइस डिस्काउंटिंग कैसे काम करता है – Invoice Discounting kaise kaam karta hai
इनवॉइस डिस्काउंटिंग के प्रोसेस में मुख्यता 3 पार्टियां शामिल होती है। सप्लायर या इनवॉइस डिस्काउंटिंग की सुविधा लेने वाली पार्टी, वह पार्टी जिसने इनवॉइस पेमेंट का भुगतान करना है, यानी बायर और फाइनेंशियल फर्म जो इनवॉइस डिस्काउंटिंग के तहत तुरंत पेमेंट का भुगतान करती है।
सबसे पहले एक कंपनी जो किसी भी तरह का सामान बेचती है, अपने समान को दूसरी पार्टी को सप्लाई करती है। इस सामान के बदले वह एक इनवॉइस जारी करती है, जिसमें सारी बनती पेमेंट का ब्योरा होता है। इस इनवॉइस के बदले सामान खरीदने वाली पार्टी, पेमेंट का भुगतान 30, 60 या 90 दिनों में करने के लिए बाध्य होती है।
अब सामान की सप्लाई करने वाली कंपनी को तुरंत फंड की जरूरत होती है, ताकि वह अपने बिजनेस को ऑपरेट कर पाएं और वेंडर्स को उनकी पेमेंट का भुगतान कर सके। क्योंकि सेलर को बायर से इनवॉइस की पेमेंट लेट मिलनी होती है, इसलिए वह किसी फाइनेंशियल संस्था से संपर्क कर सकती है जो इनवॉइस डिस्काउंटिंग की सुविधा देती हो। यह फाइनेंसर सभी डाक्यूमेंट्स को वेरीफाई करने के बाद इनवॉइस की कुल वैल्यू का 80 से 90% तक पेमेंट करता है। इसमें से यह डिस्काउंट करने की फीस जो 1 से 3% तक होती है उसको भी डेडक्ट करता है और बचे हुए अमाउंट को सिक्योरिटी के तौर पर रिजर्व रखा जाता है।
30 या 90 दिन बाद देनदार पार्टी इनवॉइस के बिल का भुगतान सीधे फाइनेंसर को कर देती है। अमाउंट के मिलने पर फाइनेंसर रिजर्व अमाउंट का भुगतान वापिस इनवॉइस डिस्काउंटिंग की सुविधा लेने वाली कंपनी को कर देती है। इस तरह यह सारा प्रोसेस 30 से 90 दिनों में पूरा हो जाता है।
भारत में इनवॉइस डिस्काउंटिंग प्लेटफार्म – Bharat main Invoice Discounting Platform
भारत में इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक नया कॉन्सेप्ट है, लेकिन मार्केट में नए प्लेटफार्म के आने के कारण इसमें काफी तेजी आई है। भारत में इस समय कई सारे RBI अप्रूव्ड इनवॉइस डिस्काउंटिंग लेटफॉर्म्स काम कर रहे है जिनमें से मुख्य कुछ की जानकारी नीचे दी गईं है:
TReDS (Trade Receivables Discounting System): TReDS को RBI ने MSME की लिक्विडिटी की परेशानी को दूर करने के लिए शुरू किया है। इसका मुख्य उद्देश्य MSME के इनवॉइस को फाइनेंशियल संस्था के सामने ट्रेड करना होता है ताकि उन्हें समय पर फंडिंग मिल सकते। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से MSME को कई सारे फाइनेंशियल फर्म के साथ जोड़ा जाता है, जो प्लेटफार्म पर लिस्टेड MSME इनवॉइस में बिडिंग करते है। इस बिडिंग में जो फाइनेंशियल संस्था सबसे अच्छा रेट ऑफर करती है उसी को कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है। इस प्लेटफार्म पर काफी सारे बैंक, फाइनेंशियल संस्था और NBFC रजिस्टर्ड है। इनमें मुख्य है:
KredX: KredX एक TReDS से अलग इंडपेंडेड ऑनलाइन प्लेटफार्म है, जो इनवॉइस डिस्काउटिंग और बिजनेस सॉल्यूशन के फील्ड में काम करती है। इसे 2015 में शुरू किया गया था जो बहुत जल्द ही एक लीडिंग इनवॉइस डिस्काउंटिंग कम्पनी उभर कर आई है।
Oxyzo: Oxyzo, ofbusiness की एक सब्सिडियरी है जो एक लीडिंग B2B ऑनलाइन फाइनेंसिंग प्लेटफार्म है। Oxyzo का मुख्य काम बिजनेस सेक्टर जैसे कि मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि में काम करने वाली कंपनियों की वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को पूरा करना है।
