Financial Terms

आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली Financial Terms in Hindi(Alphabetically).

A

Asset: एसेट एक ऐसी सम्पति को कहते है जिस से की हमे वर्तमान या भविष्य में कुछ मुनाफा होने की सम्भावना होती है। यह सम्पति कोई भी आम आदमी, संस्था या कंपनी होल्ड कर सकती है और यह दो तरह की हो सकती है, जैसे की Tangible asset (प्रॉपर्टी, सोना, मशीनरी आदि ) और Intangible asset (गुडविल, ट्रेडमार्क, ब्रांड वैल्यू आदि)। ज्यादातर एसेट के बारे में हमे कंपनी बैलेंस शीट में देखने को मिलता है जहाँ एसेट की वैल्यू के हमे कंपनी या संस्था की financial हेल्थ, इनकम और उसकी संभावित वैल्यू का अंदाज़ा लगाने में मदद करती है।

Asset Allocation: एसेट एलोकेशन उस प्रोसेस की कहते है जिसमे एक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को अलग अलग एसेट क्लास जैसे की बांड, स्टॉक, कमोडिटी और रियल एस्टेट आदि में विभाजित किया जाता है। यह एक इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी है जिसमे की इन्वेस्टर्स और फण्ड मैनेजर्स द्वारा पोर्टफोलियो को गोल और रिस्क के मुताबिक मैनेज किया जाता है। एसेट एलोकेशन के पीछे का मुख्या उद्देश्य रिस्क को कम करके रिटर्न को ज्यादा से ज्यादा रखना होता है। अलग अलग एसेट क्लास में की जाने वाली इन्वेस्टमेंट, इन्वेस्टर के उद्देश्य के ऊपर के ऊपर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए अगर आप एक हेल्थी जवान इंसान है और अच्छा कमा रहे है तो आप ज्यादा रिस्क वाली एसेट में इन्वेस्ट कर सकते है जिसमे में आपका इक्विटी और डेब्ट का प्रोपोरशन 70/30 का हो सकता है।

Amortization: फाइनेंस में Amortization शब्द का इस्तेमाल लिए गए कर्जे को रेगुलर पैमेंट द्वारा चुकाने को कहते है। इसे आमतौर पर लोन, जैसे की होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन आदि के साथ जोड़ कर देखा जाता है जहाँ  पर कर्जदार अपने कर्जे को धीरे धीरे रेगुलर पेमेंट द्वारा ब्याज सहित चुका देता है। लोन को चुकाने की अवधि के शुरुआत में भरी जाने वाली क़िस्त का ज्यादातर हिस्सा ब्याज की पेमेंट और बाकि का प्रिंसिपल अमाउंट की और जाता है। जैसे जैसे लोन की अवधि बढ़ती है, लोन चुकाने के लिए दी क़िस्त का ज्यादा हिस्सा प्रिंसिपल अमाउंट की और जाने लगता है जिस से आखिरकार एक दिन लोन की कुल अमाउंट ब्याज सहित चुका दी जाती है। लोन को ब्याज सहित रेगुलर पेमेंट के रू में चुकाने के प्रोसेस को ही Amortization कहा जाता है।

Arbitrage: आर्बिट्राज को सबसे पुरानी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटर्जी में से एक माना जाता है। इसके अंतर्गत ट्रेडर किसी एक एसेट को दो अलग अलग मार्केट में ट्रेड करके प्रॉफिट कमाता है। वह एसेट जो अलग अलग लोकेशन में ट्रेड हो रही है उनके मार्किट सेंटीमेंट, लिक्विडिटी और टाइम जोन के अनुसार प्राइस में कुछ अंतर होता है। इसी का फायदा ट्रेडर अपना प्रॉफिट कमाने के लिए करते है। उदाहरण के लिए एक स्टॉक ABC नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज दोनों में लिस्टेड है। कई फैक्टर के कारण NSE में स्टॉक का प्राइस BSE से ज्यादा है। ऐसी स्तिथि में एक ट्रेडर स्टॉक को BSE के कम दामों पे खरीद लेगा और उतनी ही क्वांटिटी NSE में ज्यादा दामों में बेच देगा। ब्रोकरेज, टैक्सेज और अन्य चार्जेज को सेटल करने के बाद जो भी अमाउंट बचेगी वह उसका प्रॉफिट होगा। आर्बिट्राज ट्रेडिंग लगभग सभी प्रकार की एसेट मार्किट में की जाती है जैसे की स्टॉक, बांड्स, करेंसी, कमोडिटी और डेरिवेटिव्स आदि। आर्बिट्राज ट्रेड लेने के लिए एक ट्रेडर को तेज होना चाहिए क्युकी प्राइस के फर्क temporary होता है और लिमिटेड टाइम में ही सारे ट्रेड को पूरा करना पड़ता है।

