Mutual Fund Ratios in Hindi – जानिए म्यूचुअल फंड रेश्यो क्या होती है और कितनी तरह की होती है

म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट हम सिर्फ इसी भरोसे के सहारे करते है कि हमारी इन्वेस्टमेंट को मैनेज करने एक एक्सपर्ट फंड मैनेजर उपलब्ध है, जिसके पास इस काम का अनुभव और योग्यता दोनों होती है। लेकिन अगर हमे खुद एक म्यूचुअल फंड स्कीम की तुलना दूसरे से करनी हो तो उसके लिए भी हमारे पास बहुत से तरीके है। यह तरीके हमे मिलने वाली रिटर्न की तुलना, रिस्क को समझने और परफॉर्मेस को समझने में मदद करते है। इस ब्लॉग आर्टिकल ‘Mutual Fund Ratios in Hindi’ में हम ऐसी ही कुछ मुख्य रेश्यो के बारे में जानने और इन्हें समझने की कोशिश करेंगे।

mutual fund ratios in hindi
Image by jcomp on Freepik

म्यूचुअल फंड रेश्यो क्या होती है – Mutual Fund Ratios in Hindi

म्यूचुअल फंड रेश्यो एक तरह के मैथेमेटिकल टूल होते है, जिनका इस्तेमाल म्यूचुअल फंड स्कीम के कई सारे पहलुओं को जानने और समझने के लिए किया जाता है। इनकी मदद से एक फंड की परफॉर्मेंस की तुलना अन्य फंड से की जा सकती है और उसमें शामिल रिस्क को भी जाना जा सकता है। यह रेश्यो फंड मैनेजर की काबिलियत को भी मापने का एक तरीका है, ताकि इन्वेस्टर्स को अपने इन्वेस्टमेंट निर्णय लेने और स्कीम सिलेक्शन करने में मदद मिल सके।

म्यूचुअल फंड रेश्यो के प्रकार – Types of Mutual Fund Ratios in Hindi

म्यूचुअल फंड रेश्यो में कई तरह की रेश्यो शामिल है। इनमें से मुख्य रेश्यो के बारे में नीचे बताया गया है:

एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio):एक्सपेंस रेश्यो एक म्यूचुअल फंड स्कीम की टोटल एसेट का एक हिस्सा होता है, जिसका इस्तेमाल म्यूचुअल फंड हाउस अपने मैनेजमेंट के और अन्य सभी तरह के खर्चों को कवर करने में करता है। एक तरह से यह वह चार्ज है जो एक इन्वेस्टर AMC को अपने फंड की मैनेजमेंट के बदले देता है। इस रेश्यो की मदद से इन्वेस्टर यह जान सकता है उसके द्वारा इन्वेस्ट की गई राशि का कितना हिस्सा म्यूचुअल फंड अपने खर्चों को पूरा करने के लिए करता है। इन खर्चों में मैनेजमेंट की फीस, एडमिनिस्ट्रेशन के खर्चे, सैलरी और ऑपरेशनल खर्चे आदि शामिल होते है।

यहां इस बात को नोट करना जरूरी है कि AMC किसी भी तरह से एक्सपेंस रेश्यो अलग से चार्ज नहीं करती। यह दिए गए दिन में फंड की NAV के एक परसेंटेज जिसे के रूप में कैलकुलेट किया जाता है। उदाहरण के लिए अगर किसी फंड का एक्सपेंस रेश्यो 1.6 तो इसका मतलब है कि फंड की एसेट का 1.6% सालाना इसकी मैनेजमेंट में जाता है।

शार्प रेश्यो (Sharpe Ratio): शार्प रेश्यो का इस्तेमाल रिस्क एडजस्टेड रिटर्न को मापने के लिए किया जाता है। यह रेश्यो इस बात को मापता है कि फंड ने इसमें शामिल रिस्क के मुकाबले कितनी रिटर्न दी है। अगर फंड की शार्प रेश्यो ज्यादा है तो यह इस बात की और इशारा करता है कि फंड कम रिस्क में ज्यादा रिटर्न दे रहा है। यह एक अच्छी बात है और फंड की अच्छी मैनेजमेंट की और इशारा करता है। अगर आपको एक स्थाई रिस्क एडजस्टेड रिटर्न चाहिए तो आपको शार्प रेश्यो को जरूर चेक करना चाहिए।