Cashinvoice: Cashinvoice के जरिए MSME अपने अनपेड इनवॉइस के बदले तुरंत वर्किंग कैपिटल का इंतजाम कर सकते है। इसका डिजिटल इंटरफेस पूरे प्रोसेस को बहुत आसान और तेज बना देता है।
इनवॉइस डिस्काउंटिंग के फायदे – Invoice Discounting ke fayde
कैश फ्लो में सुधार: एक बिजनेस में जब किसी को पेमेंट के लिए 30 से 90 दिन का इंतजार करना पड़े तो उसके बिजनेस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे उसे रोजाना के मैनेजमेंट और ऑपरेशन संबंधित खर्चों में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इनवॉइस डिस्काउंटिंग के जरिए बिजनेस को तुरंत कैश मिल जाता है जिससे उसे अपने बिजनेस को मैनेज करना आसान हो जाता है।
कस्टमर के साथ रिलेशन में सुधार: इनवॉइस डिस्काउंटिंग में कस्टमर का कोई रोल नहीं होता और ना वह किसी तरह से प्रभावित होता है। इस कारण बिजनेस बिना कस्टमर पर फंड्स के लिए प्रभाव डाले अपने ऑपरेशन को आसानी से मैनेज कर पाते है। इससे कस्टमर के साथ सम्बन्धों में सुधार होता है।
कोलेटरल मुक्त फाइनेंसिंग: ज्यादातर इनवॉइस डिस्काउंटिंग के केस में किसी भी तरह की एसेट को सिक्योरिटी के तौर पर गिरवी नहीं रखा जाता। इसमें सिर्फ इनवॉइस ही एक कोलेटरल के तौर पर काम करता है।
कम इंटरेस्ट रेट और तेजी: फंड इक्ट्ठा करने के अन्य तरीकों की तुलना में इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक बहुत किफायती तरीका है। इसमें बहुत कम इंटरेस्ट रेट में ही आपके फंड की जरुरत पूरी हो जाती है। फंड जुटाने के ट्रेडिशनल तरीकों की तुलना में यह तरीका काफी तेज होता है। ज्यादातर प्रोसेस ऑनलाइन होने के कारण डॉक्यूमेंट की वेरीफिकेशन और पेमेंट का भुगतान बहुत जल्दी किया जा सकता है।
बिजनेस पर कंट्रोल: इनवॉइस डिस्काउंटिंग में आपका अपने बिजनेस पर पूरा कंट्रोल रहता है। इसमें आपको अपने फंड की जरुरत को पूरा करने के लिए किसी और को अपना शेयरहोल्डर नहीं बनाना पड़ता।
इनवॉइस डिस्काउंटिंग नुकसान – Invoice Discounting ke nuksaan
ज्यादा इंट्रेस्ट रेट: ज्यादातर केस में इनवॉइस डिस्काउंटिंग में इंटरेस्ट रेट काफी कम रहते है, लेकिन अगर बिजनेस के कस्टमर की क्रेडिट रेटिंग खराब हो तो यह इंटरेस्ट रेट ज्यादा भी हो सकते है।
थर्ड पार्टी पेमेंट पर निर्भरता: अगर आप इनवॉइस डिस्काउंटिंग पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गए है तो यह आपके बिजनेस पर विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है। इससे आप अपने बिजनेस के इंटरनल कैश फ्लो को सुधारने के बजाय थर्ड पार्टी पर निर्भर रहेंगे जो लॉन्ग टर्म में सही नहीं रहता।
प्रॉफिट में कमी: इनवॉइस डिस्काउंटिंग में बिजनेस को प्रॉफिट का पूरा लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि डिस्काउंटिंग फर्म अपनी सर्विसेज के बदले कुछ फीस या इंटरेस्ट पेमेंट चार्ज करती है। यह बिजनेस के कुल हो सकने वाले प्रॉफिट को कम कर देता है।
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निष्कर्ष – Conclusion
इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक पावरफुल फाइनेंशियल टूल है, जो एक बिजनेस के कैश फ्लो को बनाए रखने और उसका विस्तार करने में मदद करता है। ऐसे बिजनेस जो अभी अपने शुरुआती स्टेज है और जिन्हे कैश की बहुत कमी रहती है उनके लिए यह बहुत काम का साधन है। आजकल कई सारे ऑनलाइन प्लेटफार्म मार्केट में उपलब्ध है जो इस सारे प्रोसेस को और आसान और ट्रांसपेरेंट बना देते है। भारत में इनवॉइस डिस्काउंटिंग एक नया कांसेप्ट है, और बहुत तेजी से बढ़ रहा है। अगर आप बिजनेस को चला रहें है, और कैश की लिक्विडिटी के कारण परेशान है तो आप भी इसका सहारा ले सकते है।