Auto Sweep: ऑटो स्वीप एक ऐसी फैसिलिटी है जिसमे अगर आपका सेविंग अकाउंट में पड़ा पैसा एक लिमिट से ज्यादा हो तो वह शिफ्ट होकर FD अकाउंट में शिफ्ट हो जाता है और उसपे मिलने वाला इंटरेस्ट भी FD अकाउंट के जितना ही होता है। वह पैसा जो आपके सेविंग अकाउंट में पड़ा होगा उसे आप कभी भी आम अकाउंट की तरह निकलवा और इस्तेमाल कर सकते है। जब सेविंग अकाउंट के हिस्से में पड़ा पैसा तय की गयी लिमिट से कम हो जाता है तो FD अकाउंट से निकलकर वह पैसा सेविंग अकाउंट में आ जाता है जिस से आपको पैसो की कमी भी नहीं होती।

B

Blue Chip: ब्लू चिप शब्द उन कंपनी के शेयर के लिए इस्तिमाल किया जाता है जो बड़ी मार्किट कैप, वेल एस्टाब्लिशड, स्टेबल अर्निंग, लगातर ग्रोथ और अच्छी रेपुटेशन के साथ मार्किट में एक लम्बे समय से है। यह कंपनी मार्किट और अपने सेगमेंट की लीडर कम्पनिया होती है जिनमे इन्वेस्टमेंट करना बाकि कंपनियों के मुकाबले सेफ और कम रिस्की माना जाता है। ब्लू चिप शब्द पोकर गेम से शुरू हुआ था। पोकर में वह चिप्स जिनकी वैल्यू सबसे ज्यादा होती और जो रंग में नीली होती है उन्हें ब्लू चिप्स कहते है। फाइनेंसियल इंडस्ट्री में क्लू चिप शब्द को हाई क्वालटी स्टॉक केलिए इस्तेमाल किया जाता है। टर्म ब्लू चिप सबसे पहले 20वी शताब्दी में पॉपुलर हुआ था।

Balance Sheet: बैलेंस शीट उस financial स्टेटमेंट को कहते है जो एक निश्चित समय काल में एक कम्पनी की financial हेल्थ के बारे में बताती है। इसमें कंपनी की सभी जरुरी रेश्यो जैसे की एसेट, liabilities, शेयरहोल्डर इक्विटी, प्रॉफिट आदि के बारे में संक्षेप में जानकारी होती है। बैलेंस शीट को हर तिमाही और financial ईयर के अंत में त्यार किया जाता है। एक बैलेंस शीट को देख कर हम किसी भी कंपनी की financial पोजीशन का अंदाज़ा लगा सकते है, इसी तरह कंपनी की मैनेजमेंट बैलेंस शीट के आधार पर भविष्य में अपने बिज़नेस के ग्रो उसमे सुधार करने के लिए निर्णय ले लेती है।

Bond: बांड्स ऐसे जरिये है जिनको जारी करके सरकारी एजेंसिया, financial इंस्टीटूशन और कॉर्पोरेट आदि अपने लिए फण्ड जुटते है। बांड्स को तब जारी किया जाता है जब फण्ड के जरुरत कम समय के लिए होती है। यह हाई सिक्योरिटी डेब्ट इंस्ट्रूमेंट होते है जिनमे फिक्स्ड इंटरेस्ट की गारेंटी होती है। इनकी एक फिक्स्ड maturity डेट होती है जिसके आने पर इन्वेस्टर को उनकी प्रिंसिपल अमाउंट,रिटर्न समेत वापस कर दी जाती है। इनमे कम रिस्क और कम रिटर्न शामिल होती है।

C

Capital: फाइनेंस जगत में कैपिटल शब्द का इस्तेमाल उन रिसोर्स और पैसो के लिए किया जाता है जिनका इस्तेमाल बिज़नेस और संस्था अपने दैनिक काम को करने या अपने काम जो शुरू करने के लिए करती है। कैपिटल केकयी सरे फॉर्म हो सकते है जैसे की कॅश, इक्विटी, कर्जा, प्रॉपर्टी आदि।

CAGR: CAGR का मतलब होता है: कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (Compound Annual Growth Rate)। CAGR हमारे द्वारा की गयी इन्वेस्टमेंट पर दिए गए टाइम पीरियड में मिल रही रिटर्न या ग्रोथ को कैलकुलेट करने में मदद करता है। आसान शब्दों में CAGR हमे यह जानने में मदद करता है की आपके द्वारा की गई इन्वेस्टमेंट ने एक निश्चित समय के बाद annually कितना रिटर्न दिया है। यह कंपाउंडिंग इंट्रेस्ट को कैलकुलेट करने के सबसे सही तरीके में से एक है।