बीटा (Beta): बीटा रेश्यो फंड को वोलैटिलिटी को मापने का एक तरीका है। इसका इस्तेमाल म्यूचुअल फंड के उतार चढ़ाव की तुलना मार्केट की वोलैटिलिटी के साथ करने में किया जाता है। फंड की वोलैटिलिटी का बीटा 1 से मापा जाता है। यानी कि अगर किसी फंड का बीटा 1 से ज्यादा है, तो इसका मतलब है कि वह फंड मार्केट के मुकाबले ज्यादा वोलेटाइल है। आसान भाषा में कहें तो अगर मार्केट 1% बढ़ती है, तो वह फंड 1% से ज्यादा बढ़ेगा वहीं अगर मार्केट 1% गिरती है तो उस फंड में 1% से ज्यादा गिरावट नजर आएगी। इसकी मदद से आप अपने रिस्क प्रोफाइल को जान सकते है और उसी मुताबिक फंड का चुनाव कर सकते है।

अगर आप एक कम रिस्क लेने वाले इन्वेस्टर है तो ऐसे फंड का चुनाव कर सकते है, जिनका बीटा 1 से कम हो। वहीं ज्यादा रिटर्न और रिस्क लेने वाले इन्वेस्टर 1 से ज्यादा बीटा वाले फंड का चुनाव कर सकते है।

अल्फा (Alpha): अल्फा रेश्यो की मदद से आप एक फंड की रिटर्न की तुलना उसके बेंचमार्क से कर सकते है। एक फंड की अच्छी रिटर्न और अच्छी मैनेजमेंट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने अपने बेंचमार्क से कितनी ज्यादा रिटर्न जनरेट की है। इससे हमें फंड मैनेजर की काबिलियत और उसकी स्ट्रेटजी के अच्छे होने का भी अंदाजा हो जाता है। अगर एक फंड का अल्फा पॉजिटिव है, तो इसका मतलब है कि फंड अपने बेंचमार्क से अच्छा परफॉर्म कर रहा है। वहीं पर नेगेटिव अल्फा का मतलब कि फंड की रिटर्न अपने बेंचमार्क द्वारा जनरेट की गई रिटर्न के मुकाबले कम है।

उदाहरण के लिए अगर किसी फंड का अल्फा +2 है, तो इसका मतलब, फंड ने अपने बेंचमार्क से 2% ज्यादा रिटर्न जनरेट की है। इसलिए इन्वेस्टमेंट करते समय इस बात का ध्यान रखें कि चुने गए फंड का अल्फा पॉजिटिव हो।

स्टैंडर्ड डेविएशन (Standard Deviation): हर म्यूचुअल फंड स्कीम की परफॉर्मेंस का अंदाजा उसकी मिलने वाली एवरेज रिटर्न से लगाया जा सकता है। स्टैंडर्ड डेविएशन इस बात को मापने में मदद करता है की एक फंड की रिटर्न कितनी वोलेटाइल है, यानी अपनी एवरेज रिटर्न से कितनी परसेंट कम या ज्यादा ज्यादा हो रही है। अगर म्यूचुअल फंड स्कीम का स्टैंडर्ड डेविएशन ज्यादा है तो इसका मतलब इसकी रिटर्न, फंड की एवरेज रिटर्न के मुकाबले ज्यादा कम या बढ़ रहीं है। वहीं पर कम स्टैंडर्ड डेविएशन एक स्थाई रिटर्न की और इशारा करता है।

उदाहरण के लिए एक म्यूचुअल फंड को लेते है, जिसकी एवरेज रिटर्न 12% और स्टैंडर्ड डेविएशन 5 है। इस केस में हो सकता है कि वह फंड 17% यानी कि 5% ज्यादा या फिर 8% यानी 5% कम रिटर्न जनरेट करे।