Compound Interest: कंपाउंड इंटरेस्ट को दुनिया का आठवां अजूबा कहा जाता है। जहाँ सिंपल इंटरेस्ट पर ब्याज हर बार सिर्फ प्रिंसिपल अमाउंट पर ही लगता है वहीँ कंपाउंड इंटरेस्ट में ब्याज प्रिंसिपल अमाउंट और प्रिंसिपल अमाउंट पर पहले लगे ब्याज की टोटल वैल्यू पर लगता है। कंपाउंड इंटरेस्ट एक लम्बे समय काल में आपकी वेल्थ को चमत्कारी तरीके से बढ़ाता है। हर बार इंटरेस्ट लगने के बाद आपकी बेसिक प्रिंसिपल वैल्यू बढ़ती जाती है और भविष्य लगने वाले ब्याज की वैल्यू भी इसी कारण कहीं ज्यादा होती है। उदाहरण के लिए अगर आपकी 1 लाख की इन्वेस्टमेंट पर 5% इंटरेस्ट मिल रहा है जो की सालाना कंपाउंड होता है तो पहले साल 1 लाख पर इंटरेस्ट लगने के बाद उसकी वैल्यू 1।5 लाख होगी। कंपाउंड इंपरेटेस्ट होने के कारण इसमें अगले साल ब्याज 1।5 लाख पर लगेगा न की सिर्फ 1 लाख पर।

Crowdfunding: Crowdfunding फण्ड जुटाने का ऐसा तरीका है जहाँ एक स्पेसिफ प्रोजेक्ट के लिए बहुत सारे लोगो से डोनेशन के रूप में छोटी छोटी अमाउंट में पैसा जुटाया जाता है। इस तरह की फंडिंग बहुत कम समय के लिए और छोटी जरूरतों के लिए की जाती है। यह काम आमतौर पर इंटरनेट सोशल मीडिया के नेटवर्क के द्वारा किया जाता है।

D

Derivatives: Derivatives फ्यूचर में asset खरीदने या बेचने के लिए दो या दो से ज्यादा पार्टीज के बीच हुए कॉन्ट्रैक्ट को कहते है। Derivative शब्द का मतलब वह इंस्ट्रूमेंट है जो अपना प्राइस किसी और underlying से प्राप्त करते है जो की stock, commodity या currency हो सकते है। Trader उस इंस्ट्रूमेंट के फ्यूचर प्राइस में होने वाली बढ़त या कमी को एनालाइज करके ट्रेडिंग करते है। Derivative के दो सबसे common उदाहरण futures और options हैं। Derivative आमतौर पर leveraged instrument होते हैं, जो उनसे जुड़े प्रॉफिट और रिस्क को और बड़ा देते है।

E

EBITA: EBITDA मतलब earnings before interest, taxes, depreciation, and amortization। यह एक financial रेश्यो है जो हमे कंपनी की overall financial कंडीशन के बारे में बताता है। EBITDA के माध्यम से हम कंपनी की मैनेजमेंट की कार्यकुशलता को जानने में मदद मिलती है। इसको सही तरह से समझने के लिए इसके नाम के सभी शब्दों का मतलब जान लेते है। EARNINGS: कुल आमदन या कुल नुक्सान।

INTEREST: कर्जो के ब्याज पे खर्च किया गया पैसा।

TAX: मुनाफे से सरकार को दिया गया हिस्सा।

DEPRECIATION: Tangible assets जैसे की जमीन, ईमारत या मशीनरी आदि की कीमत में हुई कमी या उसके use से हुयी घिसावट को depreciation कहते है।

AMORTIZATION: Intangible assets वह चीजे जिन्हे हम देख या छु नहीं सकते पर फिर भी कंपनी की इनकम का important हिस्सा है, जैसे की trademark, copyrights, brand value, goodwill आदि।

F

Face Value: फेस वैल्यू जिसे की PAR वैल्यू भी कहते है वह मिनिमम वैल्यू होती है जो कंपनी शेयर को इशू करते समय निर्धारित करती है। यह वह कम से कम प्राइस जिसमे उस कंपनी का शेयर को इशू किया या बेचा जा सकता है। फेस वैल्यू आमतौर पर एक छोटी अमाउंट होती है जैसे की 10 रूपये या 100 रूपये और यह कंपनी की शुरूआती लीगल कैपिटल को दर्शाती है। यहाँ बात का ध्यान देना जरुरी है की फेस वैल्यू मार्किट वैल्यू से अलग होती यही क्युकि लोग अक्सर इनके बिच कंफ्यूज हो जाते है और इन्हे एक ही समझ बैठते है। शेयर की मार्किट वैल्यू कंपनी के परफॉरमेंस और बाजार के उतार चढ़ाव के साथ निरंतर बदलती रहती है और कंपनी वर्तमान वैल्यू को दर्शाती है वही फेस वाले हमेशा फिक्स रहती है (स्टॉक स्प्लिट या मर्ज के केस में इसकी वैल्यू कम या ज्यादा हो जाती है)।

G

GDP: जीडीपी यानि की GROSS DOMESTIC PRODUCT। यह एक फिक्स्ड टाइम पीरियड में एक देश की इकॉनमी की पर्फोर्मस को माप होता है। दूसरे शब्दों में जीडीपी एक फिक्स्ड टाइम पीरियड में किसी देश में उत्पन की गयी कुल प्रोडक्ट और सर्विसेज की वैल्यू को कहते है। यह एक देश की इकनोमिक ग्रोथ का माप होता है जो उस देश की आर्थिक स्तिथि के बारे में बताता है। जीडीपी जितनी ज्यादा होगी यह देश के लिए उतना ही अच्छा माना जाता है। इसके बेस पर पालिसी मेकर देश की इकनोमिक हालात को समझते हुए आगे की ग्रोथ की प्लान और नियम स्थापित करते है। हालाँकि सिर्फ जीडीपी के के आधार पर ही देश हिट के लिए कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। जीडीपी को आमतौर पर मॉनेटोरी टर्म्स जैसे की Dollers और Euro में व्यक्त किया जाता है।

H

Hedge Funds: Hedge फण्ड प्राइवेट तौर पर मैनेज होने वाले फण्ड होते है जो की कई सारे इन्वेस्टमेंट सोर्स के इकठी हुयी पूल मनी को अच्छी रिटर्न को कमाने के लिए कई सारी एसेट में इन्वेस्ट करते है। यह आमतौर पर एसेट जैसे की स्टॉक, बांड, कमोडिटी, करेंसी और डेरीवेटिव आदि में इन्वेस्ट करते है। यह फण्ड आमतौर पर सिर्फ वैल्थी इन्वेस्टर्स के लिए त्यार किये जाते है। Hedge फण्ड में कई सारी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटर्जी का इस्तेमाल किया जाता है जिसके कारण यह नेगेटिव मार्किट में भी अच्छी रिटर्न देने में सक्षम होती है। Hedge फण्ड में इन्वेस्टमेंट इस तरीके से की जाती है की मार्किट के नुक्सान के जाने पर भी आपकी इन्वेस्टमेंट को कोई फर्क ना पड़े। उदाहरण के लिए अगर कोई इन्वेस्टर बड़ी मात्रा में किसी स्टॉक की क्वांटिटी को होल्ड किये हुए है और मार्किट उसकी सोची उसकी डायरेक्शन के विपरीत जा रही है तो वह उसी अमाउंट के स्टॉक के फ्यूचर को बेच सकता है। ऐसा करने से मार्किट के डाउनसाइड होने पर बैलेंसिंग बनी रहेगी है और सही होने पर प्रॉफिट की सम्भावना कई गुना बढ़ जाती है। Hedge फण्ड मैनेजर्स ऐसे ही इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग तकनीक का इस्तेमाल करके अपने क्लाइंट के पैसो को मैनेज और उनपे अच्छे रिटर्न कमा के देने पर सक्षम हो पाते है।

I

Inflation: इन्फ्लेशन यानि की महंगाई। इन्फ्लेशन मतलब किसी देश में बिक रही वस्तुओं और सर्विसेज की दाम में लगातार वृद्धि होना जिस के लोगो की खरीदने की क्षमता में कमी आती है और पैसो की वैल्यू कम होती है। देश में महंगाई या इन्फ्लेशन कई सारे से कारणों से हो सकती है जैसे की सप्लाई के मुकाबले डिमांड का ज्यादा होना। कच्चे माल की कीमतों का बढ़ना, तेल और खनिजों के मूल्य में बढ़ना आदि।

Indexation: इंडेक्सेशन उस प्रक्रिया को कहते है, जिसमे इन्वेस्टमेंट पर होने वाले कैपिटल गेन यानी मुनाफे पर बनते टैक्स में समय के साथ बढ़ी महगांई को भी एडजस्ट किया जाता है, जिससे टैक्स की कुल देनदारी में कमी आती है। जब हम होने वाले कैपिटल गेन पर टैक्स भरते है, तो हम उसमे इंडेक्सेशन का फायदा लेकर अपनी टैक्स की देनदारी को कम कर सकते है। इंडेक्सेशन के तहत आपके इन्वेस्टमेंट किए जाने के समय से लेकर उसको बेचने के बीच में हुई इनफ्लेशन यानी को महंगाई को ध्यान रखा जाता है, जिससे हमारा कुल कैपिटल गेन कम हो जाता है, और टैक्स की अमाउंट भी कम बनती है।