ट्रेनर रेश्यो (Trenor Ratio): ट्रेनर रेश्यो को रिवॉर्ड to वोलैटिलिटी रेश्यो के नाम से भी जाना जाता है। ट्रेनर रेश्यो फंड के परफॉर्मेंस की उसके द्वारा हर यूनिट के पीछे लिए जाने वाले रिस्क से तुलना करता है। यह इस बात को दर्शाने का काम करता है की फंड उसके द्वारा लिए जा रहे रिस्क के मुताबिक रिटर्न अर्जित कर पा रहा है या नहीं। इस रेश्यो का ज्यादा होना इस बात को दर्शाता है की फंड अपने द्वारा लिए जा रहे रिस्क से ज्यादा रिटर्न जनरेट कर रहा है। वहीं इसका कम होना फंड की परफॉरमेंस के लिए अच्छा नहीं माना जाता। 

सॉर्टिनो रेश्यो (Sortino Ratio): सार्टिनो रेश्यो, शार्प रेश्यो का ही एक भाग है, जो सिर्फ डाउनसाइड रिस्क को ध्यान में रखता है। यह इस बात को दर्शाता है कि अगर मार्केट नीचे गिर रही है तो उस समय फंड किस तरह से परफॉर्म किया है। इससे इन्वेस्टर को इस बात का अंदाजा हो जाता है कि विपरीत मार्केट परिस्थितियों में फंड कैपिटल की सुरक्षा करने में सक्षम है या नहीं। सॉर्टिनो रेश्यो इस बात को तस्दीक करता है कि फंड ने डाउनसाइड रिस्क को अच्छे से मैनेज किया है और बिना ज्यादा रिस्क लिए एक अच्छी रिटर्न को जनरेट किया है।

R Squared: R Squared रेश्यो इस बात को मापने में इस्तेमाल होता है कि किसी फंड की परफॉर्मेंस उसके बेंचमार्क से कितनी मिलती है। इसे 0 से 100 के बीच में मापा जाता है। अगर फंड की यह रेश्यो 100 के करीब है तो इसका मतलब फंड की रिटर्न लगभग इंडेक्स की रिटर्न के बराबर है। वहीं अगर यह रेश्यो 100 से कम है तो यह इसके बेंचमार्क के परफॉर्मेस से ज्यादा मेल नहीं खाती।

एक्टिवली मैनेज्ड फंड की R Squared रेश्यो कम होती है क्योंकि इसमें फंड मैनेजर का मुख्य उद्देश्य बेंचमार्क से ज्यादा रिटर्न जनरेट करना होता है। इंडेक्स फंड की R Squared रेश्यो 100 या 100 के करीब होती है।

इन्फॉर्मेशन रेश्यो (Information Ratio): इन्फॉर्मेशन रेश्यो शार्प रेश्यो का ही एडवांस्ड रूप है। इन्फॉर्मेशन रेश्यो की मदद से हमें यह जानने में मदद मिलती है कि फंड ने लिए गए रिस्क के मुकाबले कितनी अच्छी रिटर्न, लगातार जनरेट की है। उसकी मदद से हम फंड मैनेजर की काबिलियत का पता चलता है और हम एक से मैनेजमेंट स्टाइल वाले अलग अलग फंड की तुलना कर पाते है।

म्यूचुअल फंड रेश्यो समझना क्यों जरूरी है – Mutual Fund Ratio ko samajhna kyun jaruri hai

म्यूच्यूअल फंड रेश्यो को समझना हमारे लिए जरुरी हो जाता है क्युकी यह फंड की परफॉरमेंस और सही वैल्यूएशन को जानने और समझने में मदद करते है। अगर आप भी म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्ट कर रहे है या करने वाले है तो इन रेश्यो के बारे में जानना आपके लिए जरुरी हो जाता है। 