J

Joint Account: किसी बैंक में जॉइंट अकाउंट होना मतलब एक ऐसा अकाउंट जो की एक से ज्यादा लोगो के नाम पर खुला होता है। जॉइंट अकाउंट के सभी अकाउंट होल्डर्स का अकाउंट पर एक सा अधिकार होता है। इसका मतलब की सभी अकाउंट होल्डर अकाउंट में पैसा जमा करवा सकते है, निकलवा सकते है और कोई भी ट्रांसक्शन कर सकते है।

K

KYC: KYC का मतलब होता है Know Your Customer। इस प्रोसेस का इस्तेमाल financial कम्पनिया अपने क्लाइंट की पहचान को जांचने के लिए लिए करती है। KYC रेगुलेशन के द्वारा सरकार कई गैरकानूनी गतिविधियों जैसे की मनी लॉन्ड्रिंग, फ्रॉड, टेररिस्ट फंडिंग आदि पर रोक लगा पाती है। जब भी किसी व्यक्ति को लिसी financial संस्था के साथ लेंन देन करना होता है या वहां अकाउंट खुलवाना होता है तब उसे अपने कई जरुरी डॉक्यूमेंट जमा करवाने पड़ते है। इन डाक्यूमेंट्स में व्यक्ति का ID और Address प्रमाण मुख्य होता है और इनके जरिये एक व्यक्ति विशेष की नाम, जन्म तारीख, एड्रेस, स्टेटस आदि को वेरीफाई किया जाता है। व्यक्ति की पहचान को जांचने के इस पुरे प्रोसेस को ही KYC के नाम से जाना जाता है।

L

Leverage: Financial जगत और स्टॉक मार्किट में लिवरेज शब्द का प्रयोग अपनी कैपिटल पर उधार लेकर ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग करने को कहते है। इसके अंतर्गत इन्वेस्टर अपने ब्रोकर से पैसे उधार लेता है ताकि वह अपनी ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग की पोजीशन को बढ़ा सके जिस से होने वाला प्रॉफिट भी कई हद तक बढ़ जाता है। स्टॉक मार्किट में लिवरेज, मार्जिन ट्रेडिंग द्वारा ली जाती है। आमतौर पर लगभग सभी ब्रोकर मार्जिन ट्रेडिंग की सहूलियत देते है। इसमें अगर किसी इन्वेस्टर का अकाउंट एक ब्रोकरेज फर्म में है तो ट्रेडिंग करने पर 5x यानि की अपनी कैपिटल से 5 गुना ज्यादा तक की पोजीशन ली जा सकती है। लिवरेज होने के कारण होने वाले प्रॉफिट की वैल्यू काफी हद तक बढ़ जाती है, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए की प्रॉफिट के बढ़ने के साथ साथ ही होने वाले नुक्सान की सम्भावना में भी कई गुना इज़ाफ़ा हो जाता है।

M

MICR Code: MICR का मतलब होता है Magnatic Ink Character Recognition। MICR 9 डिजिट का एक यूनिक कोड होता है जो अक्सर हमे चेक के निचले तरफ देखने को मिलता है। इसके जरिए हमे बैंक और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन के बारे में जरूरी जानकारी मिलती है। इसका हरेक डिजिट यूनिक होता है और हमे अकाउंट से जुड़े बैंक और ब्रांच की जरूरी जानकारी देता है। इसकी मदद से चेक द्वारा की जा रही फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन को सिक्योर और तेज बनाया जाता है।

Mortgage: मॉर्गेज ऐसे लोन्स को को कहा जाता है जो की एक प्रॉपर्टी या घर खरीदने के लिए किसी financial संस्था से लिए जाते है। अगर आप एक प्रॉपर्टी खरीद रहे है और आपके पास उसको लेने के लिए प्राप्यत पैसे नहीं है तो ऐसी स्तिथि में किसी बैंक या NBFC लिए गए प्रॉपर्टी लोन को मॉर्गेज कहा जाता है। मॉर्गेज आमतौर पर सिक्योर्ड लोन्स होते है, मतलब की की इनको लेने के लिए किसी तरह की एसेट को गिरवी रखा जाता है। लोन ना चुका पाने की स्तिथि में बैंक उस एसेट को नीलाम करके अपने पैसो की भरपाई करता है। अब कई लोग मॉर्गेज और लोन को एक ही समझ बैठते है जबकि एक दोनों में फर्क होता है। जहाँ लोन में हर तरह के काम के लिए उधार लिए गये पैसों को कहते है वहीँ मॉर्गेज सिर्फ प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लिए जाने वाले लोन को कहते है। मॉर्गेज केवल सिक्योर्ड लोन्स होते है जबकि नार्मल लोन्स सिक्योर्ड और unsecured दोनों तरह के हो सकते है।

N

NBFC: NBFC मतलब Non-Banking Financial Company। यह एक financial institution होते है जो की बैंक के सामान ही सर्विस ऑफर करते है लेकिन फिर भी उनसे अलग होते है। यह बैंक की तरह डिमांड डिपाजिट नहीं ले सकते यानि की यह ना तो करंट और सेविंग अकाउंट ऑपरेट कर सकते है और ना ही फण्ड ट्रांसफर जैसी सुविधा प्रदान कर सकते है। NBFC समाज के उन सेगमेंट को financial सर्विस प्रदान करते है जहाँ आमतौर बैंक्स की बैंक की पहुंच नहीं होती। इन सर्विसेज में हर तरह के लोन, लीजिंग, इंसोरेंस, वेल्थ मैनेजमेंट जैसे नाम मुख्य है। अपने रोज के काम काज के लिए फण्ड जुटाने के लिए एक NBFC इन्वेस्टर से पैसे जुटा सकती है, बैंक से लोन ले सकती है, बांड और डिबेंचर इशू कर सकती है और कस्टमर से फिक्स्ड डिपाजिट के तौर पर पैसा जमा करवा सकती है।

o

Over the Counter: ओवर द काउंटर मार्किट में स्टॉक और अन्य financial सेक्युरिटी की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज में होने की बजाये ब्रोकर और डीलर के नेटवर्क में होती है। ओवर द काउंटर मार्किट में लगभग सभी तरह के financial इंस्ट्रूमेंट जैसे की स्टॉक, बांड, डेरीवेटिव, कमोडिटी आदि की खरीद और बेच होती है और इनमे मुख्यता उन कंपनियों के शेयर लिस्ट होते है जो की स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट के लिए एलिजिबल नहीं होती। स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट ना के बावजूद भी यह सेबी के दायरे में आती है और इनपे भी सभी रूल्स हुए रेगुलेशन लागु होते है।

P

Public Company: पब्लिक लिमिटेड कंपनी या पब्लिक ट्रेडेड कंपनी एक ऐसी कंपनी होती है जिसमे एक या एक से ज्यादा तरीको के आम लोगो की भागीदारी होती है। आमतौर पर वह कम्पनिया जो की शेयर मार्किट में लिस्ट हो जाती है उन्हें पब्लिक कंपनी कहा जाता है। पब्लिक कम्पनिया अपनी हिसेदारी को शेयर के रूप में ऑफर करती है जो की स्टॉक मार्किट में खरीद के उपलभ्द होते है। यहाँ ओर कोई भी आम नागरिक, संस्था या इंवेसमनेट फर्म इनको खरीद और बेच कर कंपनी में हिस्सेदार बन सकता है।

Q

QIP: कंपनियों के लिए अपने ऑपरेशन और एक्सपेंशन के लिए फण्ड जुटाने के कई सारे तरीके होते है जैसी की OFS, लोन, पब्लिक ऑफरिंग आदि। QIP उन्ही तरीको में से एक है। QIP का मतलब होता है Qualified Institutional Pacement। जैसे की नाम से ही जाहिर है की फण्ड जुटाने के इस तरीके में Qualified संस्था जैसे की म्यूच्यूअल फण्ड हाउस, इंश्योरेंस कम्पनिया और बड़ी financial संस्थाए शामिल होती है। उदाहरण के लिए आप एक बिज़नेस चला रहे है जिसकी आगे की ग्रोथ के लिए आपको फण्ड की जरुरत है। फण्ड जुटाने ले लिए आप लोन लेने की बजाये आप ऊपर बताई गयी कंपनियों को अपने कंपनी के शेयर एक फिक्स्ड प्राइस में बेचते है। इसमें शेयर खरीदने वाली पार्टी को Qualified Institutional buyer कहा जाता है और इस तरह वह कंपनी में शरहोल्डर्स बन जाते है। पब्लिक ऑफरिंग की तुलना में QIP फण्ड जुटाने का एक किफायती और तेज तरीका है।

R

Recession: रिसेशन किसी देश की इकनोमिक गतिविधि में एक अनिश्चित समय काल के लिए कमी आने को कहते है। जब देश के कुल प्रोडक्ट और सर्विसेज के निर्माण में कमी आती है जिस से देश की बाकि financial गतिविधिया भी प्रभावित होती हो तो उसे रिसेशन का दौर कहा जा सकता है। रिसेशन के कारण बिज़नेस और कारोबार के कामकाज में भारी कमी आती है जिससे लोगो को काम से निकाला जाता है और बेरोजगारी की दर में वृद्धि होती है। सरल भाषा में एक अनिश्चित समय काल जो की कई महीनो या सालो का भी हो सकता है के लिए देश की इकनोमिक स्तिथि में गिरावट रहना को रिसेशन कहा जाता है। रिसेशन के कारण कई सारे इकनोमिक इंडिकेटर नेगेटिव में हो जाते है जैसे की GDP की दर, इंडस्ट्री का प्रॉडक्शन, रोजगारी, लोगो का खर्चा, बिज़नेस के प्रॉफिट और इन्वेस्टमेंट आदि। रिसेशन का कार्यकाल और इसके कारण अलग अलग हो सकते है को की इसके होने वाले कारणों के प्रभाव पर निर्भर करते है।