परफॉर्मेंस की तुलना करने के लिए: म्यूच्यूअल फंड की कई रेश्यो जैसे की अल्फा और शार्प रेश्यो को फंड की परफॉर्मेंस की तुलना इसके बेंचमार्क के साथ करने में मदद करते है। इनकी मदद से हम जान पाते है की फंड ने अपने बेंचमार्क से ज्यादा रिटर्न दिया है या कम। इसके आधार पर आप अपने लिए एक सही फंड का चुनाव कर सकते है जो आपको एक अच्छी और लगातार रिटर्न दे सके।

रिस्क और रिटर्न के बैलेंस को जानना: हर इन्वेस्टर के रिस्क लेने की क्षमता अलग अलग होती है। कुछ ज्यादा रिस्क और ज्यादा रिटर्न चाहते है, जबकि कुछ कम रिस्क लेकर कम रिटर्न में ही संतुष्ट होते है। बीटा जैसी रेश्यो आपको फंड की वोलैटिलिटी मापने और उसमे शामिल रिस्क का अंदाज़ा लगाने में मदद करते है, जिससे आप अपनी प्रोफाइल के अनुसार सही म्यूचुअल फंड का चुनाव कर सकते है। 

फंड और फंड मैनेजर की परफॉर्मेंस जांचने के लिए: एक्टिव फंड में फंड मैनेजर का बहुत बड़ा रोल होता है और उसकी काबिलियत ही इस बात को निर्धारित करती है की एक फंड की रिटर्न कितनी अच्छी हो सकती है। अल्फा जैसी रेश्यो हमे यही जानने में मदद करती है की फंड मैनेजर किस तरह से फंड को मैनेज कर रहा है और बेंचमार्क से अच्छी रिटर्न दिलाने में सक्षम है या नहीं। 

म्यूच्यूअल फंड के खर्चो को जानने के लिए: म्यूच्यूअल फंड में की जाने वाली इन्वेस्टमेंट की मैनेजमेंट फ्री में नहीं होती। इसको मैनेज करने और अपने रोज़ाना के खर्चो को चलाने के लिए हर फंड हाउस कुछ चार्ज लेता है। इस खर्चे को हम एक्सपेंस रेश्यो की मदद से जान सकते है। हमें अक्सर कम एक्सपेंस रेश्यो वाली स्कीम का चुनाव करने की हिदायत दी जाती है, ताकि हमारे लगाए गए पैसों का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा इन्वेस्ट हो सके।

डाउनसाइड रिस्क और टर्नओवर को जानने के लिए: एक अच्छा फंड हाउस वहीं है जो आपको एक अच्छी रिटर्न देने के साथ साथ कैपिटल की डाउनसाइड को भी कंट्रोल कर सके। डाउनसाइड यानी को मार्केट की परिस्थिति अच्छी न होने पर भी फंड की परफॉर्मेंस ज्यादा नेगेटिव न हो। म्यूचुअल फंड रेश्यो की मदद से हम यह जान सकते है कि कितनी बार फंड मैनेजर ने फंड की होल्डिंग को बदला है। ज्यादा टर्नओवर वाले फंड में ट्रेडिंग कॉस्ट और टैक्स की लागत भी ज्यादा होती है।

यह भी जाने: Debt Mutual Funds Meaning in Hindi – जानिए क्या होते है डेट फंड्स और कैसे हैं बैंक FD से बेहतर

निष्कर्ष – Conclusion 

इस ब्लॉग आर्टिकल में हमने आपको कुछ जरूरी म्यूचुअल फंड रेश्यो के बारे में जानकारी दी है, जिनकी मदद से आप एक बेहतर इन्वेस्टमेंट निर्णय ले सकते है। अगर आपको सभी फंड को एनालाइज करके एक बेहतर ऑप्शन का चुनाव करना है तो आप इन रेश्यो को ध्यान में रख सकते है। पहली बार देखने पर किसी भी आम इन्वेस्टर को लग सकता है कि यह रेश्यो काफी कॉम्प्लेक्स है और इन्हें समझना मुश्किल है। लेकिन थोड़ा सा ध्यान देने पर हम इन्हें आसानी से समझ सकते है और अपने इन्वेस्टमेंट निर्णय को और बेहतर बना सकते है।

Liked our Content? Spread a word!

Leave a Comment