REIT: Reit (Real Estate Invetsment Trust) एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट साधन है जिसका इस्तेमाल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट करने के लिए होता है। भारत में Reit को 2014 में शुरू किया गया था। Reit की मदद से इन्वेस्टर्स एक साथ प्रॉपर्टी, कमर्शियल कम्प्लेक्सेस या अन्य रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं। Reit में इन्वेस्टमेंट करने के लिए इसके यूनिट खरीदने पड़ते है जो की किसी भी आम स्टॉक की तरह स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है। अगर आप के पास डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट है तो आप भी आसानी से Reit में इन्वेस्ट कर सकते है। आपके द्वारा इन्वेस्ट किया गया पैसा फण्ड मैनेजर जो Reit के लिए काम करते है अलग अलग प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करते है जिनसे आने वाली रेंटल इनकम और इंटरेस्ट से आपकी इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी होती है। जहाँ कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लाखो रूपये की जरुरत होती है वही Reit में आप सिर्फ दस हज़ार से भी इन्वेस्टमेंट शुरू कर सकते है।

S

Share Market: शेयर मार्किट जिसे की स्टॉक मार्केट या इक्विटी मार्किट भी कहा जाता है, एक ऐसा बाजार है जहाँ पर लोग एक कंपनी के शेयर्स को खरीद और बेच सकते है। शेयर एक कंपनी की हिस्सेदारी के एक सिंगल यूनिट को कहा जाता है और जो कम्पनिया शेयर मार्किट में लिस्टेड होती है उन्हें पब्लिक ट्रेडेड कंपनी कहा जाता है। जब आप किसी कंपनी के शेयर को मार्किट से खरीदते है तो आप उस कंपनी में एक हिस्सेदार बन जाते है। कंपनी की परफॉरमेंस के हिसाब से कंपनी के शेयर्स की वैल्यू कम और ज्यादा होती रहती और जो की आपकी इन्वेस्टमेंट पे मुनाफे और नुक्सान कर कारण बनती है।

Stop Loss: स्टॉप लॉस एक buy या sell ऑर्डर होता है जो ट्रेडर को लिए गए ट्रेड में एक लिमिट से ज्यादा नुकसान होने से बचाता है। यह ऑर्डर ट्रेडर के लॉस को लिमिट में रखकर उसे मार्केट की वॉलेटिलिटी के कारण होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करता है।

Surcharge: सरचार्ज, यानी की वह अतिरिक्त चार्ज जो किसी प्रोडक्ट या सर्विस के प्राइस के ऊपर अलग से लगाया जाता है। इनकम टैक्स के केस में सरचार्ज, पहले से बनी टैक्स की देनदारी पर अतिरिक्त चार्ज के रूप में लगाया जाता है। यह एक्स्ट्रा चार्ज कई कारणों से लगाया जाता है, जैसे सरकार को ज्यादा रेवेन्यू सोर्स की जरूरत होने पर, या फिर किसी निश्चित स्कीम की फंडिंग आदि के लिए।

T

Term Life Insurance: टर्म लाइफ इन्शुरन्स एक पुरे लाइफ इंश्योरेंस पालिसी होती है जहाँ पर क्लेम सिर्फ बेनेफिशरी की डेथ पर ही दिया जाता है। सिर्फ डेथ बेनिफिट होने के कारण यहाँ प्रीमियम अमाउंट की तुलना में क्लेम की अमाउंट काफी ज्यादा होती है। टर्म लाइफ इंश्योरेंस एक निश्चित टर्म या समय अंतराल, जो की आमतौर पर 5 से 30 साल का होता है के लिए इंश्योरेंस कवरेज प्रदान करता है। इसके अंतर्गत, अगर insured व्यक्ति की मौत टर्म इंश्योरेंस के टेन्योर के दौरान हो जाती है तो नॉमिनी को एक फिक्स्ड अमाउंट अदा की जाती है जो पालिसी लेने वाले द्वारा पालिसी लेते वक्त निश्चित की गयी होती है।

U

Unsecured Loans: Unsecured लोन्स एक प्रकार के क़र्ज़ होते हैं जिनके लिए कोई गारंटी या सिक्योरिटी डिपाजिट की ज़रुरत नहीं होती। इसका मतलब है की आपको इन लोन को लेने के लिए किसी वस्तु या प्रॉपर्टी को जमा करना नहीं पड़ता। यह प्रोसेस सिक्योर्ड लोन्स जैसे होम लोन या कार लोन से अलग होती है जहाँ पर आपको सिक्योरिटी डिपाजिट देना होता है ताकि लोन प्रोवाइडर इस बात की तस्दीक कर सकते हो सके की आप आपके क़र्ज़ को वापस कर देंगे। Unsecured लोन्स आमतौर पर छोटी अमाउंट में मिलते हैं और क्यूंकि यह लोन्स रिस्की होते हैं, लेंडर्स के लिए इसका इंटरेस्ट रेट ज़्यादा होता है। पर्सनल लोन, मेडिकल इमरजेंसी, क्रेडिट कार्ड लोन आदि unsecured लोन की के कैटोगरी में आते है।

V

Venture Capital: वेंचर कैपिटल एक तरह की प्राइवेट फाइनेंसिंग है जिसमें इन्वेस्टर्स पैसे अपने स्टार्टअप और स्माल कंपनियों में लगाते हैं। इसमें इन्वेस्टर उन कम्पनीज में हिस्सा खरीदते हैं जिनकी तेजी से बढ़ने की सम्भावना होती है। स्टार्टअप और छोटे बिज़नेस के लिए यह पैसा एक नए अवसर का स्रोत बनता है। अक्सर नए बिज़नेस और कंपनी को शुरू करने या पहले से चल रहे बिज़नेस को बढ़ाने के लिए ज्यादा financial मदद की ज़रुरत होती है। ट्रेडिशनल बैंक लोन्स या दूसरे financial सोर्स से ऐसे बिज़नेस के लिए आसानी से मदद नहीं मदद नहीं मिलती है क्यों की इनमें ज्यादा रिस्क होता है, इसलिए वेंचर कैपिटल फर्म्स या individual इन्वेस्टर्स अपने पैसे स्टार्टअप कम्पनीज को देकर बदले में उनसे हिस्सेदारी लेते है।

X

XIRR: XIRR का मतलब होता है “Extended Internal Rate of return” यह एक फाइनेंसियल मेट्रिक है जो की आपकी इन्वेस्टमेंट पर अलग अलग समय पर मिलने वाली रिटर्न को को बताता है। इसमें दोनों, पैसो का जमा करवाना और निकलवाना शामिल होता है। XIRR इन्वेस्टर को यह जानने में मदद करता है की समय और इन्वेस्टमेंट की वैल्यू में बदलाव के साथ साथ इन इन्वेस्टर को कितनी रिटर्न मिली है। हम आसान भाषा में यह के सकते है की XIRR वह financial कैलकुलेशन है जो इन्वेस्टर की डेली और सालाना रिटर्न को ध्यान में रखकर की जाती है।

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Yield: Yield फाइनेंस में एक जरुरी कांसेप्ट है। ये मुख्यता वह रिटर्न है जो आप एक एक निश्चित टाइम पीरियड अपनी इन्वेस्टमेंट से पाते हैं। मान लीजिये आपने कोई पैसा इन्वेस्ट किया है और फिर उस इन्वेस्टमेंट से आपको प्रॉफिट या इंटरेस्ट मिलता है। उस प्रॉफिट या इंटरेस्ट को हम yield कहते हैं। ये आपको समझने में मदद करता है की आपकी इन्वेस्टमेंट कितनी फायदेमंद है। जैसे की आपने एक फिक्स्ड डिपाजिट में पैसे रखे हैं तो जो इंटरेस्ट आपको मिलेगा वो आपकी yield होगी। इससे आप अपनी इन्वेस्टमेंट की दूसरी इन्वेस्टमेंट से तुलना करके देख सकते हैं की कौनसा ऑप्शन आपके लिए बेहतर है।

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Zero Balance Account: जीरो बैलेंस अकाउंट एक प्रकार का बैंक अकाउंट होता है जिसमे आपको कोई भी मिनिमम बैलेंस रखने करने की जरुरत नहीं होती। मतलब की आपके पास बैंक में कुछ भी पैसा रखना जरुरी नहीं होता। ये खासकर उन लोगो के लिए मददगार होता है जो कम इनकम वाले होते हैं या फिर स्टूडेंट होते हैं जिनके पास ज्यादा पैसा नहीं होते। इसमें आप बेसिक बैंकिंग सर्विसेज का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे की खाता खुलवाना पैसा निकालना, जमा करना, चेक लिखना आदि। लेकिन ध्यान रहे कुछेक जरुरी सर्विसेज जैसे की लाकर फैसिलिटी या स्पेशल ऑफर्स आपको जीरो बैलेंस अकाउंट में नहीं मिलते। इस प्रकार के अकाउंट से आप बैंक के साथ जुड़ सकते हैं और मिनिमम बैलेंस की चिंता किये बिना अपनी फाइनेंसियल ट्रांसक्शन्स को आसानी से मैनेज कर सकते हैं।  

Zero-Coupon Bond

Zero-Investment Portfolio